इंडियन स्वाद
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जिसमें मिले उसी का हो जाये आलू
इंडियन स्वाद भारत में आप किसी भी छोटे-बड़े भोजनालय में चले जाएं, वहां आपको हींग-जीरे के आलू नजर आ जायेंगे. आलू किसी भी मौसमी सब्जी के साथ जुगलबंदी साध सकता है, मसलन आलू-मटर, आलू-गोभी, आलू-मेथी, आलू-पालक, आलू-टमाटर वगैरह. इस वजह से एक गलतफहमी है कि आलू का अपना कोई स्वाद नहीं होता, यह जिसके साथ […]
भारत में आप किसी भी छोटे-बड़े भोजनालय में चले जाएं, वहां आपको हींग-जीरे के आलू नजर आ जायेंगे. आलू किसी भी मौसमी सब्जी के साथ जुगलबंदी साध सकता है, मसलन आलू-मटर, आलू-गोभी, आलू-मेथी, आलू-पालक, आलू-टमाटर वगैरह. इस वजह से एक गलतफहमी है कि आलू का अपना कोई स्वाद नहीं होता, यह जिसके साथ मिलता है, उसी का हो जाता है. इस बार आलू और उसके विभिन्न जायके के बारे में हम बता रहे हैं…
कुछ दिन पहले एक विदेशी दोस्त की मेहमाननवाजी का मौका मिला. हमारे घर पर खाने की मेज पर उन्होंने एक अटपटा सवाल उठाया. पूछा, ‘आलू को आप लोग सब्जी की तरह क्यों पेश करते हैं? यह तो अनाजनुमा खाद्य पदार्थ है.’
यह मित्र काफी समय भारत में गुजार चुके हैं और देश के कई हिस्सों का सफर अपने कारोबार के सिलसिले में करते रहे हैं. हम पहले सवाल का उत्तर देने की चेष्टा कर रहे थे कि उन्होंने दूसरा सवाल दाग दिया, ‘क्या हिंदुस्तानियों को खबर है कि जिस आलू को वे व्रत-उपवास के दिन बेहिचक फलाहार का हिस्सा बनाते हैं,
वह कुल पांच सदी पहले ही पुर्तगालियों के साथ भारत पहुंचा है?’ इसके साथ ही हमें याद आयी लालू यादव की चुटीली टिप्पणी- ‘जब तक समोसे में आलू रहेगा, तब तक राजनीति में लालू रहेगा!’ तब से अब तक समोसा भी बदलने लगा है और राजनीति में लालू की मौजूदगी भी पहले की तरह असरदार नहीं रही.
बहरहाल, भारतीय भोजन में आलू का जायका इस देश की विविधता को एकता में पिरोनेवाले स्वादिष्ट सूत्र की तरह बरकरार है.
चाहे किसी छोटे-बड़े भोजनालय में चले जायें, हींग-जीरे के आलू नजर आ जायेंगे. आलू किसी भी मौसमी सब्जी के साथ जुगलबंदी साध सकता है: आलू-मटर, आलू-गोभी, आलू-मेथी, आलू-पालक, आलू-टमाटर वगैरह.
मांसाहारी आलू के सालन को चाव से खाते हैं. जिस तरह उत्तर में समोसे के अलावा टिक्की और भरवां पराठे की जान आलू है, वैसे ही दक्षिणी प्रदेशों में दोसे का मसाला और मैसूर के मशहूर बोंडे के अंदर की बात आलू की ही करामात है.
बिहार और पूर्वांचल की पहचान के साथ आलू का चोखा जुड़ा है, तो बंगाल में आलू-पोस्तो तथा आलू-भाजा अपनी हस्ती तरह-तरह की माछ के साथ मुकाबले में बरकरार रखने में कामयाब रहे हैं.
कश्मीर, जयपुर, बनारसी और बंगाली-ओड़िया आलू-दम के जायके एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं. उत्तराखंड के तिब्बती सुवासित घास जंबू से छौंके आलू के गुटके, नेपाल का तिलवाला आलू का अचार तथा पूर्वोत्तरी भारत में इसी तरह के व्यंजन प्रमाणित करते हैं कि आलू जहां पहुंचता है, वहीं का हो जाता है.
आलू के चिप्स कुछ समय पहले तक भारत में घर-घर बनते थे. अमृतसर से चेन्नई तक आलू के पापड़ भी बेले जाते रहे हैं.
नैनीताल के निकट छोटे से कस्बे भुवाली का एक मिष्ठान भंडार आलू की बरफी के लिए जाना जाता है, तो रानीखेत की छावनी का पड़ोसी मछखाली गांव आलू से कलाकंद सरीखी मिठाई बनाता है. आलू की खीर खाने का मौका भी हमें मिला है.
लुब्बोलुवाब यह है कि आलू नमकीन ही नहीं, मीठे स्वाद को भी आसानी से अपने दामन में समेट सकता है. इससे यह गलतफहमी बलवान हुई है कि आलू का अपना कोई स्वाद नहीं होता है, बल्कि वह अपने जोड़ीदार को देखकर गिरगिट की तरह रंग बदल लेता है. हकीकत यह भी है कि आलू मीठा हो तो बदमजा होने लगता है.
पहाड़ी आलू का कुदरती स्वाद मैदानी आलू से बेहतर समझा जाता है. जानकार नये और पुराने आलू में भी फर्क करते हैं.
जाते-जाते फिरंगी मेहमान यह लुकमा भी पेश कर गये कि आयरलैंड जैसे देश में आलू की फसल बर्बाद होने से कैसे 19वीं सदी में अकाल पड़ गया था और इस कारण ग्रेट ब्रिटेन के लिए कितना विकट राजनीतिक संकट पैदा हो गया था.
गनीमत है अपने देश में आलू-प्याज की आसमान छूती कीमतों का रोना ही रोया जाता रहा है. कभी-कभार तो आलू नहीं, प्याज की वजह से सरकारों को कुर्सी छोड़नी पडी है. पर याद रहे ‘न भूतो’ का मतलब ‘न भविष्यति’ नहीं समझा जा सकता!
रोचक तथ्य
उत्तर भारत में समोसे के अलावा टिक्की और भरवां पराठे की जान आलू है, तो दक्षिण में दोसे का मसाला और मैसूर के मशहूर बोंडे में भी आलू की करामात है.
उत्तराखंड के तिब्बती सुवासित घास जंबू से छौंके आलू के गुटके, नेपाल का तिलवाला आलू का अचार तथा पूर्वोत्तर के व्यंजन प्रमाणित करते हैं कि आलू जहां पहुंचता है, वहीं का हो जाता है.
आलू नमकीन ही नहीं, मीठे स्वाद को भी आसानी से अपने दामन में समेट सकता है. आलू मीठा हो तो बदमजा होने लगता है.
भारतीय भोजन में आलू का जायका इस देश की विविधता को एकता में पिरोनेवाले स्वादिष्ट सूत्र की तरह बरकरार है.
पुष्पेश पंत
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