22.3 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आजादी का जायका

आज अपना मनपसंद भोजन करने की आजादी जी का जंजाल बन चुकी है- क्या वर्जित है और क्या खाना कानूनन जायज है, इससे बेखबर रहना जान का जोखिम पैदा कर सकता है. बहरहाल, जो सवाल पूछने के लिए हम बेकरार हैं, वह यह कि क्या हम स्वदेशी की तोतारटंत के बावजूद अपने जायकों को भुलाते-गंवाते […]

आज अपना मनपसंद भोजन करने की आजादी जी का जंजाल बन चुकी है- क्या वर्जित है और क्या खाना कानूनन जायज है, इससे बेखबर रहना जान का जोखिम पैदा कर सकता है. बहरहाल, जो सवाल पूछने के लिए हम बेकरार हैं, वह यह कि क्या हम स्वदेशी की तोतारटंत के बावजूद अपने जायकों को भुलाते-गंवाते जा रहे हैं? अपने देश के जायके के बारे में बता रहे हैं व्यंजनों के माहिर

हमारा देश आजादी की 71वीं सालगिरह मनाने की दहलीज पर पहुंच चुका है और आज की नौजवान पीढ़ी को इस बात का एहसास नहीं कि भूख मिटाने की चिंता से लेकर खाने के जायके का रस लेने तक का कितना लंबा सफर हमने तय कर लिया है. मुझको अपना लड़कपन याद आता है, जब मुहावरा आम था- भूख मीठी या खाना मीठा. अर्थात भूखे को जो भी मिल जाये अच्छा लगता है! एक सवाल आज अनदेखा किया जाने लगा है- भारतीय खाने का जायका क्या है? अंग्रेज हुक्मरानों ने यह भरम फैलाया था कि हिंदुस्तानी खाना मिर्च-मसाले वाला होता है, घी-तेल में तर-बतर! इसी का नतीजा है कि दुनिया के अनेक देशों में भारतीय खान-पान को तीखेपन की वजह से सेहत के लिए नुकसानदेह समझ इससे परहेज किया जाता है.

इसी गलतफहमी से जुड़ा सवाल यह है कि क्या भारतीय जायका नाम की कोई चीज है भी? हकीकत यह है कि तंदूरी और मुगलिया व्यंजनों के अलावा हिंदुस्तान में खान-पान में अद्भुत विविधता देखने को मिलती है और हमारी बहुलवादी सांस्कृतिक विरासत की दूसरी कलाओं की तरह पाककला-कौशल अनेक जायकों की नुमाइश करता है. कभी भाषा-बोली को लेकर नोंक-झोंक होती थी, वैसी ही मुठभेड़ें आज खाने के जायकों को लेकर नजर आने लगी हैं. रसगुल्ले की मिठास किसकी है- बंगाल की या ओड़िशा की? इडली-डोसे को किसने ईजाद किया- कर्नाटक ने या तमिलनाडु ने? क्या वास्तव में बटर चिकन का आविष्कार दिल्ली के एक मशहूर ढाबानुमा रेस्त्रां में हुआ या फिर कहीं और?

आज अपना मनपसंद भोजन करने की आजादी जी का जंजाल बन चुकी है- क्या वर्जित है और क्या खाना कानूनन जायज है या अपराध है, इससे बेखबर रहना जान का जोखिम पैदा कर सकता है. बहरहाल जो सवाल पूछने के लिए हम बेकरार हैं, वह यह कि क्या हम स्वदेशी की तोतारटंत के बावजूद अपने जायकों को भुलाते-गंवाते जा रहे हैं? यह याद दिलाने की जरूरत नहीं कि मिर्च इस देश में पुर्तगालियों के साथ 15वीं-16वीं सदी में ही पहुंची. इससे पहले हमारे खाने को मनोनुकूल तीखा बनाती थी काली मिर्च और पीपली. आज हम घर पर पीपली को लगभग भुला चुके हैं.

भारतीय खानपान में छह स्वाद-जायके गिनाये जाते हैं- इसलिए हमारा सर्वोत्तम भोजन षडरस भोजन कहलाता था. इन जायकों का सीधा संबंध छह ऋतुओं से जोड़ा गया था और आयुर्वेद के ग्रंथ इन्हें त्रिदोष (कफ, पित्त तथा वात) एवं तीन गुणों (सात्विक, राजसिक एवं तामसिक) से भी जोड़ते हैं. यह सुझाना नादानी है कि यह सब हिंदू पुनरुत्थानवादी हठ है. यूनानी में भी खाने के पदार्थों और जायकों की तासीर का बखान है और तिब्बती-चीनी चिकित्सा शास्त्र में भी खाने की चीजों का वर्गीकरण यिन और यांग के द्वंद्वात्मक संबंध के आदार पर उज्ज्वल और श्यामल श्रेणियों में किया जाता है.

राजनीतिक आजादी हासिल करने के बाद भी हमने मानसिक-बौद्धिक दासता से छुटकारा नहीं पाया है. हम अपना खाना भी कुर्सी-मेज पर बैठकर कांटे-चम्मच से खाते हैं. हाथ से खानेवाले को गंवार समझते हैं. नाश्ते पर सीरियल, टोस्ट का चलन है सत्तू-मूढ़ी, अंकुराये अनाज को बिसरा दिया गया है. कृत्रिम रंग, स्वाद, गंध मिश्रित बोतलबंद अचार-मुरब्बे चटनियों ने घर में इनका बनाया जाना समाप्त प्राय कर दिया है. हम जन किसी मेहमान की खातिर करना चाहते हैं, तो किसी विदेशी व्यंजन या आयात किये फल-सब्जी को पेश करते हैं. ‘फ्यूजन’ के नाम पर पारंपरिक व्यंजन की देशी मुर्गी को विदेशी बांग देने को मजबूर करने लगे हैं. यह सोचने लायक है कि क्या 21वीं सदी में भारतीय जायकों का विकास हो रहा है या क्षय? स्वतंत्रता दिवस की सबको बधाई!

प्रोफेसर पुष्पेश पंत…

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें