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रोचक सफर टेलीफोन का

तुमने बटनवाले टेलीफोन घर पर या पापा के ऑफिस में जरूर देखा होगा. मोबाइल फोन के आने से पहले टेलीफोन ही उपयोग किया जाता था. पुराने समय में फोन मोहल्ले में इक्के -दुक्के लोगों के पास होते थे. इसलिए लोग उसकी घंटी के बजने का इंतजार किया करते थे. टेलीफोन का आविष्कार 1876 में अलेक्जेंडर […]

तुमने बटनवाले टेलीफोन घर पर या पापा के ऑफिस में जरूर देखा होगा. मोबाइल फोन के आने से पहले टेलीफोन ही उपयोग किया जाता था. पुराने समय में फोन मोहल्ले में इक्के -दुक्के लोगों के पास होते थे. इसलिए लोग उसकी घंटी के बजने का इंतजार किया करते थे. टेलीफोन का आविष्कार 1876 में अलेक्जेंडर ग्राह्ना बेल ने किया था. उन्होंने बाद में ऑप्टिकल टेलीकम्यूनिकेशन, हाइड्रोफ्वॉयल और एरोनॉटिक्स के क्षेत्र में भी अहम योगदान दिया.

टेलीफोन और टेलीकम्यूनिकेशन के क्षेत्र में हुए प्रयोगों को याद रखने के लिए वल्र्ड टेलीकॉम डे मनाया जाता है. 2005 यूनाइटेड नेशन के जेनरल असेंबली द्वारा ट्यूनिश में हुए वर्ल्ड समिट के दौरान इसका नाम बदल कर वर्ल्ड इन्फॉरमेशन सोसाइटी डे रखा गया. इसका मकसद था लोगों को इन्फॉरमेशन और कम्यूनिकेशन की खूबियों और ताकत से अवगत कराना. हम भी इस दिन को साथ मिल कर मनाते हैं. आज मैं तुम्हें टेलीफोन के विभिन्न स्वरूपों और उसके उपयोग के तरीके के बारे में बताता हूं. ऐसे तो इसकी खोज होने के बाद से हजारों डिजाइन बनाये गये, पर तकनीकी रूप से इसे हम दो भागों में बांट सकते हैं-डिजिटल और एनालॉग.

डिजिटल टेलीफोन : डिजिटल फोन को दो भागों में बांटा जा सकता है. तारवाला और बिना तार का. यह आज के जमाने का फोन है. डिजिटल फोन में डिस्प्ले लगा होता है. इस पर डायल नंबर और रिसीव्ड नंबर की सारी जानकारी सेव रहती है. इसमें वायरलेस फोन भी आते हैं. ये देखने में दूसरे फोन जैसे ही होते हैं, पर इनमें तार नहीं लगा होता. इन्हें आइपी फोन भी कहा जाता है.

एनालॉग टेलीफोन : ग्राहम बेल द्वारा विकसित किये गये टेलीफोन को एनालॉग टेलीफोन माना जाता है. जैसे-जैसे तकनीक का विकास हुआ, इसके डिजाइन और फोन करने के तरीके में भी बदलाव आया.

वॉलफोन : इसकी ज्यादातर बॉडी लकड़ी की बनी होती थी. यह साइज में भी बहुत बड़ा होता था. इसे दीवार पर टांग कर रखा जाता था. इससे कॉल करने के लिए लोगों को नंबर डायल करने के बजाये हैंडल घुमा कर नंबर लगाना पड़ता था. ऐसे फोन बहुत महंगे होते थे और कुछ ही लोगों के पास उपलब्ध थे. ये देखने में भी खूबसूरत होते थे.

इलेक्ट्रिक कैंडल स्टिक : यह देखने में कैंडल (मोमबत्ती) की तरह होता था. इसमें डॉयल रिंग होता था, पर बात करने के लिए इसे उठा कर सुनने के स्पीकर को कान के और माइक्रोफोन को मुंह के पास रखना होता था. उस समय कुछ ही लोगों के पास फोन होता था. इसलिए लोग निश्चित समय पर पड़ोसी के यहां जाते और दूर रह रहे परिजनों से बात करते थे.

प्रस्तुति : कुलदीप तोमर

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