(आकार पटेल, वरिष्ठ पत्रकार)
हमारे समय के सबसे प्रतिभाशाली राजनेता ने हमारे समय की सबसे प्रख्यात जीत दर्ज की है. सिर्फ एक साल पहले नरेंद्र मोदी ने स्वयं को कांग्रेस पर हमले के मुखिया की भूमिका में स्थापित करने की पहल की थी. वे सत्ता के आकांक्षी थे, लेकिन इस आकांक्षा का लक्ष्य था- ऐतिहासिक महानता की प्राप्ति. उनमें खुद पर भरोसा था, काम करने की भारी क्षमता और संगठन की योग्यता जैसे गुण थे. लेकिन वे स्वयं भी यह कल्पना नहीं कर सकते थे कि उनकी जीत इस तरह आश्चर्यजनक रूप से आसान, सुस्पष्ट और सुदृढ़ होगी. उन्होंने कांग्रेस, जातिगत राजनीति के गणित और भाजपा की भौगोलिक हदबंदी को नष्ट कर दिया है. यह सब आखिर उन्होंने कैसे कर दिया?
उनकी रणनीति सरल, लेकिन दिलेर थी- चुनाव को उनके कामकाज और उद्देश्यों पर जनमत संग्रह का रूप दे देना. यह दिलेरी थी, क्योंकि बीते तीन वर्षो के उतार-चढ़ाव से कमजोर मनमोहन सरकार के कामकाज की आलोचना भर करना बहुत आसान होता. ऐसा करने के बजाय मोदी ने अपने अभियान को गुजरात में अपने काम और उसे राष्ट्रीय स्तर पर करने के वायदे पर आधारित सकारात्मक प्रचार पर केंद्रित किया. उन्होंने अपने संदेश को सीधे-सपाट अंदाज में अभिव्यक्त किया, जो समझने में आसान हो.
उन्होंने हमसे कहा, मुङो वोट दीजिए और मैं आपको सुशासन व विकास दूंगा. यह कहते हुए उन्होंने बस उल्लेख भर किया कि संयुक्त प्रगतिशील गंठबंधन (यूपीए) ऐसा नहीं कर सका. इससे उनका दावा और मजबूत होता गया. यह अलग बात है कि गुजरात का विकास और मोदी के दावे परस्पर मेल नहीं खाते और उसे लेकर शिकायत करने का आज अवसर भी नहीं है. इस वक्त मसला उनकी राजनीति की विशेषता और उसके कौशल की सराहना
का है. मोदी का प्रचार एक और मायने में सकारात्मक था. उन्होंने गुजरात चुनावों में अपने द्वारा उठाये जाते रहनेवाले हिंदुत्व के विभिन्न पहलुओं को इस अभियान में नहीं उठाया. इससे उनका समर्थन बहुत अधिक विस्तृत हुआ. उनके पास धार्मिक आधार वाले मत तो पहले से ही थे. एक साल पहले उनके द्वारा आडवाणी और कुछ वरिष्ठ भाजपा नेताओं को किनारे करना कोई चाल या चालाकी नहीं थी. ऐसा वे इसलिए कर सके, क्योंकि भाजपा व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पूरा काडर उनके पीछे खड़ा था. इन वरिष्ठों को साथ लाने की उनकी कोई मजबूरी नहीं थी. इस स्थिति के कारण उन्हें शासन और विकास के बारे में बातें कर अपना समर्थन बढ़ाने का अवसर प्राप्त हुआ.
उन्होंने सिर्फ इस लक्ष्य को हासिल करने का पूरा प्रयास किया. इसके लिए उन्हें चार टीमों के साथ काम करना था- भाजपा, व्यापारी राजेश जैन और कार्यकत्र्ताओं द्वारा जुटाये गये ऑनलाइन समर्थकों की बृहत् संख्या, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा मोदी का प्रचार अभियान संभालनेवाली निजी जन संपर्क (पीआर) संस्थाएं. यह काम मोदी ने बड़ी कुशलता और प्रभावी ढंग से किया. सुशासन और विकास का मोदी का संदेश अच्छी तरह से बिका. वे अपने वायदे पूरे करें या न करें, उन्होंने एक वादा- ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’- तो बखूबी निभा दिया है.
कांग्रेस का अस्तित्व भले बचा रहे, पर उसे हमेशा याद रहनेवाला झटका मिला है. वह बदहाल है और उसके पास नतीजों के आकलन के लिए भी समय नहीं है, क्योंकि बहुत जल्दी दिल्ली और महाराष्ट्र में चुनाव होनेवाले हैं. लोकसभा में उनकी अत्यंत अल्प संख्या के कारण सोनिया और राहुल गांधी के लिए विपक्ष का नेतृत्व कर पाना भी बहुत मुश्किल होगा. अगर ममता बनर्जी और जयललिता एक साझा मोरचा बना लें, तो वे विपक्ष के नेता पद के दावेदार हो सकते हैं, क्योंकि तब उनके पास कांग्रेस से अधिक संख्या होगी.
नरेंद्र मोदी एक आदर्श और उचित स्थिति में हैं. भाजपा को अकेले अपने दम पर बहुमत है और मनमोहन सिंह की तरह मोदी के सहयोगी दल उन पर दबाव नहीं डाल सकते हैं. एनडीए के चुनाव-पूर्व सहयोगी दलों की संख्या 50 के आसपास है, जिनके बल पर वे भाजपा के अंदर के असंतुष्टों या उनको नहीं पसंद करनेवाले तत्वों को किनारे कर रख सकते हैं.
मेरी दृष्टि में गुजरात के मुख्यमंत्री की तुलना में प्रधानमंत्री के रूप में अपने मंत्रिमंडल के साथ उन्हें अधिक आजादी होगी. यहां एक बात उठती है, जो कटु तो है, पर कही जानी चाहिए. गुजरात में जिन्हें मोदी नापसंद करते थे या जिनसे खतरा महसूस करते थे, उनके प्रति मोदी का व्यवहार बहुत संकीर्ण रहा है. इनमें उनकी पार्टी (जिसके वरिष्ठ नेताओं को उन्होंने बाहर कर दिया), उनका मंत्रिमंडल (जहां मंत्रियों के अधिकार सीमित हैं), गुजरात का मीडिया (जिसके कुछ लोगों पर उन्होंने राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया है), और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (जिसके वरिष्ठ नेता को स्कैंडल में फंसा कर अपमानित किया गया) शामिल हैं.
मोदी मसीहाई हैं और उन्हें सचमुच भरोसा है कि वे भारत के लिए परिवर्तनकारी काम कर सकते हैं. यह अभी भविष्य के गर्भ में है. पर उन्हें मालूम होना चाहिए कि प्रधानमंत्री के रूप में गुजरात के काम की पुनरावृत्ति से उन्हें कुछ अधिक करना होगा. अगर वे चाहते हैं कि उन्हें महान माना जाये, तो उन्हें बड़प्पन भी दिखाना होगा. उन्हें उन लोगों द्वारा पसंद किया जाना होगा, जो उनके अबतक के कामकाज के कारण उन पर भरोसा नहीं करते. इतिहास में आदर के साथ याद किया जाना ही महानता है.
नरेंद्र मोदी एक आदर्श और उचित स्थिति में हैं. भाजपा को अकेले, अपने दम पर बहुमत है और मनमोहन सिंह की तरह मोदी के सहयोगी दल उन पर दबाव नहीं डाल सकते हैं. एनडीए के चुनाव-पूर्व सहयोगी दलों की संख्या 50 के आसपास है, जिनके बल पर वे भाजपा के अंदर के असंतुष्टों या उनको नहीं पसंद करनेवाले तत्वों को किनारे करके रख सकते हैं. यदि वे चाहते हैं कि उन्हें महान माना जाये, तो उन्हें बड़प्पन भी दिखाना होगा. उन्हें उन लोगों द्वारा पसंद किया जाना होगा, जो उनके अब तक के कामकाज के कारण उन पर भरोसा नहीं करते.