<p>रॉबिन होलिंगवर्थ उस समय महज़ 25 साल की थी जब उन्होंने लंदन में चल रही अपनी नौकरी छोड़कर अल्ज़ाइमर से पीड़ित अपने पिता की देखभाल करने का फ़ैसला लिया. </p><p><em>अपने</em><em> माता-पिता</em><em>की देखभाल करना कितना चुनौतीपूर्ण होता है. पढ़िए </em><em>रॉबिन </em><em>होलिंगवर्थ का अनुभव उन्हीं के शब्दों में…</em></p><p>मैं अपने बैठक वाले कमरे में रखे सोफा के पीछे डरी-सहमी छिपी हुई थी, पसीने से तर-बतर मेरे हाथों में मेरा फोन था.</p><p>मेरे पिता चिल्लाते हुए सीढ़ियों से उतर रहे थे, ”तुम कहां हो, कहां हो छोटी चोर?”</p><p>”मैं तुम्हें मार डालूंगा, तुम सुन रही हो ना?”</p><p>उन्होंने कमरे में प्रवेश किया, मैं उनके हाथ में चाकू देख सकती थी.</p><p>लेकिन तभी किसी ने दरवाज़े पर दस्तक दी और वे दरवाज़ा खोलने के लिए चले गए. वहां हमारी कोई पड़ोसन थी.</p><p>उसने घबराते हुए मेरे पिता से पूछा, ”हाय! क्या आप ठीक हैं?”</p><p>मेरे पिता ने बड़े ही प्रेम और आत्मीय तरीके से जवाब दिया, ”हैलो! मैं आपकी कैसे मदद कर सकता हूं?”</p><p>पड़ोसन ने पूछा, ”मुझे कुछ आवाज़ें सुनाई दीं, इसलिए मैं आपका हालचाल पूछने आ गई, आपके हाथ में यह चाकू क्यों है?”</p><p>मेरे पिता ने बड़े ही मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, ”मुझे अपने घर में एक छोटा सा चोर मिला है, बस में उसे ही बाहर निकालने की कोशिश कर रहा हूं.”</p><p>मुझे पता है कि उस समय मेरी पड़ोसन भी घबराई हुई थी लेकिन फिर भी उसने मेरे पिता के साथ बातचीत जारी रखी. इस बीच मैं चुपचाप पिछले दरवाजे से बाहर निकली और दौड़ते हुए खुद बचाया.</p><p>उसके बाद मैं अपनी दोस्त केट के घर चली गई.</p><p>जब उसने दरवाज़ा खोला तो मेरा चेहरा आंसू और पसीने से भरा हुआ था, मेरे पांव कांप रहे थे. </p><p>मेरे पिता का नाम डेविड कोल्स है, वे एक बहुत ही बुद्धिमान इंसान थे, उन्होंने अपनी ज़िंदगी खुद बनाई थी. वे एक सिविल इंजीनियर थे जिसने दुनिया भर में कई पावर स्टेशन बनाए. </p><p>उनके चेहरे पर दाढ़ी और मूंछें हुआ करती थी, कई दशकों तक हमने उन्हें ऐसे ही देखा, वे मेरी प्रेरणा हुआ करते थे.</p><p>मेरे पिता 50 की उम्र के अंतिम पड़ाव में अपनी नौकरी से रिटायर हुए, जबकि मेरी मां मेरजूरी ने एक स्थानीय चैरिटी में काम करना जारी रखा. वे साउथ वेल्स में पोन्टीपूल में रहते थे. </p><p>जबकि मैं रॉयल हॉलोवे यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए लंदन चली गई और वहीं रहकर मैंने अपना काम भी शुरू कर दिया था.</p><p>लेकिन जब मैं 24 साल की थी तब मां ने मुझे बताया कि मेरे पिता अल्ज़ाइमर से पीड़ित हैं. उसके एक साल बाद मैं अपनी नौकरी छोड़ पिता की देखभाल में अपनी मां की मदद करने घर चली आई.</p><p>घर पहुंचकर जो सबसे पहला बदलाव मैंने अपने पिता के व्यवहार में देखा वह था कि उनकी भाषा बदल चुकी है. वे अभद्र भाषा का ज़्यादा प्रयोग करने लगे थे, जिसमें ‘एफ..’ शब्द अक्सर सुनाई पड़ता था.</p><p>एक दिन टेस्को से अपनी मां के साथ घर लौटने पर मैंने पिता से कहा, ”डैड, आपने अपना पैजामा उल्टा पहना हुआ है.”</p><p>उन्होंने जवाब दिया, ”दफा हो जाओ.” हालांकि यहां उन्होंने उसी ‘एफ…’ शब्द का इस्तेमाल किया था.</p><p>तभी मेरी मां ने कहा, ”अपनी बेटी के साथ इस तरह बात मत करो.”</p><p>इसके जवाब में उन्होंने मेरी मां को भी वही जवाब सुना दिया.</p><p>कई बार ऐसा महसूस होता था कि डैड के साथ बात करने का कोई मतलब ही नहीं है क्योंकि वे हमेशा हमें बेइज्जत करते. वे मेरे और मां के सामने कई बार उत्तेजित हो जाते लेकिन बड़ी हैरानी की बात है कि वे मेरे बड़े भाई गेरथ के सामने बहुत शांत रहते थे.</p><p>वे कई चीजें भूलने लगे थे. जैसे कई बार वे कहते कि ‘हां, मैंने दवाई ले ली है’ तो कभी चाय के साथ कुछ अजीब चीजें खाने की बात करने लगते. उनका व्यवहार लगातार अप्रत्याशित होता जा रहा था.</p><p>एक दिन उन्होंने मां से कॉफी बनाने के लिए कहा, और थोड़ी देर बार वे कॉफी को एक सूप बाउल में रखकर, चायपत्ती और चम्मच मां को देने लगे.</p><p>अगले ही दिन जब मां शॉपिंग के लिए बाहर जा रहीं थी तो उन्होंने अपने पासपोर्ट के बारे में पूछा, तो मां ने उनसे मज़ाकिया अंदाज़ में पूछा कि क्या आप कहीं बाहर जाने वाले हैं?</p><p>वे मां के इस मज़ाक से बहुत गुस्सा हो गए और जब मां शॉपिंग से वापस लौटी तो उन्होंने पाया कि पूरा घर बिखरा पड़ा है. पूरे कमरे में कागज बिखरे पड़े थे, किचन की शेल्फ खुली पड़ी थी वहां का सामान फर्श पर बिखरा पड़ा था, बेडरूम का सामान भी चारों तरफ फैला हुआ था. </p><p>मां ने देखा कि मेरे पिता बेड में कांप रहे हैं और सुबक रहे हैं. हालांकि बाद में उन्होंने सब चीज़ें दोबारा व्यवस्थित कर दीं लेकिन मां इस हादसे को कभी भूल नहीं पाईं. </p><p>कई बार पिता की देखभाल करना शर्मिंदगी भरा हो जाता था, उस समय मुझे खुद पर गुस्सा आता था. हालांकि इन सभी बातों के बाद भी मैंने कभी उनकी देखभाल करना नहीं छोड़ा और ना ही इस बारे में कभी सोचा.</p><p>पासपोर्ट वाले हादसे के हफ्ते भर बाद डैड एक दिन बिना किसी को बताए बाहर वॉक पर गए और वापस लौट कर नहीं आए. पहले हमने उन्हें आसपास के पब में तलाशा फिर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई. </p><p>पुलिस ने उन्हें एक अस्पताल में पाया, वे सड़क किनारे एक गटर में गिरे हुए मिले थे, उनके माथे पर चोट लगी हुई थी. मां उन्हें घर लेकर आईं.</p><p>मुझे एहसास हो रहा था कि मेरी मां के लिए उन्हें संभालना हर रोज़ मुश्किल होता जा रहा था. शारीरिक रूप से तो मेरे पिता पहले जैसे ही थे लेकिन मानसिक तौर पर वे बिलकुल बदल चुके थे.</p><p>एक दिन यूं ही बातचीत करते हुए मां ने मुझसे कहा, ”हां, मैं आज भी उनसे उसी तरह प्यार करती हूं, लेकिन ये वो इंसान नहीं है जिससे मैंने प्यार किया था, जिससे शादी की थी.”</p><p>इससे भी ज़्यादा बुरा यह हुआ कि मेरे घर आने के दो महीने के भीतर हमें पता चला कि मेरी मां को स्किन कैंसर है. हालात और खराब इसलिए थे क्योंकि मेरे पिता को इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि मां की तबियत ठीक नहीं है.</p><p>जिस दिन मेरी मां का ऑपरेशन होना था उस दिन उन्होंने भी मां का मजाक बनाया. उस वक्त मैं उन्हें ज़ोर से मारना चाहती थी. हालांकि जब उन्होंने मां को अस्पताल में देखा तो वे थोड़ा शांत हुए और उन्होंने कहा, ”मेरे पास लौट आओ, मैं तुम्हें अपने पास देखना चाहता हूं.”</p><p>जब हम वापस घर लौटे तो उन्होंने मुझसे पूछा कि तुम्हारी मां कहां है.</p><p>उन्होंने पूछा, ”वह अभी तक काम से लौटकर क्यों नहीं आई? क्या वो कहीं चली गई हैं?”</p><p>मैंने उन्हें समझाया कि उन्हें कैंसर है और वे अस्पताल में भर्ती हैं.</p><p>इसके जवाब में उन्होंने कहा, ”अरे, ये तो बड़े शर्म की बात है, मैं उन्हें पार्क में एक वॉक पर ले जाना चाहता था.”</p><p>कीमोथैरेपी के बाद भी मां का ट्यूमर बढ़ता गया और दो महीने बाद हमें पता चला कि उनका कैंसर दोबारा लौटकर आ जाएगा. डैड को यह बात समझानी बहुत मुश्किल थी. </p><p>वे अक्सर दोहराते रहते कि मां और उनके बीच कितना प्यारा रिश्ता रहा है, उनके दो बच्चे हैं और एक बेहतरीन ज़िंदगी है.</p><p>वहीं कई बार जब मां अपने कमरे में आराम कर रही होतीं तो उन्हें लगता कि मां के पेट में दर्द है या फिर वे अपने काम पर गई हैं.</p><p>एक दिन मां हमें छोड़कर चली गईं, घर में उनकी मौत हो गई. पूरा परिवार उस समय उनके सामने था. मां ने मुझे और मेरे भाई से कहा कि उन्हें बहुत दुख है कि वे इस तरह हमें अकेले हमारे पिता की देखभाल करने के लिए छोड़कर जा रही हैं.</p><p>इतने भावुक पल में मैंने देखा कि मेरे पिता 2.5 किलो आलू छील रहे थे, ना जाने वे ऐसा क्यो कर रहे थे. हमें पूरा महीना सिर्फ आलू ही खाना पड़ा.</p><p>मां के अंतिम संस्कार के वक्त हमने चर्च में बैगपाइपर प्लेयर बुलाया और वहां मां और डैड के बीच प्रेम को दिखाने के लिए हल्का संगीत चलाया गया. </p><p>मैं पूरा दिन अपने पिता को देखती रही, वे बिलकुल चुप और शांत थे. </p><p>हालांकि कुछ देर बाद वे सब बातें भूल गए कि आखिर यह सब क्यों हो रहा है, उन्हें लगा कि उनकी रिटायरमेंट के जश्न में यह कार्यक्रम रखा गया है. मैंने देखा वे लोगों से खुद को बधाई दिलवाने की कोशिश कर रहे थे, ये देख मुझे ज़ोर की हंसी आ गई.</p><p>मां के अंतिम संस्कार के बाद लगभग 10 दिन बाद ही वे चाकू लेकर मुझे मारने के लिए मेरा पीछा करने लगे. </p><p>मैं किसी तरह खुद को बचाकर बाहर निकल पाई और फिर मेरे लिए वापस घर लौटना बहुत मुश्किल हो गया. पिता की देखभाल की पूरी ज़िम्मेदारी मेरे भाई के कंधों पर आ गई.</p><p>मैं अपने भाई के साथ उन्हें देखने जाया करती, मुझे अकेले उनसे मिलने में डर लगता था. </p><p>कुछ महीनों बाद डैड को निमोनिया हो गया और वे काफी दुबले हो गए. मुझे उनकी हालत देखकर बहुत दया आ रही थी, वे दर्द से कराह रहे थे, उनके दांत भी नहीं बचे थे, वे ठीक ना खा रहे थे ना ही चल पा रहे थे. </p><p>मेरे प्यारे डैड किसी ज़ोम्बी जैसे बन गए थे, उनका तेज़ दिमाग अब बिलकुल खाली हो चुका था. मैं बस इतना कर सकती थी कि उनके पास बैठकर उनका हाथ पकड़ूं और कहूं कि मैं आपसे बेहद प्यार करती हूं.</p><p>मां की मौत के पांच महीने बाद ही वे चल बसे.</p><p>मैं दुखी थी कि मेरे माता-पिता कभी अपने बेटे की शादी होते नहीं देख पाए, उसके बच्चे को नहीं देख पाए. वे मेरी शादी होते हुए नहीं देख पाए.</p><p>उनके मरने के बाद भी वे मुझे कई बार सपने में दिखे और याद दिलाते रहे कि कभी वे कितने प्यार से रहते थे, हम कितने खुश थे.</p><p>पिता की मौत के कुछ दिन बाद हमने अपना घर बेच दिया और उस खूबसूरत शहर को छोड़ हम दूर निकल गए. हम दोनों भाई-बहन पहाड़ी की चोटी पर गए और वहां से हमने अपने माता-पिता की राख आसमान में उड़ा दी. </p><p>हमने अपनी आंखों के सामने उन्हें ‘सबकुछ’ से ‘कुछ नहीं’ होते और अपने आस-पास से अनंत में खोते देखा.</p><p><em>रोबिन होलिंगवर्थ ‘माय डैडः द डायरी ऑफ एन अनरैवलिंग माइंड’ किताब की लेखिका हैं.</em></p><p><strong>जैसे कि क्लेयर बेट्स को बताया गया</strong></p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां</a><strong> क्लिक कर सकते हैं.आप हमें</strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi"> फ़ेसबुक</a><strong> और </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
BREAKING NEWS
जब मेरे ‘प्यारे पिता’ ने मुझे मारने की कोशिश की
<p>रॉबिन होलिंगवर्थ उस समय महज़ 25 साल की थी जब उन्होंने लंदन में चल रही अपनी नौकरी छोड़कर अल्ज़ाइमर से पीड़ित अपने पिता की देखभाल करने का फ़ैसला लिया. </p><p><em>अपने</em><em> माता-पिता</em><em>की देखभाल करना कितना चुनौतीपूर्ण होता है. पढ़िए </em><em>रॉबिन </em><em>होलिंगवर्थ का अनुभव उन्हीं के शब्दों में…</em></p><p>मैं अपने बैठक वाले कमरे में रखे सोफा के पीछे […]
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement