।। अभिषेक दुबे।।
(वरिष्ठ खेल पत्रकार)
हॉकी वर्ल्ड कप, 2014 में भारतीय टीम अपना पहला मुकाबला गंवा चुकी है. टीम को हेग रवाना करते वक्त देश ने अपने-अपने तरीके से शुभकामनाएं दी थीं, लेकिन अब तो लगता है कि भारतीय टीम के लिए टॉप 8 में अपनी जगह बरकरार रख पाना ही मुश्किल होगा. राष्ट्रीय खेल हॉकी की भारत में आखिर क्यों है यह स्थिति, इसके विभिन्न पहलुओं पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज.
हॉकी इंडिया को वल्र्ड कप के लिए ढेरों शुभकामनाएं : विराट कोहली. चक दे हॉकी टीम और सरदार सिंह, मैं हर किसी के लिए चीयर करूंगा, गो फॉर इट बॉयज एंड मेक अस प्राउड : हरभजन सिह. हॉकी टीम को वल्र्ड कप के लिए शुभकामनाएं, मैं पहले मैच का बेसब्री से इंतजार करूंगा : गौतम गंभीर.. वल्र्ड कप हॉकी, 2014 में भारत अपना अभियान शुरू कर चुका है और बेल्जियम के खिलाफ पहला मुकाबला 2-3 से हार भी चुका है, लेकिन भारतीय स्टार क्रिकेट खिलाड़ियों के पैगाम से दो चीजें बिल्कुल स्पष्ट हैं. पहला, हर भारतीय की तरह हमारे क्रिकेट खिलाड़ी भी तहे दिल से चाहते हैं कि उनका राष्ट्रीय खेल ‘हॉकी’ अपनी गरिमा को प्राप्त करे. ये बयान सिर्फ कैमरे के सामने कहे गये शब्द नहीं हैं, क्रिकेट समेत सभी खेलों के राष्ट्रीय खिलाड़ी चाहते हैं कि भारतीय हॉकी टीम बुलंदियों को छुए. दूसरा, जिस खेल ने भारत को आजादी से पहले और ठीक बाद, गर्व के कई पल दिये, वह आज भरोसा बहाल करने के लिए बैसाखी का मोहताज है. 1980 के दशक में जैसे ही क्रिकेट सातवें आसमान की ओर छलांग भरने लगा, हॉकी का ग्राफ तेजी से नीचे चला गया. भारत को हॉकी ने अपने खेल में ब्रैडमैन का समकक्ष मेजर ध्यानचंद दिया, लेकिन वल्र्ड कप से ठीक पहले भारतीय हॉकी टीम के कप्तान को टीम की हौसलाअफजाई के लिए ब्रैडमैन के बाद क्रिकेट के सबसे कामयाब सितारे सचिन तेंडुलकर को सरप्राइज के तौर पर निमंत्रित करना पड़ा. यह स्थिति खुद ही भारतीय हॉकी की दशा और दिशा की कहानी है.
हॉकी हर बड़े टूर्नामेंट से पहले देशवासियों में एक आस जगाती है. लगता है कि इस बार कुछ अलग होगा. इस बार शायद बुलंदी पर वापसी की शुरुआत होगी. हेग में आयोजित 2014 का हॉकी वल्र्ड कप भी अपवाद नहीं है. हॉकी इंडिया ने हाल के सालों में कई ठोस कदम भी उठाये हंै. इनमें विदेशी कोच व ट्रेनर, मेहनताने में इजाफा और विदेश में अधिक एक्सपोजर शामिल है. विदेशी हालात से टीम को अभ्यस्त कराने के लिए इसे यूरोप भी भेजा गया. पर, अगर टीम और सपोर्ट स्टाफ को करीब से जाननेवालों की मानें, तो भारतीय हॉकी टीम का लक्ष्य खोया सम्मान वापस पाना है.
भारत इस बार के वल्र्ड कप में पूल ए में है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, स्पेन, मलयेशिया और बेल्जियम अन्य टीमें हैं. हॉकी वल्र्ड कप में भारत के मौजूदा रैंकिंग 8 है और टीम प्रबंधन का मानना है कि एक-दो उलटफेर करने पर टीम अपने मकसद को पा सकता है. जिन तीन टीमों के खिलाफ भारतीय टीम अपनी संभावनाओं को सबसे अधिक देख रही थी, उनमें से एक टीम बेल्जियम ने भारत को पहले ही मैच में हरा दिया है. विदेशी टीमों की नजरें कप्तान सरदार सिंह पर है, जिन्हें मिड फील्ड में दुनिया का बेहतरीन खिलाड़ी माना जाता है. इन सबके बावजूद कोच टेरी वॉल्श का कहना है कि ‘हमारे लड़कों ने टूर्नामेंट से पहले बहुत मेहनत की है, हमारा लक्ष्य टॉप 8 पोजिशन में बने रहने का है और अगर हम पहले छह में आने में कामयाब हुए, तो यह सोने पर सुहागा होगा.’ अपने पहले मैच में हार के बाद कोच की इस उम्मीद पर खरा उतरना टीम के लिए एक बड़ी चुनौती होगी.
यह सही है कि भारतीय हॉकी टीम को वापस पटरी पर लाने के लिए हॉकी इंडिया ने 2012 ओलिंपिक्स से पहले से लेकर आजतक कई तगड़े कदम उठाये हैं. इंडियन हॉकी लीग के मध्यम से नयी प्रतिभाओं को तरासने की कोशिश भी की गयी है. लेकिन, सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि बीते 20 साल में भारत और अन्य प्रमुख टीमों के बीच की खाई इतनी बढ़ गयी है, कि उसे पाटना अब आसान नहीं होगा. इतना ही नहीं, हॉकी का तेवर और कलेवर भी पूरी तरह से बदल चुका है और अब फिटनेस और स्टेमिना काफी अहम हो चुका है. मिसाल के तौर पर टूर्नामेंट की तीन बड़ी टीमों- ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड्स और जर्मनी को लें. दुनिया की नंबर एक टीम ऑस्ट्रेलिया पिछली बार की चैंपियन है. टीम में एक से बढ़ कर एक दिग्गज खिलाड़ी हैं और कुछ ऐसे युवा टैलेंट भी हैं, जिन पर हॉकी के दीवानों की निगाहें हैं. मिड फील्डर ओकलेंदे जबरदस्त फॉर्म में हैं और वे किसी भी मैच में कहर बरपाने का माद्दा रखते हैं. लेकिन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ रणनीति आप सिर्फ ओकलेंदे को ध्यान में रख कर नहीं बना सकते, टीम का दूसरा खिलाड़ी भी उतना ही कद्दावर है. कोच रिक चाल्र्सवर्ट का कहना है, ‘हर टूर्नामेंट की तरह इस बार भी हमारा मकसद आखिरी स्टेज तक पहुंचना है और इसके लिए जरूरी है कि हम शुरू से ही हल्ला बोल दें.’
ऑस्ट्रेलिया को सबसे बड़ी चुनौती 2012 ओलिंपिक्स चैंपियन जर्मनी से मिल सकती है. टीम के मिड फील्डर तबलास हौके कमाल के फॉर्म में हैं और फॉरवर्ड तथा मिडफील्ड के बीच का समन्वय अच्छी से अच्छी टीम के हौसले पस्त कर सकता है. कप्तान ऑलिवर कॉर्न कहते हैं- ‘हमारे खिलाड़ी इस तरह के बड़े मैच का इंतजार करते हैं, हार उन्हें मंजूर नहीं है और इसलिए बड़े टूर्नामेंट में उनका उत्साह 100 फीसदी होता है.’ यहां ध्यान देने योग्य यह भी है कि भारतीय हॉकी टीम के खिलाड़ियों को बड़े मैच के मौके काफी कम मिलते हैं, जिससे उन्हें अपने खेल को निखारने का मौका भी कम ही मिलता है. वहीं ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी के खिलाड़ी बड़े मैच का इंतजार करते हैं.
2013 नीदरलैंड्स के लिहाज से बड़ा साल नहीं रहा है, लेकिन वह 1998 के बाद से ही वर्ल्ड कप जीतने के लिए बेताब है. टीम के कप्तान का कहना है, ‘हमारा एक ही गोल है, वल्र्ड कप जीतना. हमें अपने समर्थकों को यह तोहफा देना है.’ नीदरलैंड्स के पास धाकड़ खिलाड़ियों की भरमार है, लेकिन जो एक खिलाड़ी सबसे अधिक चर्चा में है, वह है फॉरवर्ड बिली बखेर. चीते की सी फुर्ती वाला यह खिलाड़ी गेंद को विरोधी खेमे में डालने में उस्ताद है.
जाहिर है, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और नीदरलैंड्स जैसी टीम वल्र्ड कप 2014 में जीतने के लिए भाग ले रही है और उनका एक ही मकसद है- वल्र्ड चैंपियन बनना. उनके पास स्टार खिलाड़ियों की फौज है और वे बड़े मैच तथा बड़े टूर्नामेंट का इंतजार करते हैं.
दूसरी ओर, भारत वल्र्ड कप 2014 में सम्मान की लड़ाई लड़ रहा है और लक्ष्य किसी तरह से टॉप 8 में बने रहने का है. भारतीय टीम के खिलाड़ी बड़े मैच के लिए तरसते हैं और इस वजह से बादशाहत की लड़ाई में पीछे होते जा रहे हैं. सवाल यह है कि क्या इस बार टीम वर्ल्ड कप में अपनी खोई गरिमा को वापस पा सकेगा? क्या भारतीय हॉकी टीम के खिलाड़ी वल्र्ड कप जैसे बड़े टूर्नामेंट में जीत के लिए फिर से जा सकेंगे? इस सवाल का जवाब भारतीय हॉकी के कर्ताधर्ताओं को खुद तलाशना होगा. दिल्ली में भारत के नये प्रधानमंत्री की ताजपोशी के समारोह लिए लगभग चार हजार निमंत्रण भेजे गये, लेकिन जिस एक निमंत्रण से भारतीय हॉकी प्रेमियों को राहत सबसे अधिक राहत मिली, वह था मेजर ध्यानचंद के बेटे अशोक ध्यनचंद को दिया गया निमंत्रण. अशोक ने कहा, ‘इससे भरोसा मिला है कि मेजर ध्यानचंद को जल्द सचिन तेंडुलकर की तरह ‘भारत रत्न’ मिलेगा.’ लेकिन सौ सवाल का एक ही जवाब है, अगर वल्र्ड कप और ओलिंपिक्स जैसे बड़े टूर्नामेंट में बीते 25 साल में भारत का का प्रदर्शन लाजवाब होता, तो मेजर ध्यानचंद को ‘भारत रत्न’ देने के लिए गुहार नहीं लगायी जाती, इसे हक से लिया जाता.
वर्ल्ड कप हॉकी का इतिहास
-पाकिस्तान के एयर मार्शल नूवर खान की सोच ‘हॉकी वर्ल्ड कप’ ने तब जन्म लिया, जब भारत का इस खेल में ग्राफ नीचे जा रहा था. 1971 में पहला हॉकी वर्ल्ड कप पाकिस्तान में होना था, लेकिन भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के अलग होने की वजह से यह विवादों में आ गया. पहला वर्ल्ड कप स्पेन की राजधानी बार्सिलोना में कराना पड़ा. पाकिस्तान को मेजबानी का मौका तो नहीं मिला, लेकिन स्पेन को हरा कर वह हॉकी वर्ल्ड कप का पहला चैंपियन बना. बशीर माजूद ने वर्ल्ड कप हॉकी की ट्रॉफी डिजाइन की थी और इसे बनाने का काम पाकिस्तान आर्मी ने किया था. 27 मार्च, 1971 को पाकिस्तानी राजदूत ने बेल्जियम में इस ट्राफी को एफआइएच अध्यक्ष रेने फ्रैंक को सौंपा था.
त्नभारत को पहले वर्ल्ड कप में तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा. 1973 में नीदरलैंड्स में खेले गये दूसरे वल्र्ड कप में भारत फाइनल में तो पहुंचा, लेकिन मेजबान टीम ने पेनाल्टी स्ट्रोक में भारत को 4-2 से हरा दिया.
-1975 में कुआलालम्पुर में भारत ने पाकिस्तान को 2-1 से हरा कर अपना पहला वर्ल्ड कप जीता. इसके बाद से भारत एक बार भी इस पर कब्जा जमाने में सफल नहीं हो पाया है. पाकिस्तान ने सबसे अधिक 4 बार, नीदरलैंड्स ने 3 बार और ऑस्ट्रेलिया तथा जर्मनी ने 2-2 बार वर्ल्ड कप अपने नाम करने में कामयाबी पायी है. 2010 का हॉकी वर्ल्ड कप भारत मे खेला गया और मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में ऑस्ट्रेलिया ने जर्मनी को 2-1 से हरा कर टूर्नामेंट जीत लिया.
त्नपहले वल्र्ड कप में सिर्फ 10 टीमों ने हिस्सा लिया था. शुरू में हॉकी वल्र्ड कप का आयोजन दो साल में होता था, लेकिन अब यह चार साल में आयोजित होता है. हॉकी के इस सबसे बड़े टूर्नामेंट को अबतक 5 देशों ने जीता है और देखना है कि क्या इस बार भी यह ट्रॉफी इन्हीं पांच देशों में से किसी के पास रहेगी, या कोई नया विजेता सामने आयेगा.