एक दिन में राष्ट्रमंडल खेलों में शायद इतने पदक भारत को कभी नहीं मिले. कुल आठ स्वर्ण पदक. शुरुआत कराई मेरी कॉम ने.
तीन बच्चे की इस माँ ने अपने से 16 साल छोटी नॉर्दर्न आयरलैंड की बॉक्सर क्रिस्टीना ओ हारा को कोई मौका नहीं दिया.
कम उम्र होने के कारण उनके ‘रेफ़्लेक्सेज़’ मेरी से तेज़ थे और उनका क़द भी उनसे लंबा था.
लेकिन मेरी ने ‘टेक्टिकल बॉक्सिंग’ करते हुए अपने अनुभव का पूरा फ़ायदा उठाया. पहले राउंड में उन्होंने हारा को परखा.
दूसरे राउंड में उसे अपने नज़दीक नहीं फटकने दिया. तीसरे राउंड में वो ‘ऑल-आउट’ गईं और कई बार उनके ‘जैब्स’ हारा के चेहरे पर पड़े.
जैसे ही फ़ैसले का ऐलान हुआ, मेरी के कोच ने दौड़ कर उन्हें अपने कंधे पर उठा लिया.
वो उन्हें अपने कंधे पर उठाए उठाए ही दर्शकों के स्टैंड में ले गए, जहाँ खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर मुक़ाबला देख रहे थे.
राठौर ने मेरी को गले लगाया और पूरा स्टेडियम मेरी, मेरी के नाम से गूँज गया.
मेरी जब पास आईं तो मैंने देखा कि उनका मुंह छिला हुआ था लेकिन उनके चेहरे पर हमेशा रहने वाली ‘हाई वोल्टेज़’ मुस्कान बरक़रार थी.
मेरी कॉम की फ़ार्म और जज़्बे को देख कर नहीं लगता कि कोई उन्हें टोकियो ओलंपिक में शामिल होने से रोक पाएगा.
आमतौर से 32 की उम्र के बाद अंतर्राष्ट्रीय बॉक्सर रिटायरमेंट के बारे में सोचने लगते हैं, लेकिन मेरी के मन में ये ख़्याल दूर दूर तक नहीं है.
सबसे आश्चर्यजनक था गौरव सोलंकी का स्वर्ण पदक
जब दुबले पतले गौरव सोलंकी 52 किलो वर्ग में रिंग में उतरे तो हम से कई लोग उन्हें नॉर्दर्न आयरलैंड के बॉक्सर के ख़िलाफ़ बहुत ‘चांस’ नहीं दे रहे थे.
लेकिन कुछ ही सेकेंडों में पता चल गया कि सोलंकी आयरिश बॉक्सर पर भारी पड़ रहे हैं.
बल्लभगढ़, हरियाणा के रहने वाले 19 वर्षीय सोलंकी ने पहले दो राउंड में ही आयरिश बॉक्सर पर अच्छी ख़ासी बढ़त बना ली थी.
दूसरे राउंड में तो ब्रैंडन इरवाइन का शायद ही कोई मुक्का सोलंकी को लगा हो. तीसरे राउंड में वो थोड़े पिछड़े, लेकिन शुरू में बनाए गए अंक उनकी जीत के लिए काफ़ी थे.
इस दौरान वो दो बार नीचे गिरे, लेकिन ‘ग्लैडियेटर’ की तरह तुरंत उठ खड़े हुए.
सेमीफ़ाइनल में भी श्रीलंका के बाक्सर बंडारा नें उन्हें दो बार नीचे गिराया था और उन्हें ‘स्टैंडिंग काउंट’ झेलना पड़ा था.
लेकिन सोलंकी ने बेहतरीन गेम प्लान के साथ वापसी करते हुए बंडारा को हरा दिया था.
जब वो जीत के बाद हमारे पास पहुंचे तो हमने देखा कि उनके कान के नीचे से ख़ून बह रहा था. उन्होंने बताया कि तीसरे राउंड में उन्हें ये चोट लगी थी.
उन्होंने अपना स्वर्ण पदक अपनी माँ को समर्पित किया और बोले कि मेरी असली जीत तब होगी जब मैं टोकियो ओलंपिक में भारत का झंडा फहराऊंगा.
नीरज चोपड़ा ने जेवेलिन थ्रो में रचा इतिहास
नीरज चोपड़ा को देख कर लगता नहीं कि वो मात्र 20 वर्ष के हैं.
बड़े बड़े बालों वाले नीरज जब अपने कंधों पर तिरंगा लपेट कर पत्रकारों से मिलने आए तो ऐसा लगा कि वो सालों से ये काम अंजाम देते रहे हो.
क्वॉलिफ़ाइंग राउंड में वो दूसरे स्थान पर थे. मैंने उनसे पूछा कि आप इससे परेशान नहीं थे?
नीरज ने जवाब दिया, ‘बिल्कुल भी नहीं. मैंने जानबूझ कर क्वालिफ़ाइंग राउंड में अपना पूरा दम नहीं लगाया था और अपनी सारी ताक़त फ़ाइनल के लिए बचा कर रखी थी.’
पहले ही प्रयास में उन्होंने 85.50 मीटर भाला फेंक कर लीड ले ली थी.
चौथे प्रयास में उन्होंने 86.47 मीटर की दूरी तक भाला फेंका और दूसरे नंबर पर आए अपने ऑस्ट्रेलियाई प्रतिद्वंदी से करीब करीब चार मीटर आगे रहे.
नीरज सिर्फ़ 1 सेंटीमीटर से अपने ‘पर्सनल बेस्ट’ प्रयास की बराबरी करने से चूक गए.
नीरज इससे पहले पोलैंड में हुई अंडर-20 विश्व चैपिंयनशिप और एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीत चुके हैं.
नीरज चोपड़ा के पदक के महत्व का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि राष्ट्रमंडल खेलों के अब तक के इतिहास में भारत को एथलेटिक्स की व्यक्तिगत स्पर्धा में अब तक सिर्फ़ तीन स्वर्ण पदक मिले हैं- मिल्खा सिंह, विकास गाउड़ा और सीमा पूनिया.
हरियाणा के पानीपत ज़िले के गाँव खांडरा के रहने वाले नीरज एक किसान के बेटे हैं.
दो साल बाद टोकियो में होने वाले ओलंपिक खेलों में नीरज चोपड़ा से स्वर्ण पदक की उम्मीद करना ग़लत नही होगा.
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