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कर्नाटक चुनाव: जब ‘एक दिन के सीएम’ बने बेंगलुरु के लोग

<p>आपने बॉलीवुड की फ़िल्म ‘नायक’ तो देखी ही होगी. अनिल कपूर वाली. जिसमें अभिनेता एक दिन के लिए राज्य का मुख्यमंत्री बनने की चुनौती स्वीकार करता है.</p><p>फिर फ़िल्म में वो काफी रोमांचक तरीक़े से, महज़ 24 घंटे में राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था का रंग-ढंग बदल देता है और लोगों का दिल जीत लेता है.</p><p>मुझे यक़ीन […]

<p>आपने बॉलीवुड की फ़िल्म ‘नायक’ तो देखी ही होगी. अनिल कपूर वाली. जिसमें अभिनेता एक दिन के लिए राज्य का मुख्यमंत्री बनने की चुनौती स्वीकार करता है.</p><p>फिर फ़िल्म में वो काफी रोमांचक तरीक़े से, महज़ 24 घंटे में राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था का रंग-ढंग बदल देता है और लोगों का दिल जीत लेता है.</p><p>मुझे यक़ीन है कि इस फ़िल्म को देखने वाले ज़्यादातर लोगों ने ये सोचा होगा कि ‘अगर उन्हें भी कोई एक दिन का सीएम बना दे तो वो क्या-क्या करेंगे?’ आख़िर कौन नहीं इस ताक़तवर पद पर बैठना चाहेगा?</p><p>इसलिए <a href="https://www.bbc.com/hindi/search/?q=%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%B8%E0%A5%80+%E0%A4%AA%E0%A5%89%E0%A4%AA+%E0%A4%85%E0%A4%AA">बीबीसी की पॉप-अप टीम</a> ने बेंगलुरु के लोगों को एक दिन के लिए ‘कर्नाटक का सीएम’ बनने का मौक़ा दिया और उनसे पूछा कि क्या हैं वो मुद्दे जिनपर वो ज़रूर काम करेंगे, अगर उन्हें सीएम बनाया जाए.</p><p>लेकिन इससे पहले कि हम बेंगलुरु के लोगों को इस कुर्सी पर बैठकर अपने विचार साझा करने को कहते, एक शख़्स ने पूछा कि कर्नाटक में बीबीसी कन्नड़ सेवा कब शुरू करने वाला है?</p><p>आपको बता दें कि बीबीसी ने हाल ही में भारत में चार नई भाषाओं में अपनी सेवा का शुभारंभ किया है. ये हैं <a href="https://www.bbc.com/telugu">बीबीसी </a>, <a href="https://www.bbc.com/marathi">बीबीसी मराठी</a>, <a href="https://www.bbc.com/gujarati">बीबीसी गुजराती</a> और <a href="https://www.bbc.com/punjabi">बीबीसी पंजाबी सेवा</a>.</p><p>बहरहाल, ‘बीबीसी कन्नड़’ भी एक दिन वास्तविक रूप ले सकता है. लेकिन तब तक, हम उन सभी मुद्दों पर अपनी नज़र बनाए रखेंगे जो कर्नाटक राज्य के लिए अहमियत रखते हैं.</p><h3>अब बात उन मुद्दों की जिन्हें बेंगलुरु के लोगों ने एक दिन के सीएम के तौर पर हमारे सामने रखा:</h3> <ul> <li><strong>ट्रैफ़िक:</strong> बेंगलुरु शहर के लोगों के लिए ये एक पुरानी समस्या है. सुबह और शाम के कुछ घंटों में शहर पूरी तरह से लॉक हो जाता है. एक अध्ययन के मुताबिक़, बेंगलुरु शहर में एक आदमी औसतन 240 घंटे एक साल में ट्रैफ़िक के बीच फंसे हुए ख़र्च कर देता है. कई नौजवानों ने बताया कि स्थिति इतनी ख़राब है कि रोज़ाना लंबा सफ़र करने की वजह से कई पेशेवर लोगों ने नौकरी छोड़ दी है.</li> <li><strong>सूखती झीलें:</strong> बेगलुरु को एक समय झीलों का शहर कहा जाता था. लेकिन अब इसे सूखती झीलों का शहर कहा जाने लगा है. शहर का कूड़ा और ज़हरीला सामान इन झीलों में डाला जा रहा है. कई बार यहाँ आग भी लग चुकी है. केमिकल्स की वजह से यहाँ झीलों में कई महीनें तक झाग बनते रहते हैं.</li> </ul> <ul> <li><strong>मेट्रो का विस्तार:</strong> साल 2006 में बेंगलुरु में मेट्रो का काम शुरू हुआ था. लेकिन इसका काम और मेट्रो का विस्तार बेहद धीमी गति में हुआ. जो दो मौजूदा मेट्रो लाइनें बेंगलुरु शहर में हैं, वो रोज़ लाखों यात्रियों के लिए यातायात का साधन है. लेकिन शहर के लोगों को लगता है कि मेट्रो को और बढ़ाए जाने की ज़रूरत है.</li> <li><strong>पैदल यात्रियों की कद्र:</strong> बहुत से लोग मानते हैं कि बेंगलुरु शहर में पैदल यात्रियों के लिए एक बेहतर योजना बननी चाहिए. बेंगलुरु में साल के कई महीनों में मौसम सुहाना होता है और बहुत से लोग पैदल चलना पसंद करते हैं. विजय नाम के एक शख़्स ने कहा कि निजी वाहनों को सीमित करने के लिए शहर में पैदल चलने वाले लोगों को बेहतर परिस्थिति और कद्र मिलनी चाहिए. इसके लिए शहर को एक बेहतर प्लान की ज़रूरत है.</li> <li><strong>गड्ढे और शहर का ढांचा:</strong> बेंगलुरु शहर अपने गड्ढों के लिए कुख़्यात है. कुछ गड्ढे तो इतने बड़े और ख़ास हो गए हैं कि लोगों ने उन्हें इलाक़े की पहचान के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.</li> <li><strong>वन अतिक्रमण:</strong> शहर के ग्रीन इलाक़ों और वनों के अतिक्रमण को लेकर शहर के लोग चिंतित दिखते हैं. उनके लिए ये गंभीर विषय है. कर्नाटक पर सीएजी की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 19 सालों में सूबे में वन अतिक्रमण पाँच गुना बढ़ा है.</li> <li><strong>सभी के लिए हेल्थकेयर:</strong> एक दिन की सीएम बनीं अर्चना के लिए, जो पेशे से डॉक्टर हैं, बेंगलुरु में ग़रीब लोगों के लिए हेल्थ केयर एक बड़ा मुद्दा है. उन्होंने कहा कि शहर में इलाज वक़्त के साथ महंगा हुआ है. महिलाओं और ग़रीबों के लिए इलाज किफायती होना ज़रूरी है.</li> <li><strong>स्कूलों में अंग्रेज़ी का वर्चस्व:</strong> हालांकि दक्षिण भारत में अंग्रेज़ी समझने वालों की संख्या काफ़ी है, फिर भी स्थानीय लोगों को लगता है कि स्कूलों में अंग्रेज़ी का वर्चस्व बढ़ रहा है और उससे उनकी स्थानीय भाषाओं का नुक़सान हो रहा है.</li> </ul><p>बेंगलुरु (कर्नाटक) के लोगों ने जो मुद्दे सुझाएं हैं, उन पर कहानियाँ तैयार करना बीबीसी की पॉप-अप टीम का अगला मिशन है.</p><p>हमारी टीम सूबे में कई अन्य कहानियाँ भी इकट्ठा करेगी. इन कहानियों को पढ़ने के लिए हमारे साथ जुड़े रहें.</p><p>हमारी मौजूदगी <a href="https://www.facebook.com/BBCnewsHindi/">फ़ेसबुक</a>, <a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a> और <a href="https://twitter.com/BBCHindi">टि्वटर</a> पर है. आप #BBCNewsPopUp और #KarnatakaElection2018 का इस्तेमाल कर हमसे बात भी कर सकते हैं.</p><p>आपकी कहानियां भी बीबीसी तक आ सकती हैं.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां</a><strong> क्लिक कर सकते हैं.आप हमें</strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi"> फ़ेसबुक</a><strong> और </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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