गर्भावस्था की प्रारंभिक जांच में ही ब्लड ग्रुप व आरएच टाइप करा लिया जाता है. यूं तो हर व्यक्ति के लिए उसके ब्लड ग्रुप एवं आरएच की जानकारी रखना आवश्यक होता है, ताकि रक्त चढ़ाने या रक्तदान की स्थिति में यह जानकारी काम आये. गर्भावस्था में इसका अपना अलग ही महत्व है. यदि मां का आरएच टाइप निगेटिव है और पिता का पॉजिटिव है, तो शिशु आरएच टाइप निगेटिव या पॉजिटिव हो सकता है.
क्या है खतरा
यदि गर्भ में पल रहा शिशु आरएच पॉजिटिव है, तो आरएच बीमारी या आरएच इम्यूनिजेशन का खतरा रहता है. यह खतरा प्रत्येक प्रेग्नन्सी के साथ बढ़ता जाता है. प्रेग्नन्सी के दौरान शिशु का थोड़ा खून मां के रक्त संचार में प्रवेश करता है. ऐसा प्रसव के दौरान अधिक होता है. आरएच निगेटिव मां का शरीर बच्चे के आरएच पॉजिटिव रक्त कणिकाओं के विरोध में एंटीबॉडीज बनाता है.
यह प्लासेंटा को पार कर बच्चे की रक्त कणिकाओं को नष्ट कर देता है. इससे बच्चे में खून की कमी हो जाती है और बच्चे को एनिमिया हो सकता है. खून की अधिक कमी से बच्चे का हार्ट फेल्योर भी हो सकता है और बच्चा गर्भ में ही दम तोड़ सकता है. आरएच बीमारी में जन्मा बच्चा हीमोग्लोबिन की कमी और खून टूटने से जॉन्डिस से पीड़ित हो जाता है. नवजात शिशु को दोहरी चोट का सामना करना पड़ता है. इससे खून की कमी तो होती है, साथ ही दिमाग पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ता है.
कैसे करें बचाव
आरएच बीमारी से बचने के लिए जन्म के 72 घंटे के भीतर यदि बच्चा आरएच पॉजिटिव हुआ, तो मां को एंटी डी का इंजेक्शन दिया जाता है. आठवें महीने में भी यह इंजेक्शन देना उचित है. एबॉर्शन और गर्भावस्था में रक्त स्नव की अवस्था में भी एंटी डी का इंजेक्शन लेना उचित रहता है.
जांच एवं उपचार
इनडायरेक्ट कूब टेस्ट : यदि यह पॉजिटिव आता है, तो मां के शरीर में शिशु के पॉजिटिव रक्त के खिलाफ बने एंटीबॉडीज को दरसाता है.
आरएच एंटीबॉडी टाइटर : यह एंटीबॉडीज की माप है. यदि यह बढ़ जाये, तो यह बच्चे पर असर डाल सकता है.
अल्ट्रासाउंड से बच्चे की उम्र एवं हार्ट फेल्योर से संबंधित सूजन देखी जा सकती है. डॉप्लर द्वारा खून की कमी मापी जाती है.
गर्भ में बच्चे के खून की जांच से बच्चे का आरएच टाइप एवं हीमोग्लोबिन की जांच की जा सकती है. यदि खून में कमी है, तो इंट्रायूटेराइन ट्रांस्फ्यूजन किया जाता है. इसमें गर्भ के दौरान ही बच्चे को खून चढ़ाया जाता है.
बच्चा 34 हफ्ते या उससे अधिक का हो जाये, तो जन्म करा देना ही उपयुक्त होता है.
जन्म के बाद बच्चे का इलाज
फोटोथेरेपी से इलाज
इम्यूनोग्लोब्यूलिन
एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन
यदि मां में आरएच एंटीबॉडीज बन गये हों, तो एंटी डी इंजेक्शन व्यर्थ है. अत: गर्भ से पहले ब्लड ग्रुप और आरएच टाइप के बारे में जान कर समय से एंटी डी लेना ही इसका बचाव है.
डॉ मीना सामंत
प्रसूति व स्त्री रोग विशेषज्ञ कुर्जी होली फेमिली हॉस्पिटल, पटना