-सेंट्रल डेस्क-
हाल ही में अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्रिका ‘टाइम’ ने दुनिया के सर्वाधिक प्रभावशाली लोगों की एक सूची जारी की है. इस सूची में दुनिया के सर्वाधिक असरदार नेताओं की श्रेणी में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे को भी शामिल किया गया है. उन्हें जापान को आर्थिक संकट और लुंजपुंज हाल से निकालने का श्रेय दिया जाता है. वह सोमवार को भारत के नये प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने जा रहे नरेंद्र मोदी के प्रशंसक हैं. इसका सबूत यह है कि ट्विटर पर वह सिर्फ तीन लोगों को फॉलो करते हैं. इनमें उनकी पत्नी के साथ नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं. पहली कड़ी में आज पढ़ें शिंजो अबे को.
एक हमलावर राजशाही से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में जापान का बदलाव, 20वीं सदी की न भुलायी जा सकनेवाली कहानियों में से एक है. लेकिन दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने के तकरीबन 70 साल बाद, उसकी तरक्की का इंजन ठहर गया. 2011 में चीन ने नंबर दो का दरजा जापानी अर्थव्यवस्था से छीन लिया. जापान और अन्य पड़ोसी देशों के साथ सीमाई विवादों को तेज कर बीजिंग अपने बाहुबल का प्रदर्शन कर रहा है.
इस बीच जापान की आबादी बूढ़ी हो रही है और घट रही है. सारी तकनीकी जादूगरी होने के बावजूद देश एक ऐसी प्रेरक शक्ति का अभाव महसूस कर रहा है जो इसके उदय को गति दे सके. जब जापान अपनी आत्मा तलाश रहा है, तो ऐसे में प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने खुद को राष्ट्रीय तारनहार के रूप में पेश किया है. 59 वर्षीय अबे दुर्लभ चुनावी जनादेश की ताकत से लैस हैं. विश्व मंच पर अप्रासंगिक होने की ओर धीरे-धीरे बढ़ रहे जापान के पतन को रोकने की उन्होंने कसम खायी है. दो दशकों तक अर्थव्यवस्था में लगातार सिकुड़न के बाद जापान इस हाल में पहुंचा है. ऐसे में देश को एक मजबूत रीढ़ देने की जरूरत थी और यह काम किया है शिंजो अबे ने. वह एक ऐसे राष्ट्रवादी नेता हैं जो अपने देश को फिर से भविष्य की ओर ला रहे हैं. इसमें कोई शक नहीं कि वह जापान- और शायद इस महाद्वीप- के सबसे परिणामदायी नेता हैं.
शिंजो को ऐसे देश में बड़ा बहुमत मिला जहां पिछले कुछ सालों में काफी राजनीतिक अस्थिरता रही थी. यहां छह सालों में छह प्रधानमंत्री बदल चुके थे. वर्ष 2007 में शिंजो का पहला कार्यकाल सिर्फ एक साल बाद अचानक खत्म हो गया था. वह इस पद पर दोबारा दिसंबर 2012 में आये. उस वक्त जापान कूटनीतिक, राष्ट्रीय सुरक्षा और अर्थव्यवस्था- तीनों ही मोरचों पर चिंताजनक स्थिति में था. उन्होंने आर्थिक सुधार कार्यक्रम लागू किया जिसे लोग ‘अबेनोमिक्स’ भी कहते हैं. उनकी अर्थनीति के केंद्र में वृद्धि (ग्रोथ) है. इसमें बड़ी वित्तीय रियायतें, लचीली मौद्रिक नीति और निजी निवेश को बढ़ावा देना शामिल है. अबे ने अर्थव्यवस्था में संकुचन पर अब भी पूरी तरह काबू नहीं पाया है, लेकिन 22 साल बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि जब छोटे और मंझोले कारोबारियों का भरोसा लौटा है.
जापान और चीन के तनावपूर्ण रिश्ते आज पूरी दुनिया में चर्चा का विषय हैं. दोनों देशों के बीच विवाद का केंद्र पूर्वी चीन सागर स्थित सेनकाकू द्वीप-समूह है. जापान इसे स्वाभाविक रूप से अपना क्षेत्र मानता है, लेकिन चीन भी इस पर दावा करता है. सेनकाकू के पास जापान की जल सीमा का चीन के सरकारी जहाज बार-बार अतिक्रमण करते रहते हैं. चीन ऐसी ही हरकत दक्षिण चीन सागर में भी अपने पड़ोसियों के साथ कर रहा है. शिंजो इस मामले में पूरी दृढ़ता से चीन के खिलाफ खड़े हुए हैं. हालांकि वह चीन से बातचीत को भी तैयार हैं. पिछले दिनों, दक्षिण चीन सागर में वियतनाम के लिए तेल खोज को लेकर भारत-चीन के बीच हुए विवाद के बाद चीन के खिलाफ गोलबंदी मजबूत करने के लिए शिंजो ने भारत से भी संपर्क बढ़ाया है.
शिंजो खुद को देशभक्त कहते हैं. वह मानते हैं कि कोई ऐसा राजनेता नहीं होगा जो देशभक्त न हो. वह युद्ध से हमेशा के लिए दूर रहने की बात तो करते हैं, पर दूसरे विश्वयुद्ध में उन शहीद सैनिकों को गर्व से याद करते हैं जिन्हें पश्चिमी दुनिया हमलावर और युद्ध अपराधी कहती है. विश्वयुद्ध के बाद जापान का संविधान अमेरिकियों द्वारा लिखा गया जो जापान को एक सामान्य सेना रखने से वंचित करता है. वह इस बारे संविधान में बदलाव चाहते हैं.
शिंजो जापान के एक प्रमुख राजनीतिक परिवार से आते हैं. उनके पिता शिनतारो अबे देश के विदेश मंत्री रहे थे. उनके नाना नोबुसुके किशी जापान की युद्धकालीन कैबिनेट के सदस्य थे और वह बाद में देश के प्रधानमंत्री भी बने थे. वहीं उनके दादा सांसद थे और तोजो की कैबिनेट और अमेरिका के खिलाफ युद्ध में जाने के खिलाफ थे.अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी को वह बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं. वह उद्यमियों से अक्सर एक बात कहते हैं : ‘‘अगर लेहमन ब्रदर्स ‘लेहमन ब्रदर्स एंड सिस्टर्स’ होता तो यह कभी दीवालिया नहीं होता. हिलेरी क्लिंटन कहती हैं कि अगर जापान ने अपनी महिला शक्ति का ज्यादा इस्तेमाल किया होता तो उसका सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 16 फीसदी बढ़ जाता. अबे ने तय किया है कि सरकार जो भी नयी नौकरियां देगी उनमें कम से कम 30 फीसदी महिलाएं होंगी. उन्होंने सभी सूचीबद्ध बड़ी कंपनियों से आग्रह किया है कि उनके यहां कम से एक महिला बोर्ड सदस्य जरूर होनी चाहिए, चाहे वह विदेशी ही क्यों न हो.