हिमालयी देश भूटान में सकल राष्ट्रीय खुशी कार्यक्रम के तहत रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उन्मूलन लिए राजनीतिक दल एकजुट हो गये हैं. अगर यह प्रयास सफल रहा, तो अगले दस वर्षो के भीतर भूटान पूरी तरह से जैविक खाद्य उत्पादन करनेवाला दुनिया का पहला देश बन सकता है.
भूटान के कृषि और वन मंत्री ल्योनपो येशे दोरजी और विपक्ष के नेता पेमा ग्यामत्शो, जो पिछली सरकार में इसी पद पर थे, ने एक साझी प्रतिबद्धता जाहिर की है कि भूटान को रसायनिक खाद और कीटनाशकों से मुक्त किया जाये. हालांकि इसके लिए कोई औपचारिक संरचना तय नहीं की गयी है, लेकिन दोनों राजनीतिज्ञों का मानना है कि बेशक कुछ खरपतवार और रोग पौधों और फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं लेकिन पूरी तरह जैविक खेती के लक्ष्य हासिल किया जा सकता है. इसके लिए भूटान में हाल ही में दुनिया भर के जैविक कृषि विशेषज्ञों को आमंत्रित कर एक बड़ा सम्मेलन किया गया.
ग्यामत्शो के मुताबिक, अगर भूटान इसी तरह की प्रतिबद्धता और नीयत का प्रदर्शन करे, तो इस लक्ष्य को अगले पांच से दस साल में प्राप्त कर सकता है. ग्यामत्शो का यह भी आकलन है ‘भूटान में अभी भी 70 फीसदी खाद्य उत्पादन बिना रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के होता है. दूसरी तरफ एक सच्चई यह भी है कि अगर हम सिर्फ नारों से काम चलाना चाहें तो इस लक्ष्य को हासिल करने में बीस से तीस साल लग सकते हैं या यह लक्ष्य कभी पूरा नहीं भी हो सकता है. यह इस पर निर्भर करता है कि आनेवाली सरकारें कितनी गंभीरता से इस काम को अंजाम देंगी.’
वहीं दोरजी का कहना है कि नयी सरकार पिछली सरकार की जैविक कृषि के लिए गंभीर प्रतिबद्धता को आगे बढ़ा रही है, लेकिन कृत्रिम रसायनों को खत्म करने के लिए किसी भी तरह की जोर जबरदस्ती नहीं की जा सकती है. यह स्वैच्छिक तरीके से ही हो सकता है. इसके लिए सरकार को यह भी दिखाना होगा कि जैविक कृषि के फायदे, इसकी लागत से कहीं ज्यादा हैं. ताकि इस बदलाव के प्रति लोग इच्छुक हों और यह उनका अपना चयन होना चाहिए. जाहिर है इसके लिए कृषि अनुसंधान में बड़े निवेश की जरूरत है, जिसके तहत लोगों को जैविक खेती के लिए मदद दी जाये. भूटान के प्रमुख राजनीतिक दलों के इस संबंध में गंभीर होने के बावजूद कृषि विशेषज्ञों को लगता है कि ये लोग कुछ ज्यादा ही आशावादी हो रहे हैं. जबकि पिछले कुछ वर्षो में लोग रसायनिक उर्वरकों पर ज्यादा से ज्यादा निर्भर हुए हैं.
‘द गाजिर्यन’ ने मध्य और पूर्वी भूटान में जिन किसानों से मुलाकात की, उन्होंने पूरी तरह से जैविक कृषि अपनाने के प्रति एक तरीके की अनिच्छा जाहिर की. उन्हें चिंता है कि इसका उनके खाद्यान्न उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ेगा. खासतौर से यह देखते हुए कि मौसम का मिजाज लगातार पूर्वानुमानों के विपरीत दिख रहा है. कई किसानों का कहना था कि केमिकल फर्टिलाइजर उनके आलू के आकार को बढ़ाता है, जिससे भारत जैसे निर्यात बाजार में उन्हें बेचने में सहूलियत होती है.
लेकिन ग्यामत्शो मानते हैं कि किसान रासायनिक उर्वरकों के मिट्टी पर पड़नेवाले नकरात्मक प्रभावों के बारे में जागरूक हो रहे हैं. शुरू में वे रसायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल को लेकर उत्साहित तो होते हैं क्योंकि उन्हें कम काम करना पड़ता है, लेकिन समय बीतने के साथ उन्हें इसका नकारात्मक असर समझ में आने लगता है. कई किसान यह देख रहे हैं कि इनके उपयोग से मिट्टी की उर्वरता नष्ट हो रही है और जल धारण करने की क्षमता घट रही है. अगर ये लोग जैविक खेती के फायदे को समझ लें तो इसे अपना लें. लेकिन एक अहम मुद्दा यह भी है कि क्या यह जैविक उपज आर्थिक रूप से फायदेमंद होगी! इसको लेकर बड़ी चिंता यह है कि भूटान में जैविक उपज के प्रमाणीकरण की क्षमता बहुत कम है. हाल ही में यहां इसके लिए पहली प्रयोगशाला खुली है. इसके लिए जैविक खेती की रणनीति को कदम-दर -कदम, क्षेत्र-दर-क्षेत्र और उपज-दर-उपज बढ़ाना होगा. नये नवाचार और अनुसंधान लाने होंगे, जो फसलों में लगनेवाले रोगों और खरपतवारों को खत्म कर खाद्यान्न उत्पादन बढ़ा सकें. भूटान इसके लिए वैकल्पिक समाधानों की तलाश कर रहा है. इसका एक समाधान जैव खरपतवार नाशक भी है. जैविक पारिस्थितिकी पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन करने के पीछे मूल मकसद यही है.
आइडीइ के सीइओ टिम हेविट, जो कि ग्रामीण इलाकों के लिए धन और जीविका मुहैया कराने की दिशा में काम करते हैं, और पड़ोसी देश नेपाल में लंबे अरसे से काम कर रहे हैं, का मानना है कि भूटान के लिए जैविक खेती की ओर बढ़ना व्यावसायिक रूप से समझदारी भरा कदम होगा. लेकिन हेविट इस खतरे से भी आगाह करते हैं कि भूटान ने पूरी तरह से रसायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल बंद कर दिया है, ऐसे दावे करने में जल्दबाजी से बचना होगा. उनका कहना है कि ‘एकीकृत कीट प्रबंधन नेपाल में बहुत अच्छी तरह से सफल हुआ है, लेकिन वहां किसानों को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी है. जैविक खेती की तरफ बढ़ने पर उत्पादन में कमी का खतरा भी बना रहता है. उत्पादन कम होगा तो खाद्यान्न की कीमत भी बढ़ेगी. मैं इस बात के लिए भूटान को आगाह करना चाहूंगा कि कोई ऐसा बड़ा दावा या घोषणा करने की जल्दबाजी न करे, जो यह कहता हो कि देश पूरी तरह से जैविक खेती करनेवाला हो गया है. अगर भविष्य को देखें, तो इस सच को बहाल करना मुश्किल होगा, अगर लोग यह पायें कि आप जो दावा कर रहे हैं, हकीकत उससे अलग है. ’
(साभार : द गाजिर्यन)