– तंत्र-मंत्र के जरिये जीवन के सभी कष्टों को दूर करने का उपाय बताने वाले हिंदुस्तान ही नहीं पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में बहुतेरे हैं. लेखक का पाकिस्तान आना-जाना लगा रहता है. उनकी कराची शहर में ऐसे ही एक बाबा से मुलाकात हो गयी. पढ़िए ये दिलचस्प किस्सा.. –
।। हुसैन कच्छी ।।
एक दिन कराची की एक व्यस्त सड़क से गुजरते हुए अचानक दीवार पर छपे एक इश्तहार ने मेरा ध्यान खींच लिया, उस इश्तहार में यह खास बात थी कि वो उर्दू में था, जिसमें ‘आमिल चमन दास’ का नाम बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था और साथ थोड़े छोटे अक्षरों में दर्ज था ‘हर तमन्ना पूरी’ और फिर एक मोबाइल नंबर लिखा था.
हैरत इस बात पर थी कि ‘आमिल’ आम तौर पर मुसलमान होते हैं और ऐसा माना जाता है कि लगातार (निरंतर) इबात और रियाजत के अमल की वजह से उनके अंदर ऐसी गैबी ताकत पैदा हो जाती है कि वह जिन्न, देवों और परियों को अपने वश में कर लेते हैं, जो उनके कहने या हुक्म देने पर ऐसे काम भी कर देते हैं, जो आम तौर पर नहीं हो पाते इसलिए जरूरतमंद लोग इस तरह के नामुमकिन या मुश्किल कामों को सरअंजाम देने के लिए उनके पास जाते थे, लेकिन यहां आमिल का नाम चमन दास लिखा था, जिसकी वजह से मेरे अंदर जिज्ञासा बढ़ी कि मैं इन जनाब से मिलूं, मैंने मोबाइल नंबर पर रिंग किया और बताया कि मैं हिंदुस्तान से आया हूं और आपसे मिलना चाहता हूं, कुछ देर सोचने के बाद उन्होंने दूसरे दिन मिलने का टाइम दे दिया, उसके बाद कार पर घूमते हुए मैंने शहर के कईइलाकों में इसी तरह के और भी इश्तेहार देखे, जिनमें बड़े-बड़े अक्षरों में ये नाम लिखे हुए थे.
खैर, दूसरे दिन मैं तयशुदा टाइम पर आमिल चमन दास के यहां पहुंच गया, थोड़े इंतजार के बाद उनसे मुलाकात हुई, तो मैं हैरान हो गया क्योंकि सामने एक बुजुर्ग तख्त पर विराजमान थे जो चेहरे और हुलिये से पूरी तरह मुसलमान लग रहे थे और मेरे जेहन में चमन दास की घंटी बज रही थी, मैंने माजरा दरयाफ्त किया, तो उन्होंने कहा कि यह तो उनका पुश्तैनी काम है, बुजुर्गो से जो इल्म सीना ब सीना चला आया है और जो मुरशिद के फैज से ईश्वर ने बख्शा है, उसी के बल पर वह खुदा के बंदों की खिदमत करते आ रहे हैं.
मैंने पूछा तो फिर ये हिंदू नाम आपने क्यों रख छोड़ा है, उन्होंने जवाब दिया भाई नामों में क्या रखा है, ये तो एक सिलसिला है, जो सदियों से जारी है, लोग जिंदगी भर इसका फैसला नहीं कर पाये कि कबीर हिंदू थे या मुसलमान, नानक ने बाबा फरीद में क्या देखा कि उनके पैरों की धूल माथे पर लगा ली.
असम और बंगाल से लेकर ईरान-इराक तक, और कश्मीर से लंका तक कौन-सी धारा बहती है, जो सरहदों से अलग होने और मजहबी (धार्मिक) इंतेहापसंदियों के बावजूद हर मजहब, हर क्षेत्र, हर भाषा के लोगों को हम तक खींच लाती है, ये दर्द/ दिलों का रिश्ता है जनाब और हम तो बस लोगों का दर्द बांटते हैं और ये नहीं देखते कि यह दर्द किसका है, हिंदू का या मुसलमान का, हिंदुस्तानी का या पाकिस्तानी का. छोटी-सी मुलाकात के बाद मैं बाहर निकला, तो सोच रहा था..काश कि इसी तरह सरहद के दोनों तरफ बैठे सियासत दां भी सोचते तो हिंदुस्तान-पाकिस्तान के दरम्यान पैदा हुई दूरियां कुछ तो कम हो जातीं.