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अंकल हो आज भी हैं सबसे लोकप्रिय

<p>वियतनाम भर में एक चेहरा सब से जाना पहचाना है और वो आपको हर जगह नज़र आएगा. कभी पोस्टर से बहार निकल कर तो कभी एक प्रतिमा के रूप में आपके सामने खड़े किसी पार्क में. कभी किसी चौराहे या सरकारी ईमारत के बहार नीचे आपको देखते हुए.</p><p>ये बड़ी हस्ती कोई और नहीं बल्कि राष्ट्रपिता […]

<p>वियतनाम भर में एक चेहरा सब से जाना पहचाना है और वो आपको हर जगह नज़र आएगा. कभी पोस्टर से बहार निकल कर तो कभी एक प्रतिमा के रूप में आपके सामने खड़े किसी पार्क में. कभी किसी चौराहे या सरकारी ईमारत के बहार नीचे आपको देखते हुए.</p><p>ये बड़ी हस्ती कोई और नहीं बल्कि राष्ट्रपिता हो ची मिन्ह हैं. अगर आप यहाँ पर्यटक हों तो हो ची मिन्ह को आप नज़र अंदाज़ नहीं कर सकते. राजधानी हनोई में उनका संग्रहालय है, उनकी समाधि है और उनके कुछ ऐसे घर हैं जहाँ वो राष्ट्रपति बनने के बाद रहे थे. </p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-43826033">वियतनाम के हिंदू मिटने की कगार पर!</a></p><h1>हो ची मिन्ह के नाम पर रखा गया शहर का नाम</h1><p>उनके देहांत के बाद उन्हें श्रद्धांजलि की तौर पर देश का सब से बड़े शहर सैगाओं का नाम बदल कर हो ची मिन्ह सिटी कर दिया गया.</p><p>यहाँ हो ची मिन्ह की समाधि है जहाँ हज़ारों की संख्या में लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने रोज़ आते हैं.</p><p>स्थानीय लोग उनकी तारीफ़ करते नहीं थकते. हो ची मिन्ह सिटी के सैगांव सेंटर पर उनकी एक बहुत ऊंची प्रतिमा है. </p><p>उनका एक हाथ इनके ही अंदाज़ में उठा है. ठीक इसके नीचे कुछ लड़कियां अपने हाथों को उनके हाथ उठाने की नक़ल करके तस्वीरें खींच रही हैं.</p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-43826034">क्या भारत वियतनाम से कुछ सीखेगा?</a></p><p>उनमे से एक लड़की ने तेज़ आवाज़ में कहा कि उसे हो ची मिन्ह से बेहद लगाव है. </p><p>स्कूटर पर बैठे आराम कर रहे एक मज़दूर ने कहा, &quot;हो ची मिन्ह वियतनाम के सब से अहम नेता गुज़रे हैं. उन्होंने हमें आज़ाद कराया और हम अगर खुशहाल हैं और आज़ाद हैं तो उन्हीं की वजह से&quot;. उनकी अहमियत यहाँ वैसी ही है जैसे कि भारत में महात्मा गाँधी की है </p><h1>फ्रांस, जापान और अमरीका को शिकस्त देने वाले फ़ौजी</h1><p>हो ची मिन्ह आधुनिक वियतनाम के राष्ट्रपिता होने के इलावा आज़ाद वियतनाम के पहले राष्ट्रपति भी थे. वो कमाल के फ़ौजी भी थे. </p><p>उनके नेतृत्व में वियतनाम ने तीन बड़ी ताक़तों यानी फ़्रांस, जापान और अमरीका को शिकस्त दी. </p><p>वो एक वामपंथी विचारधारा के नेता थे. वो जंग के मैदान में जितने आक्रामक थे इससे बहार उतने ही सौम्य. वो फ़्रांस से आज़ादी की लड़ाई में जंग के मैदान में भी सालों तक सक्रिय रहे. </p><p>जवाहरलाल नेहरू और हो ची मिन्ह के बीच अच्छी दोस्ती थी. </p><p>जब वो 1958 में भारत के दौरे पर आये तो नेहरू ने उनका ज़बरदस्त स्वागत किया था. </p><p>हो ची मिन्ह संग्रहालय के डायरेक्टर नग्युन वान कॉग कहते हैं भारत के युवा उन्हें अंकल हो कहके बुलाते थे. &quot;प्रधानमंत्री नेहरू और हो ची मिन्ह घनिष्ट मित्र थे. जब वो 1958 में भारत गए तो नेहरू ने उनका ज़बरदस्त स्वागत किया था. वहां के बच्चों ने चाचा हो कहके बुलाया. भारत के लोगों ने उन्हें बहुत प्यार दिया&quot; </p><p>भारत में आज की युवा पीढ़ी हो ची मिन्ह को अच्छी तरह से नहीं जानती लेकिन नेहरू के समय में भारत में उन्हें &quot;अंकल हो&quot; के नाम से अधिक जाना जाता था. दिल्ली और कोलकाता में उनके नाम पर सड़कें भी हैं</p><h1>राष्ट्रपति बनने पर दो कमरों के घर में रहे</h1><p>राष्ट्रपति हो ची मिन्ह का देहांत 1969 में 79 साल की उम्र में हुआ था. वो राष्ट्रपति बने तो महल में रहने के जगह दो कमरे के उस छोटे से मकान में रहे जहाँ महल का एक कर्मचारी रहा करता था. </p><p>संग्राहलय के अंदर पर्यटकों की सहायता करने वाली एक महिला ने उस घर की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, &quot;हमारे पीछे जो घर है वहां वो राषररपति बनने के बाद 4 साल रहे. और वहां वो, उस घर में, 11 साल रहे.&quot; </p><p>जब 1890 में एक साधारण घराने में उनका जन्म हुआ तो उस समय वियतनाम फ़्रांस के क़ब्ज़े में था. </p><p>वो देश की आज़ादी के लिए माहौल तैयार करने के मक़सद से पढ़ाई अधूरी छोड़ कर विदेश चले गए. </p><p>1911 में जब उन्होंने देश छोड़ा तो वो एक गुमनाम युवा थे लेकिन जब वो 1941 में देश वापस लौटे तो वो एक कद्दावर नेता बन चुके थे. </p><p>वो तीस साल तक वो फ़्रांस, रूस और चीन का दौरा करते रहे ताकि वहां के नेताओं को अपने देश के सियासी हालत से आगाह करते रहें. साथ ही वियतनाम की आज़ादी में मदद लेने के लिए भी कोशिशें कीं. </p><p>हो ची मिन्ह की 1969 में मौत के समय वियतनाम उत्तर और दक्षिण में बटा था. </p><p>ऐसा फ़्रांस ने देश से फ़रार होने से पहले किया था. देश की दोबारा एकता उनका आखरी बड़ा सपना था. </p><p>उनका ये सपना उनके मरने के छह साल बाद साकार हुआ.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक </a><strong>करें. आप हमें </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">फ़ेसबुक</a><strong> और </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong> पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)</strong></p>

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