।। दक्षा वैदकर।।
अपने ऑफिस के कर्मचारी हों या घर के नौकर, सभी के लिए दिल में थोड़ी जगह जरूर रखें. उनकी भावनाओं की कद्र करें. यह बात मैं इसलिए कह रही हूं, क्योंकि पिछले दिनों मैंने एक-दो बहुत दुखद दृश्य देखे. हम सभी जानते हैं कि पटना में कई घरों में कम उम्र की बच्चियां बतौर नौकरानी काम करती हैं. ये बच्चियां खुद 12 से 16-17 साल की होती हैं, लेकिन मालकिन के छोटे-छोटे बच्चों को संभालती हैं. कई बार ये मालकिन के साथ शॉपिंग करने जाती हैं. अपने लिए कुछ खरीदने नहीं, बल्कि मालकिन का सामान उठाने. गुरुवार को शाम के वक्त एक बड़ी-सी गाड़ी पानी पूरी के ठेले के पास रुकी. मालकिन के साथ-साथ उनके दो बड़े बच्चे थे. एक छोटा बच्च भी था, जो एक लड़की की गोद में थे.
कपड़ों से साफ नजर आ रहा था कि वह लड़की उस घर में नौकरानी है. तीनों ने सड़क पार की और पानी पूरी के ठेले के सामने खड़े हो गये. मालकिन और उनके दोनों बच्चों ने खूब पानी पूरी खायी. पास में शॉपिंग के थैले और बच्चे को पकड़े उनकी नौकरानी हर बार पानी पूरी को उनके मुंह में जाते देखती. उसके चेहरे से साफ झलक रहा था कि वह भी पानी पूरी खाना चाहती है. आखिरकार जब तीनों ने जी भर कर खा लिया और रुपये देने लगे, तो बच्ची से रहा नहीं गया. उसने धीमे से कहा, मैं भी खा लूं? मालकिन ने कहा, बाद में खाना.
अभी बहुत देर हो चुकी है. तेरे साहब घर आ गये होंगे. चल जल्दी चल. सब सड़क पार कर गाड़ी की ओर जाने लगे. उस बच्ची पर मेरी निगाह गयी. वह बार-बार मुड़ कर पानी पूरी के ठेले की तरफ ही देख रही थी. इस तरह के दृश्य अक्सर पटना में देखने को मिलते हैं. कभी मॉल में तो कभी फस्र्ट एसी की बोगियों में. हर बार मालकिन छोटी-सी नौकरानी से खूब काम करवाती दिखती है और बदले में उसके लिए प्यार के दो शब्द भी नहीं बोल पाती. यह देख के दिल में सवाल उठता है कि क्या हम 5-10 रुपये की पानी पूरी किसी गरीब को नहीं खिला सकते? क्या घर में आयी किसी चीज का थोड़ा-सा हिस्सा नौकरानी को दे देने से हमारी तिजोरी खाली हो जायेगी?
बात पते की..
जो नन्हीं जान आपके बच्चे का इतना ख्याल रख रही है, क्या आपका फर्ज नहीं बनता कि उसकी खुशियों का भी ख्याल रखें. इस पर सोचें.
जब आप अपने घर में काम करनेवाले लोगों की भावनाओं की कद्र करते हैं, तो वे आपके घर में और अधिक निष्ठा व समर्पण भाव से काम करते हैं.