
भारत के कई इलाक़ों में लड़की के जन्म पर मातम मनाया जाता है लेकिन पुणे में डॉक्टर गणेश रख की एक अनोखी पहल समाज की इस सोच को बदलने में जुटी है.
पुणे में मौजूद डॉक्टर गणेश रख के अस्पताल में प्रसव के बाद अगर शिशु लड़की हो तो मां और शिशु का पूरा इलाज मुफ़्त किया जाता है.
डॉक्टर रख कहते हैं, ‘हॉस्पिटल में जब कोई महिला प्रेगनेंसी के लिए हमारे पास आती है तो उसके दिमाग़ में पहले दिन से यही रहता है कि लड़का होने वाला है. लड़की भी हो सकती है ऐसा वो सोचती ही नहीं. महाराष्ट्र में ये धोखाधड़ी बहुत चल रही है. डॉक्टर ये कहकर पैसा कमाते हैं कि वो लड़का होने की दवाई दे सकते हैं.’
डॉक्टर रख के मुताबिक़ पूरे नौ महीने महिलाएँ इस दबाव में रहती हैं कि उनके घर वालों ने लड़का होने के लिए काफ़ी ख़र्चा किया है और इसलिए हर क़ीमत पर लड़का ही होना चाहिए. ऐसे में अगर लड़की हो जाती है तो अस्पताल पर भी इसका असर पड़ता है.
वो कहते हैं, ‘लड़का होता है तो मां बहुत ख़ुश रहती है और प्रसव का सारा दर्द भूल जाती है. लेकिन लड़की होने पर उसके जन्म का सेलिब्रेशन रो-रोकर होता है. शुरुआत ही अगर मातम से होगी तो समाज में महिलाओं की सुरक्षा और इज़्ज़त कैसे होगी.’
जच्चा-बच्चा का मुफ़्त इलाज
अस्पताल में आने वाले मरीज़ और उनके परिजनों के इस रवैये को देखकर डॉक्टर रख ने फ़ैसला किया कि उनके अस्पताल में अगर लड़की का जन्म होता है तो वो न सिर्फ जच्चा-बच्चा का मुफ़्त इलाज करेंगे बल्कि अस्पताल वाले मिलकर लड़की के जन्म की ख़ुशियां भी मनाएंगे.
डॉक्टर रख कहते हैं, ‘लड़की पैदा होने के बाद महिला के घर वाले और ससुराल वाले अस्पताल के बिल को लेकर लड़ते थे. दोनों में से कोई इलाज का ख़र्चा नहीं उठाना चाहता था. ऐसे में हमने मुफ़्त प्रसव के अभियान की शुरुआत की और फ़ैसला किया कि लड़की होने पर अस्पताल का पूरा स्टाफ मिलकर मिठाई बांटेगा और ख़ुशियां मनाएगा.’

इस पहल का मकसद लोगों को इस बात का एहसास दिलाना था कि शिशु का जन्म एक नैसर्गिक प्रक्रिया है और नवजात शिशु कहीं भी लड़के-लड़की का भेद नहीं जानता.
‘हैरान रह जाते हैं घरवाले’
डॉक्टर रख कहते हैं, ‘लड़की होने पर जब हम जश्न मनाते हैं, बच्चे का लाड़ करते हैं तो शुरू में तो घर वाले दूर-दूर से खड़े होकर हमें देखते हैं. वो हैरान हो जाते हैं. उन्हें लगता है कि ये लोग बिल भी नहीं ले रहे और ख़ुशियां भी मना रहे हैं. लेकिन कुछ समय बाद उन्हें अपनी ग़लती का एहसास होता है और वो समझते हैं कि उनकी सोच ग़लत है."
डॉक्टर रख की इस मुहिम में उनका साथ देने के लिए कई डॉक्टर सामने आए. उनके अपने अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर इक़बाल शेख, डॉक्टर अनिल चव्हाण, डॉक्टर संतोष शिंदे ने अपनी फ़ीस माफ़ करने का फ़ैसला किया.
आज महाराष्ट्र और उसके आस-पास के कई इलाक़ों में लोग डॉक्टर रख की देखा-देखी अपने अस्पतालों में लड़की के जन्म पर समाज का नज़रिया बदलने की कोशिश कर रहे हैं.
लेकिन हर किसी को एहसास है कि समाज की इस सोच को बदलना आसान नहीं है और यह एक लंबी लड़ाई है.
डॉक्टर रख से मिलने बीबीसी की टीम जब उनके अस्पताल पहुंची तो मुलाक़ात हुई रिज़वाना शेख से. रिज़वाना ने हमें बताया, ‘एक हफ़्ता पहले इस अस्पताल में मेरी डिलीवरी हुई है. लड़की हुई ये सुनकर घरवाले सब चले गए. अब तक मेरी ससुराल से कोई नहीं आया है. डॉक्टर ने फ़ीस नहीं ली है और मेरे माता-पिता ही मेरी देखभाल कर रहे हैं. मुझे लगता है कि मेरे ससुराल वाले मुझे नहीं रखेंगे.’
कई गांव जुड़े

इस मुहिम को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाने और परिवार के लोगों को इसमें शामिल करने के लिए पुणे के आसपास के कई ग्राम प्रधानों ने डॉक्टर रख से संपर्क किया और अपने इलाक़ों में इसकी शुरुआत की.
बिटला गांव की सरपंच कंचन तूपे ने बताया, ‘हमारे गांव से कई लोग इस अस्पताल में जाते थे. ऐसे में हमने परिवारों को समझाना शुरू किया कि लड़का-लड़की के भेदभाव से कोई फ़ायदा नहीं और लड़की भी उतनी ही अनमोल है. लड़की पैदा होने पर हम उसके नाम पर दो हज़ार रुपए की एफ़डी कराते हैं और लोगों को इस बात के लिए समझाते हैं कि वो अपने घरों में भेदभाव न करें.’
डॉक्टर रख इस मुहिम को तब तक जारी रखना चाहते हैं जब तक लड़की के जन्म पर लोग मायूसी से नहीं मुस्कुराहट से उसका स्वागत करें. वो चाहते हैं कि ज़्यादा से ज़्यादा डॉक्टर इस तरह की कोशिशें शुरू करें क्योंकि लिंग परीक्षण और दवाओं के ज़रिए लड़का पैदा होने की चाहत पूरा करने में डॉक्टर अहम भूमिका निभाते हैं.
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