मिथिला में शिव नचारी से संबंधित अनेक गीत प्रचलित हैं. मिथिलांचलवासी वैद्यनाथ धाम के दर्शन के लिए निरंतर आया करते हैं. अति प्राचीनकाल से ही पैदल कांवर लेकर आने वालों में मिथिलांचल वासियों का इतिहास है. मैथिली में रचित नचारी और महेशवाणी में वैद्यनाथ से संबंधित अनेक गीत हैं. मिथिला के लोगों के मन में […]
मिथिला में शिव नचारी से संबंधित अनेक गीत प्रचलित हैं. मिथिलांचलवासी वैद्यनाथ धाम के दर्शन के लिए निरंतर आया करते हैं. अति प्राचीनकाल से ही पैदल कांवर लेकर आने वालों में मिथिलांचल वासियों का इतिहास है. मैथिली में रचित नचारी और महेशवाणी में वैद्यनाथ से संबंधित अनेक गीत हैं.
मिथिला के लोगों के मन में वैद्यनाथ के प्रति अगाध आस्था के कारण ही साधारण से साधारण बातों में बाबा के नाम का शपथ लिया जाता है. एक शोध के अनुसार, मिथिला में ऐसे 30 लोकगीत प्रचलित हैं , जिसमें वैद्यनाथ की चर्चा है. वर्ष 1350 ई से आज आधुनिक काल तक ये गीत प्रचलित हैं. वैद्यनाथ भक्ति से इन गीतों का गहरा लगाव रहा है.
इनकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं –
विद्यापति कह मोर गौरी हर गति है ( विद्यापति )
सभके जे दौड़ि- दौड़ि पूछथि विकल गौरी
आहे ऐही पथ देखल दिगम्बर रे की। (चंदा झा )
भनहि विद्यापति सुनु महेश्वर तैलोक आन न देवा
चन्दल देवी पति वैद्यनाथ गति चरण शरण महिदेवा (विद्यापति)
वैद्यनाथ वरदानी बम-बम वेरु हरण विभूति भूषित वर
बाघम्बर अम्बर धर कटि पर
झारीखंड वेनवासी वैद्यनाथ आनंद करण हरण दु:ख हरण । (लक्ष्मीनाथ झा )
भजहु गिरिजा रमण रे मन भजहु गिरिजा रमन
व्याकुल शालिग्राम बम वैद्यनाथ शरण रे मन
( शालिग्राम )
जगत विदित वैद्यनाथ सकल गुण आगर हे
तोहे प्रभु त्रिभुवन नाथ दया के सागर हे ( कारनॉट)
इस प्रकार इन मैथिली गीतों में वैद्यनाथ की चर्चा व्यापक रूप से मिलती है, साथ ही आज भी मिथिला के घरों में स्त्री-पुरुष बड़े ही भक्तिभाव से वैद्यनाथ से संबंधित इन नचारी और महेशवाणी गा-गा कर भक्तिभाव में डूब जाते हैं.