नि:शक्तों को वह सब अधिकार मिला हुआ है, जो एक सामान्य व्यक्ति को है. नि:शक्तता के आधार पर उसके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता, बल्कि एक सामान्य व्यक्ति के मुकाबले उसकी शारीरिक या मानसिक कमी की भरपाई के लिए उसके साथ विशेष व्यवहार किया जाना है. शारीरिक रूप से नि:शक्त व्यक्ति के मामले में समाज का नजरिया बदला भी है, लेकिन मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति के प्रति अब भी हमारी सोच करीब-करीब वही है. यह सोच न केवल अमानवीय है, बल्कि उस सोच के तहत व्यवहार कानून की नजर में अपराध भी है. ऐसे व्यक्ति के साथ उपेक्षा, उपहास या बुरा व्यवहार सजा के दायरे में आता है. इसलिए मानसिक या शारीरिक रूप से नि:शक्त व्यक्ति के प्रति व्यवहार को लेकर हमें अपनी सोच बदली चाहिए. उन्हें समान अवसर का लाभ मिले, हमें इसके लिए सही माहौल भी बनाना चाहिए. अक्सर अनजाने में हम ऐसा व्यवहार कर बैठते हैं, जो ऐसे व्यक्ति के स्वाभिमान को ठेस पहुंचता है और हमें कानूनी रूप से अपराधी बनाता है. दूसरी ओर अपने अधिकार की जानकारी नहीं रहने पर अक्सर नि:शक्त व्यक्ति ऐसे व्यवहार का विरोध भी नहीं कर पाते हैं. खास कर अवसर के मामले में. हम इस अंक में इसी विषय पर बात कर रहे हैं.
आरके नीरद
नि:शक्तों को समानता का अधिकार देने के लिए नि:शक्त व्यक्ति अधिनियम, 1995 है. यह उन्हें समान अवसर और अपनी शारीरिक व मानसिक कमी की भरपाई के लिए विशेष सुविधा का अधिकार देता है. यह उनके लिए सुरक्षा का कानूनी अधिकार है. इन अधिनियम के द्वारा नि:शक्त जनों को कानूनी मान्यता मिली हुई है. इसमें विभिन्न प्रकार की नि:शक्तता की कानूनी परिभाषा भी है. शासन, व्यक्ति और समाज के लिए इसे मानना बाध्यकारी है. इसके मुताबिक केंद्र और राज्य सरकारों का यह कर्तव्य है कि वे इसके साथ भेदभाव की रोकथाम के लिए जरूरी उपाय करें. साथ ही नि:शक्तता को रोकने का भी इन्हें प्रयास करना है. इसके तहत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना, स्वास्थ्य और सफाई संबंधी सेवाओं में सुधार, वर्ष में कम से कम एक बार बच्चों के स्वास्थ्य की जांच, जोखिम वाले मामलों की पहचान, प्रसव पूर्व और प्रसव के बाद मां और शिशु के स्वास्थ्य की देखभाल, नि:शक्तता की रोकथाम के लिए इसके कारण और बचावकारी उपायों, जागरूकता का प्रसार करना शामिल है.
नि:शुक्तों को शिक्षा का अधिकार
प्रत्येक नि:शक्त बच्चे को अठारह वर्ष की आयु तक उपयुक्त वातावरण में नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार है. सरकार को विशेष शिक्षा प्रदान करने के लिए विशेष स्कूल स्थापित करने चाहिए. सामान्य स्कूलों में नि:शक्त छात्रों के एकीकरण को बढ़ावा देना चाहिए और नि:शक्त बच्चों के व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए अवसर मुहैया कराने चाहिए. पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई कर चुके नि:शक्त बच्चे मुक्त स्कूल या मुक्त विश्वविद्यालयों के माध्यम से अंशकालिक छात्रों के रूप में अपनी शिक्षा जारी रख सकते हैं और सरकार से विशेष पुस्तकें और उपकरणों को नि:शुल्क प्राप्त करने का उन्हें अधिकार है.
सरकार देगी सहायता
सरकार का यह कर्तव्य है कि वह नये सहायक उपकरणों, शिक्षण सहायक साधनों और विशेष शिक्षण सामग्री का विकास करे ताकि नि:शक्त बच्चों को शिक्षा में समान अवसर प्राप्त हों. नि:शक्त बच्चों को पढ़ाने के लिए सरकार को शिक्षण प्रशिक्षण संस्थान स्थापित करने हैं, विस्तृत शिक्षा संबंधी योजनाएं बनानी हैं, नि:शक्त बच्चों को स्कूल जाने-आने के लिए परिवहन सुविधाएंदेनी हैं, उन्हें पुस्तकें, वर्दी और अन्य सामग्री, छात्रवृत्तियां, पाठ्यक्रम और नेत्रहीन छात्रों को लिपिक की सुविधाएं देना है.
तीन फीसदी पद आरक्षित
दृष्टिहीनता, श्रवण नि:शक्त और प्रमस्तिष्क अंगघात से ग्रस्त नि:शक्तनों की प्रत्येक श्रेणी के लिए तीन फीसदी पदों का आरक्षण होगा. इसके लिए प्रत्येक तीन वर्षों में सरकार द्वारा पदों की पहचान की जायेगी. भरी गयी रिक्तियों को अगले वर्ष के लिए ले जाया जा सकता है. नि:शक्तजनों को रोजगार देने के लिए सरकार को विशेष रोजगार केंद्र स्थापित करने हैं. सभी सरकारी शैक्षिक संस्थान और सहायता प्राप्त संस्थान तीन फीसदी सीटों को विकलांगजनों के लिए आरक्षित रखेंगे. रिक्तियों को गरीबी उन्मूलन योजनाओं में आरक्षित रखना है. नियोक्ताओं को प्रोत्साहन भी देना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके द्वारा लगाये गये कुल कर्मचारियों में से पांच फीसदी व्यक्ति नि:शक्त हैं.
पुनर्वास की सुविधा
आवास और पुनर्वास के लिए ऐसे लोगों को रियायती दर पर जमीन के तरजीही आवंटन के हकदार होंगे. परिवहन सुविधाओं, सड़क पर यातायात के संकेतों या निर्मित वातावरण में कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा. सरकारी रोजगार के मामलों में नि:शक्त व्यक्तियों के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा.