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ग्राउंड रिपोर्ट: ”… वो ड्राइवर वहां लोगों को मारने आया था”

मैं जब इतवार को श्रीनगर में डाउनटाउन के नौहट्टा चौक पहुंचा तो यहां की सभी दुकानें बंद थीं. जब भी किसी से पूछने की कोशिश की कि शुक्रवार की घटना के बारे में आप क्या जानते हैं तो हर एक का क़रीब-क़रीब यही जवाब था कि जब घटना पेश आई उस समय ‘मैं यहां मौजूद […]

मैं जब इतवार को श्रीनगर में डाउनटाउन के नौहट्टा चौक पहुंचा तो यहां की सभी दुकानें बंद थीं. जब भी किसी से पूछने की कोशिश की कि शुक्रवार की घटना के बारे में आप क्या जानते हैं तो हर एक का क़रीब-क़रीब यही जवाब था कि जब घटना पेश आई उस समय ‘मैं यहां मौजूद नहीं था’.

नौहट्टा चौक पर बैठा हर व्यक्ति शुक्रवार की घटना से डरा और सहमा नज़र आ रहा था. शुक्रवार की घटना के बारे में बात न करने की वजह ये भी थी कि कोई भी अनजान इंसान से बात नहीं करना चाहता है.

बीते शुक्रवार को भारत प्रशासित कश्मीर के श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में सीआरपीएफ की एक जिप्सी ने तीन लोगों को कुचल दिया था. इनमें से 21 वर्ष के कैसर अहमद बट की शुक्रवार देर रात अस्पताल में मौत हो गई. इस घटना के बाद कश्मीर में एक बार फिर तनाव की स्थिति पैदा हो गई है.

शुक्रवार को क्या हुआ था?

बहुत कोशिश के बाद चौक के एक तरफ अपनी बंद दुकान के आगे बैठे एक शख्स घटना के बारे में बात करने पर तैयार हो गए.

नौहट्टा चौक में अपनी दुकान चलाने वाले और घटना के समय वहां मौजूद रहे व्यक्ति ने बीबीसी को बताया, " मैं अपनी दुकान के पास खड़ा था. यहां सीआरपीएफ की गाड़ी अचानक आ गई. यहां लोगों की काफी भीड़ पहले से ही मौजूद थी. जब सीआरपीएफ की जिप्सी लोगों के बीच में चली गई तो बहुत पथराव हुआ."

उन्होंने आगे बताया, " पथराव के बीच जिप्सी ने न आगे देखा न पीछे देखा. जिप्सी ने एक को गाड़ी के नीचे कुचल दिया और दूसरे को धक्का मार कर उसके ऊपर चढ़ गई. फिर जिप्सी नौहट्टा थाने की तरफ भाग गई. यहां उस समय कोई भी पुलिसवाला या सीआरपीएफ़ का जवान मौजूद नहीं था."

उन्होंने ये भी कहा, "यहां किसी भी सुरक्षाकर्मी को उस दिन आने की इजाज़त नहीं थी. यहां से आगे पथराव चल रहा था और सुरक्षाकर्मी इसे काबू करने की कोशिश में थे. तभी ख्वाजा बाज़ार की तरफ से जिप्सी आ गई. जो भी बीच में आया उसको धक्का मारा. उस दौरान दो लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. जब जिप्सी दो लोगों के ऊपर चढ़ गई तो फिर ड्राइवर ने जिप्सी को वापस पीछे किया और उनको रौंदते हुए भाग गया."

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दोस्त की ज़ुबानी, पूरी कहानी

इस दुकानदार का कहना था कि जिस दिन ये घटना हुई उस दिन यहां कोई भी पुलिसकर्मी या सीआरपीएफ जवान मौजूद नहीं था.

वो आगे कहते हैं, "यहां हर जुमा को एहतिजाज (विरोध प्रदर्शन) होता है. हुर्रियत एहतिजाज के लिए कहे या न कहे लेकिन यहां एहतिजाज होता है. मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ ने भी कहा था कि यहां जुमा के दिन कोई भी सिक्योरिटी नहीं रहनी चाहिए. इससे पहले वाले जुमा को यहां पुलिस और सीआरपीएफ ने काफी शेलिंग की थी और जामा मस्जिद में भी बहुत शेलिंग की. उसके बाद मीरवाइज़ ने कहा था कि यहां किसी भी तरह की सिक्योरिटी नहीं होनी चाहिए."

कैसर के एक दोस्त ने बताया, "उस दिन हम एकसाथ नमाज़ पढ़ने जामा मस्जिद गए थे. उन्होंने कहा कि हम नमाज़ अदा करने के बाद मस्जिद के बाग़ में बैठे थे और बाहर से कुछ शोर आया."

उन्होंने बताया," जुमे के दिन जब मैं दिन के एक बजे घर से बाहर निकला तो कैसर बाइक पर था और उन्होंने मुझसे कहा कि चलो आज हम जामा मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हैं. जब हम जामा मस्जिद पहुंचे तो वो बहुत खुश था. हमने जामा मस्जिद पहुंचकर नमाज़ अच्छे से पढ़ी."

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घटना को लेकर उठे सवाल

कैसर के दोस्त ने कहा, "जब हम मस्जिद से बाहर निकले तो वहां पर पथराव हो रहा था. हम एकतरफ बैठे थे. इस दौरान सीआरपीएफ़ की जिप्सी आ गई. उस गाड़ी पर पथराव हो गया. जब जिप्सी नौहट्टा चौक में पहुंची तो गाड़ी का ड्राइवर बेक़ाबू हो गया. पहले जिप्सी ने कैसर को टक्कर मारी और जब वो जिप्सी के नीचे आ गया तो उसके बाद वहां एक और आदमी थे मौलवी साहब, फिर जिप्सी ने उसको टक्कर मारी. दोनों ही टायर के नीचे आ गए. ड्राइवर ने दोनों के ऊपर गाड़ी चढ़ा दी."

उन्होंने आगे बताया, "दोनों को गाड़ी में उठाया गया और उन्हें अस्पताल ले जाया गया. उसके बाद जिप्सी जब वहां से निकली तो जिप्सी ने एक और लड़के को टक्कर मार दी. जिप्सी की स्पीड सौ के क़रीब थी. आप वीडियो में देख सकते हैं कि जिप्सी ने वहां मौजूद एक साइकिल को टक्कर मार दी. साइकिल एक जगह से दूसरी जगह पहुंचकर फिर अपनी जगह वापस आ गई. इतनी तेज़ रफ़्तार से जिप्सी जा रही थी."

कैसर के दोस्त ने आगे कहा, "इस बात से यही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि वो वहां लोगों को मारने आया था. और भी दो रास्ते थे, जहां से ये गाड़ी जाती और आराम से वो वहां से चली जाती. न कोई पत्थर मारता और न कुछ होता, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. जहां पर पथराव चल रहा था गाड़ी ने इसी रास्ते को क्यों चुना? दूसरी बात ये कि वहां बहुत धुआं था. आप वीडियो में भी देख सकते हैं. जब जिप्सी दायें हाथ को मुड़ी तो इसने तीन लोगों को कुचला."

‘मजबूरी है पत्थर उठाना’

इस घटना के एक और चश्मदीद ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बीबीसी को बताया, "मैं जुमा की नमाज़ पढ़कर घर से आया और मैंने सोचा कि मैं जामा मस्जिद की तरफ चक्कर लगाऊं. मैं जामा मस्जिद पहुंचा और वहां नमाज़ अदा हो गई थी. मैंने देखा शोर शराबा हो रहा था. मैंने सोचा कि बात क्या है? जब मैं नौहट्टा चौक पहुंचा, जहां ये घटना हुई थी, मैंने दायीं तरफ से नज़र दौड़ाई तो वहां तेज़ रफ़्तार के साथ सीआरपीएफ की जिप्सी आ रही थी. उसने ये नहीं देखा कि ये इंसान हैं या जानवर."

उन्होंने आगे कहा, "वहां लड़कों की काफी भीड़ थी. मैंने अपनी आंखों से जो देखा, लगा कि मैं अपनी आंखों को बंद कर लूं. जब यूनिस साहब के ऊपर गाड़ी चढ़ाई गई और फिर आगे चलकर एक पंद्रह वर्ष के बच्चे को भी गाड़ी ने टक्कर मारी. जब जिप्सी निकल गई तो मैंने उसको उठाया. मुझे लगा कि वो खड़ा हो पाएगा, लेकिन वो गिर गया. जब ये घटना हो गई तो फिर हमने भी आगे पीछे नहीं देखा. जब हमारे भाइयों का ये हाल हुआ तो कौन आराम से बैठता? अब जो सीआरपीएफ कह रही है कि भीड़ हमारे जवानों को लिंच करती तो ऐसा बिल्कुल नहीं है. जब गाड़ी हमारे भाई पर चढ़ गई तो क्या हम हाथ पर हाथ धरे बैठ जाते? जब गाड़ी ने कुचला तो हम पत्थर उठाने पर मजबूर हो गए."

जनाज़े को नहीं दिया सम्मान!

इस चश्मदीद का ये भी दावा था कि जब कैसर का जनाज़ा जा रहा था तो पुलिस ने उस समय भी मातमदारों पर शेलिंग की.

वो कहते हैं, "जब हम अपने भाई का जनाज़ा लेकर जा रहे थे तो किसी के हाथ में खुदा की क़सम पत्थर नहीं था. हमने इरादा किया था कि फतेहकदल चौक में जनज़ा अदा करेंगे. जब हम वहां पहुंचे तो वहां पुलिस के कई अधिकारी भी मौजूद थे. उन्होंने ऐसी शेलिंग की कि सीधा मातमदारों को निशाना बनाया. हम इतने डरे कि हमने इरादा किया कि हम जनाज़ा नीचे रखकर भाग़ जाएंगे. इन्होंने इस बात की भी परवाह नहीं की कि ये शहीद हो गया है और जनाज़े का सम्मान करना चाहिए. लेकिन इन्होंने इतना भी नहीं किया."

घर पर मातम

दो बहनों के भाई कैसर के माता-पिता आठ साल पहले मर चुके हैं. बीते कई वर्षों से वो श्रीनगर के डलगेट में अपने चाचा के घर रहते थे.

कैसर के घर में लोगों की काफी भीड़ उमड़ आई थी. हर एक व्यक्ति गहरी सोच में डूबा था.

मकान की दूसरी मंज़िल में कई सारी महिलाएं थीं. महिलाएं अख़बार में कैसर की मौत की खबर पढ़ रही थीं. महिलाओं के बीच कैसर की दो बहनें भी मौजूद थीं. कैसर की एक बहन क़ानून की पढ़ाई कर रही है और दूसरी बारहवीं क्लास में पढ़ाई कर रही है.

कैसर ने खुद बारहवीं क्लास तक पढ़ाई की थी. मां-बाप की मौत के बाद कैसर पर घर की ज़िम्मेदारी बढ़ गयीं थीं. वो अभी पश्मीने का कारोबार करते थे.

बीते कई महीनों से वो वीज़ा हासिल करने की कोशिश कर रहे थे. उन्हें विदेश से नौकरी की पेशकश मिली थी.

‘शरीफ बच्चा खो दिया’

कैसर के चाचा नज़ीर अहमद बट कहते हैं कि उनके खानदान ने एक बहुत ही शरीफ बच्चा खो दिया.

उन्होंने बताया," जुमा के दिन कैसर ने अपनी बुआ से कहा कि मैं नमाज़ पढ़ने जामा मस्जिद जा रहा हूं और आप भी मेरे साथ चलो. कैसर ने उनसे ये भी कहा कि मैं नमाज़ पढ़कर वहां कुछ देर आराम भी करूंगा. उनकी बुआ, जो मेरी पत्नी भी हैं, ने कहा कि नहीं मैं नमाज़ के बाद कैसे इतने समय तक आपका इन्तज़ार करूंगी. इसलिए आप अकेले चले जाएं तो वो चले गए. नमाज़ पढ़ने के बाद उन्होंने कुछ देर आराम भी किया."

नज़ीर बट ने आगे बताया, "इतने में बाहर से कुछ आवाज़ें आईं, जैसे कुछ प्रदर्शन हो रहे थे तो ये बाहर आ गए. बाहर लोगों की भागा-दौड़ी हो रही थी. इतने में सीआरपीएफ की एक जिप्सी आ गई थी. लोग भाग रहे थे और शायद उसको पत्थर मार रहे थे. उसने किसी को ज़ख़्मी कर दिया था. उस गाड़ी ने भागते-भागते तीन युवाओं को अपनी ज़द में ले लिया और जिनमें से हमारे बच्चे की शाम को मौत हो गयी."

‘भीड़ गाड़ी जलाना चाहती थी’

वो बताते हैं, "क़रीब चार बजे उनके एक दोस्त का पिता मेरे पास आता है और मुझे कैसर की घटना के बारे में बताता है. मुझे एक महीने पहले की घटना याद आ गई जब छतबल में पुलिस की एक गाड़ी ने एक युवा को कुचल दिया था. मैंने बाइक निकाली और अस्पताल पहुंच गया. कैसर पहले ही मर चुका था. उनको वेंटिलेटर पर रखा गया था. मैंने बहुत कोशिश की उनसे बात करने की लेकिन वो बात नहीं कर पा रहे थे."

हालांकि सीआरपीएफ के प्रवक्ता संजय शर्मा ने बीबीसी को बताया कि भीड़ ने गाड़ी को पलटने की कोशिश की थी और वो गाड़ी को जलाना चाहते थे.

उन्होंने बताया, "जब हमारी गाड़ी उस भीड़ के पास पहुंच गई तो क़रीब पांच सौ प्रदर्शनकारियों ने गाड़ी को चारों ओर से घेर लिया और गाड़ी के ऊपर चढ़ गए. गाड़ी में सवार हमारे पांच जवानों को लिंच करने की कोशिश की. एक युवा ने खुद गाड़ी के नीचे आकर गाड़ी को रोकने की कोशिश की. हमारे जवानों ने बहुत ही सब्र से काम लिया और एक गोली तक नहीं चलाई."

पुलिस ने इस घटना को लेकर दो मामले दर्ज किए हैं. श्रीनगर के एससपी इम्तियाज़ परे ने बताया कि इस ममले में एक तो सीआरपीएफ़ के ख़िलाफ़ मामला दर्ज हुआ है और दूसरा मामला दंगा का दर्ज किया गया है.

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