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कान में नंदिता दास की फिल्म ‘मंटो’

मशहूर अफसानानिगार सआदत हसन मंटो पर नंदिता दास की फिल्म तैयार है. यह फिल्म मंटो पर भारत-पाक में बनी दूसरी फिल्मों से अलग है. अगले महीने यह फिल्म कान फिल्म समारोह में दिखायी जायेगी. उम्मीद है इस फिल्म का भारत-पाक सहित दुनियाभर में स्वागत होगा. यह आश्चर्यजनक किंतु सत्य है कि अगले महीने शुरू हो […]

मशहूर अफसानानिगार सआदत हसन मंटो पर नंदिता दास की फिल्म तैयार है. यह फिल्म मंटो पर भारत-पाक में बनी दूसरी फिल्मों से अलग है. अगले महीने यह फिल्म कान फिल्म समारोह में दिखायी जायेगी. उम्मीद है इस फिल्म का भारत-पाक सहित दुनियाभर में स्वागत होगा.

यह आश्चर्यजनक किंतु सत्य है कि अगले महीने शुरू हो रहे 71वें कान फिल्म समारोह (8-19 मई, 2018) में नंदिता दास की भारतीय फिल्म ‘मंटो’ मुख्य चयन के ‘अन सर्टेन रिगार्ड’ में दिखायी जा रही है. पिछले साल नंदिता दास ने कान फिल्म समारोह में अपनी इस फिल्म का खूब प्रोमोशन किया था.
मंटो का किरदार निभा रहे नवाजुद्दीन सिद्दीकी का कहना है कि मंटो सच बोलने का साहस देते हैं. हम सबके भीतर मंटो है, किसी में थोड़ा कम, किसी में थोड़ा ज्यादा.
वे कहते हैं- ‘मैं सोचता था कि कभी झूठ नहीं बोलूंगा, पर मुंबई जाने के बाद रोज झूठ बोलना पड़ता है. मंटो बनकर लगा कि सच बोलकर भी जिंदा रहा जा सकता है.’
नवाजुद्दीन के लिए यह किरदार निभाना चुनौतीपूर्ण था. एक तो 1940 में जाकर मंटो को अपने भीतर उतार लेना, दूसरे उनकी कहानियों के चरित्रों को बाहर लाना.
नवाजुद्दीन कहते हैं कि पहली बार लगा कि किसी ऐसे लेखक का किरदार निभाना, जिसे करोड़ों लोग जानते हैं, कितना मुश्किल काम है. निर्देशक के रूप में नंदिता दास पर नवाज कहते हैं कि वे खुद एक बड़ी अभिनेत्री हैं.
जब कोई एक्टर फिल्म बनाता है, तो सबसे बड़ा खतरा यह होता है कि पूरी फिल्म उसी की एक्टिंग की कॉपी लगती है. नंदिता ने कभी नहीं कहा कि ऐसा करो या वैसा करो. उन्होंने बस सीन समझाया और हमें आजाद छोड़ दिया. मेरे लिए अभिनय के दो ही तरीके होते हैं.
पहले शारीरिक रूप से किरदार को अपने भीतर उतार लेना, और फिर उसे मानसिक स्तर पर जीना या इसका उलटा करना. नवाजुद्दीन अकेले ऐसे अभिनेता हैं, जिनकी फिल्में कान में अधिक बार दिखायी गयी हैं. वे 2012 से लगातार कान समारोह में आ रहे हैं.
नंदिता दास कहती हैं कि मैंने 2012 में इस फिल्म के बारे में सोचना शुरू किया, जब मंटो की जन्म शताब्दी मनायी जा रही थी. जब 2013 में नवाजुद्दीन ने इस फिल्म के लिए दो साल देने का वायदा किया, तो उनके पास समय था. बाद में वे बड़े स्टार बन गये, इसलिए थोड़ी देर हो गयी.
अब अगले साल फिल्म को रीलीज करने का इरादा है. यह फिल्म मंटो पर भारत और पाकिस्तान में बनी दूसरी फिल्मों से अलग है, क्योंकि जहां हमारी फिल्म खत्म होती है, वहां उनकी फिल्म शुरू होती है. उम्मीद है कि हमारी फिल्म का भारत-पाक सहित दुनियाभर में स्वागत होगा.
नंदिता दास कहती हैं कि उनकी फिल्म मंटो के जीवन, उनकी दुनिया और उनकी कुछ कहानियों और किरदारों पर फोकस होगी. नंदिता स्वीकार करती हैं कि मंटो और उनकी बेटियों के प्रसंग में उन्हें अपने चित्रकार पिता जतिन दास के साथ के अनुभव बार-बार याद आते रहे. वे कहती हैं- ‘मेरे पिता मंटो की तरह ही अक्खड़ इंसान हैं. कहीं भी कुछ भी बोल देते हैं, पर वे पिता के रूप में प्यारे इंसान हैं. मैंने खुद को मंटो की बेटियों की जगह रखकर देखा.’
नंदिता दास कहती हैं कि फिल्म लिखते हुए मैंने हर चरित्र को खुद करके देखा. मेरा मानना है कि चाहे आप लाख कलात्मक ऊंचाई वाली फिल्म बनाएं, यदि आपके पास कहने के लिए कुछ खास नहीं है, तो फिल्म नहीं चलेगी. यदि फिल्म नहीं चली, तो फिल्म बनाने का कोई मतलब ही नहीं बचता.
मेरी पिछली फिल्म ‘फिराक’ दुनिया के 60 फेस्टिवल में गयी. खूब चर्चा हुई, पर बॉक्स आॅफिस पर उतनी नहीं चली, जितनी चलनी चाहिए थी. इसलिए इस बार मैंने वायकम-18 और दूसरी कंपनियों से करार किया, क्योंकि मार्केटिंग मेरे बस का काम नहीं है.
अजित राय
संपादक, रंग प्रसंग, एनएसडी

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