<p>"मैं हमेशा से वर्दी वाली ही नौकरी करना चाहती थी लेकिन इस नौकरी के लिए मुझे सबके साथ और अपने आप से भी लड़ाई करनी पड़ी."</p><p>ये कहते हुए उत्तर प्रदेश के उरई के एक छोटे से गांव अतौरिया में रहने वाली नूर फ़ातिमा हंसने लगती हैं. बात करते-करते वो अचानक संजीदा हो जाती हैं और कहती हैं, "ये सब मेरे लिए सपने जैसा है…"</p><p>28 साल की नूर फ़ातिमा को हाल में दिल्ली हाईकोर्ट ने समाज और देश की दूसरी औरतों के लिए एक मिसाल बताया है. </p><p>नूर ने 2015 में सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फ़ोर्स की परीक्षा पास की थी, लेकिन नौकरी ज्वाइन करने में उन्हें तीन साल लग गए.</p><p>2015 में हुई परीक्षा में पूरे भारत में नूर की तीसरी रैंक आई थी लेकिन ज्वाइन करने के महज़ 10 दिन पहले उन्हें कुछ गंभीर चोटें आ गईं और वो इस हालत तक पहुंच गईं कि उनके लिए चलना-फिरना भी दूभर हो गया.</p><p>सीआईएसएफ़ ने उन्हें दो और मौक़े दिए ताकि वो सेवा ज्वाइन कर सकें. लेकिन नूर बिस्तर से उठ नहीं सकती थीं. आख़िर तीन साल बाद जब वो ठीक हुईं तो सीआईएसएफ़ ने उन्हें सेवा में ज्वाइन करने से मना कर दिया. </p><p>लेकिन नूर को तो हर हाल में वर्दी पहननी थी. इसलिए वो उन्होंने इन मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. कोर्ट ने उनकी बात सुनी और उनके हक़ में <a href="http://lobis.nic.in/ddir/dhc/PRA/judgement/31-05-2018/PRA23052018CW56122018.pdf">फ़ैसला सुनाया</a> और कहा कि वो अपने समाज के लिए एक मिसाल बनेंगी.</p><hr /> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44370166">महिला पुलिसकर्मी ने लावारिस नवजात को अपना दूध पिलाया</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44163609">अपने गांव में गर्व के साथ बनीं ‘रानी मिस्त्री'</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-40401829">’मैं रात 11 बजे सड़क पर अकेली थी'</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-38890331">नाम मुस्लिम हो तो नौकरी मिलनी कितनी मुश्किल?</a></li> </ul><hr /><h1>नूर फ़ातिमा की कहानी</h1><p>नूर फ़ातिमा हाल के दिनों में चर्चा में आईं हैं, लेकिन सही मायनों में उनकी कहानी तो कहीं और से ही शुरू होती है.</p><p>उरई के एक गांव अतौरिया की रहने वाली नूर फ़ातिमा चार भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं. उन्हें माता-पिता का दुलार तो खूब मिला लेकिन परिवार में आर्थिक तंगी भी हमेशा रही. </p><p>उनकी शुरुआती पढ़ाई उरई के नवोदय स्कूल में हुई. स्कूल में पढ़ने के दौरान ही नूर ने तय कर लिया था कि बड़ी होकर उन्हें वर्दी पहननी है. </p><p>वो कहती हैं, "मेरा सपना था कि मैं वर्दी वाली नौकरी करूं. स्कूल के बाद ग्रेजुएशन कर लिया फिर घर पर बताया कि मैं ऐसा कुछ करना चाहती हूं लेकिन घर पर कोई तैयार नहीं हुआ."</p><p>नूर बताती हैं, "जैसे ही मैंने फौज में जाने की बात कही सब नाराज़ हो गए. मेरी शादी की बात होने लगी. लोग मेरे परिवार वालों से कहते कि लड़की को इतना पढ़ाकर और नौकरी से क्या करना है. इसकी शादी करा दो. वो मेरे लिए बहुत बुरा वक्त था."</p><p>नूर के गांव में अब भी ज़्यादातर लोगों को यही लगता है कि बेटी को पढ़ाना पैसे बर्बाद करना है, नौकरी के लिए उन्हें तैयार करने की बात तो दूर थी.</p><p>कई लोगों को लगता था कि ट्रेनिंग के दौरान अगर चेहरे पर चोट लग गई तो… शरीर के किसी हिस्से पर चोट आ गई तो… शादी कैसे होगी?</p><p>नूर कहती हैं, "सबसे ज़्यादा चिंता इस बात की थी कि उम्र बढ़ रही है तो शादी कौन करेगा. घर पर कोई राज़ी नहीं था कि मैं फॉर्म भरूं लेकिन मैंने किसी की बात नहीं सुनी. "</p><p>नूर ने 2014 में पहली बार में परीक्षा पास कर ली लेकिन अंडरवेट होने की वजह से वो आगे नहीं बढ़ पाईं. नूर ने भी मान लिया कि अब वो नौकरी नहीं कर पाएंगी. लेकिन किस्मत उन्हें दूसरा मौक़ा देना चाहती थी.</p><p>नूर कहती हैं कि "सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फ़ोर्स का फॉर्म भरना वाकई किस्मत की बात थी. फ़ॉर्म भरने के लिए जो अधिकतम आयु सीमा थी मैं उससे सिर्फ़ 90 दिन छोटी थी. फॉर्म भरने के साथ ही मैंने तय कर लिया था कि चाहे जो हो जाए मुझे हर सूरत में क्वालिफाई करना ही है." </p><h1>बीमारी और रिजेक्शन का दर्द</h1><p>2015 में नूर ने दोबारा यह परीक्षा दी और जब रिजल्ट आया तो उन्होंने ऑल इंडिया में तीसरा स्थान हासिल किया. वो कहती हैं, "मेरे रिजल्ट के बाद मेरे घरवालों की सोच बदली लेकिन ज्वाइन करने के दस दिन पहले ही मुझे चोटें आ गईं और डॉक्टर ने मुझे पूरी तरह आराम करने को कह दिया." </p><p>नूर चाहती थीं कि ट्रेनिंग के दौरान वो सबसे अच्छा प्रदर्शन करें और किसी भी मामले में पिछड़ें नहीं. इसलिए उन्होंने रिजल्ट आने के बाद खुद ही घर पर ट्रेनिंग शुरू कर दी. इसी दौरान उन्हें चोटें आ गई थीं.</p><p>उनका सपना बस, पूरा होते-होते रह गया… हालांकि सीआईएसएफ़ ने दो बार उनकी ज्वानिंग की तारीख़ आगे बढ़ाई लेकिन नूर अपनी सेहत से जूझती रहीं.</p><p>लगभग तीन साल बाद जब वो फिर से दुरुस्त हुईं और ज्वाइन करना चाहा तो सीआईएसएफ़ की ओर से उन्हें रेड सिगनल दिखा दिया गया. </p><p>नूर बताती हैं "ये बहुत ही डरावना था. मैं फिर से परीक्षा नहीं दे सकती थी. मेरी उम्र हो चुकी थी. उस छोटे से गांव में बिस्तर पर पड़े-पड़े तीन साल हो चुके थे. कोई रास्ता समझ नहीं आ रहा था कि किससे मदद मागूं, किससे कहूं कि मैं नौकरी करना चाहती हूं." </p><p>एक तरफ नूर रिजेक्ट होने के सदमें में थीं तो दूसरी तरफ घरवालों ने उन पर शादी का दबाव बनाना शुरू कर दिया. फिर एक दिन नूर अपना झोला उठाकर दिल्ली आ गईं. यहां उनकी मुलाक़ात गरिमा सचदेव से हुई. गरिमा दिल्ली हाई कोर्ट में वकील हैं और सर्विस मैटर्स देखती हैं. </p><h1>कोर्ट ने सच किया सपना</h1><p>गरिमा से मिलने से पहले नूर बहुत से वक़ीलों से मिल चुकी थीं और हताश भी हो चुकी थीं.</p><p>शुरुआत में गरिमा को भी बहुत उम्मीद नहीं थी लेकिन उन्होंने एक चांस लिया. मई में इस मामले की सुनवाई हुई और क़रीब 45 मिनट की बहस के बाद फ़ैसला नूर के हक़ में आया.</p><p>नूर को सीआईएसएफ़ से कोई शिकायत नहीं है. वो कहती हैं "उनसे किसी तरह की कोई शिकायत नहीं है. उन्होंने तो सोचा था मेरे बारे में. दो बार एक्सटेंशन भी दिया था."</p><p>वहीं सीआईएसएफ़ के एक अधिकारी ने बताया कि नूर की ज्वाइनिंग को दो बार आगे बढ़ाया गया था लेकिन हम भी नियमों से बंधे हुए हैं और अब जब कोर्ट का फ़ैसला आ गया है तो जल्दी ही उन्हें चिट्ठी भेज दी जाएगी.</p><p>नूर बताती हैं कि "अब मेरे घरवालों ने शादी के बारे में बात करना बंद कर दिया है. वो खुश हैं कि मैंने जो सपना देखा उसे हासिल किया."</p><p>"मैं अब पुरानी कोई बात याद नहीं करना चाहती. अच्छी बात ये है कि अब मेरे घरवालों की सोच बदल गई है वो समझने लगे हैं कि पहचान का लड़का-लड़की से कोई लेना-देना नहीं है. पहचान की ज़रूरत सबको होती है."</p><hr /> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-43934797">चार साल के बेटे की माँ के लिए कितना मुश्किल था टॉप करना</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44054874">’मुझे देखने के लिए सड़क पर रुक जाते थे लोग'</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-44267275">500 में 499 अंक, ये हैं सीबीएसई 12वीं की टॉपर मेघना</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44384333">मज़दूर की टॉपर बेटी की कहानी जिसने चूहे मारने की दवा से की आत्महत्या</a></li> </ul><hr /><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong> और </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
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सपना पूरा करने के लिए हार न मानने वाली नूर
<p>"मैं हमेशा से वर्दी वाली ही नौकरी करना चाहती थी लेकिन इस नौकरी के लिए मुझे सबके साथ और अपने आप से भी लड़ाई करनी पड़ी."</p><p>ये कहते हुए उत्तर प्रदेश के उरई के एक छोटे से गांव अतौरिया में रहने वाली नूर फ़ातिमा हंसने लगती हैं. बात करते-करते वो अचानक संजीदा हो जाती हैं और […]
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