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कश्मीर का ट्युलिप मैन जिसने फूलों के लिए सबकुछ भुला दिया

<p>जब मैं भारत-प्रशासित कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्युलिप गार्डन में ग़ुलाम रसूल से मिलने गया तो वह फूलों के बीच में बैठकर घास साफ़ कर रहे थे और विभाग के दूसरे कर्मचारी भी बाग़ में अपने काम में मग्न थे. </p><p>ट्युलिप गार्डन में लाखों फूलों की निगरानी करने वाले 58 साल […]

<p>जब मैं भारत-प्रशासित कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्युलिप गार्डन में ग़ुलाम रसूल से मिलने गया तो वह फूलों के बीच में बैठकर घास साफ़ कर रहे थे और विभाग के दूसरे कर्मचारी भी बाग़ में अपने काम में मग्न थे. </p><p>ट्युलिप गार्डन में लाखों फूलों की निगरानी करने वाले 58 साल के गुलाम रसूल बीते दस सालों से एक ही बात पर अपना ध्यान दे रहे हैं कि ट्युलिप गार्डन को हर साल नए दिन के साथ और खूबसूरत कैसे बनाया जाए. </p><p>एशिया का ये सबसे बड़ा ट्युलिप गार्डन दुनिया भर में मशहूर डल झील के बिल्कुल क़रीब है. </p><p>बाग़ में ऊंचाई पर आकर डल का दिल फ़रेब नज़ारा भी देखा जा सकता है. </p><p>गुलाम रसूल ट्युलिप गार्डन में मुख्य माली के तौर पर काम कर रहे हैं और उनके मातहत क़रीब सौ माली काम करते हैं. </p><p>बीते 36 सालों से गुलाम रसूल फूलों की दुनिया के साथ जुड़े हुए हैं. </p><h1>जब नहीं रहेगा ट्युलिप के फूलों का साथ</h1><p>दो सालों के बाद गुलाम रसूल रिटायर हो रहे हैं. उन्हें ये परेशानी है कि दो साल के बाद वह ट्युलिप के इर्द गिर्द नहीं होंगे. </p><p>हालांकि, उन्हें ये उम्मीद भी है कि दूसरे लोग बेहतर प्रदर्शन करके अपने काम को अंजाम देंगे और ट्युलिप गार्डन को और भी खूबसूरत बनाएंगे. </p><p>वह कहते हैं, &quot;2020 में मुझे रिटायर होना है. मुझे ये फ़िक्र सताती रहती है कि पता नहीं मेरे बाद कैसे लोग आएंगे. लेकिन मुझे उम्मीद है कि जो कुछ होगा अच्छा ही होगा. हमारे अधिकारी भी कोशिश कर रहे हैं कि ट्युलिप गार्डन और भी अच्छा बने. लेकिन जिस पर ज़िम्मेदारी है उसकी चिंता बढ़ना जरूरी है. हमारे बाद जो भी आएंगे उनको भी लगन और मेहनत से काम करना होगा.&quot; </p><p>रसूल के साथ कई बार ऐसा हुआ है कि जब वह घर पहुंचे तो पीछे से उन्हें फ़ोन करके वापस बुलाया गया. </p><p>उन्होंने कहा, &quot;कई एक बार ऐसा हुआ कि जैसे ही मैं घर पहुंचा और अपना खाने का डिब्बा नीचे रखा वैसे ही मेरे अधिकारी ने मुझे फ़ोन करके वापस बुलाया और मुझ से कहा कि बाग़ में कुछ काम आ गया है तो मैं वापस चला गया. &quot; </p><p>साल 1984 में रसूल ने फ्लोरीकल्चर विभाग में दिहाड़ी मजदूर के तौर पर नौकरी की शुरुआत की थी.</p><p>वह कहते हैं कि ट्युलिप के साथ लगाव और ज़िम्मेदारी ने कभी उन्हें किसी और बात के बारे में सोचने का मौका नहीं दिया. </p><p>&quot;आप शायद यक़ीन नहीं करेंगे कि जब कुछ साल पहले मेरे बेटे ने स्नातक की परीक्षा पास की तो मुझे पता भी नहीं था. कुछ साल पहले मेरी माँ बीमार हो गई तो वह एक महीने तक अस्पताल में थीं. और मैं सिर्फ दो बार उन्हें देखने के लिए गया. मैं सोते सोते भी यही सोचता हूँ कि कल ट्युलिप गार्डन को कैसे और खूबसूरत बनाया जा सकता है. मुझे आज तक ये भी पता नहीं कि घर में क्या सालन बनी है या बनाया जाएगा&quot; </p><p><strong>ट्युलिप के इश्क में </strong><strong>ग़ुलाम </strong><strong>हुए रसूल</strong></p><p>रसूल कहते हैं कि जब घर में मेरे सामने चाय रखी जाती है तो मेरे हाथ में कागज़ और क़लम होती है और मैं नए-नए फूलों के नाम सुनता हूँ और उन्हें लिखता रहता हूँ. </p><p>उनका कहना था, &quot;मेरे घर वाले अक्सर मुझे कहते हैं कि क्या आपको चाय नहीं पीनी है? लिखते-लिखते और सोचते-सोचते मुझे रात के एक या दो बज जाते हैं. सुबह फ़जिर की नमाज़ पढ़ने के लिए उठता हूँ और फिर वही शुरू होता है जो मैं रात के दो बजे तक करता रहता हूँ.&quot; </p><p>वह कहते हैं कि अक्सर मुझे मेरे कर्मचारी कहते हैं कि ‘आप को इस बाग़ की ज्यादा ही फ़िक्र रहती है, जबकि इतनी फ़िक्र तो यहां किसी को नहीं होती है.'</p><p>गुलाम रसूल के लिए सबसे बड़ा इत्मीनान यहां आने वाले लोगों का गार्डन को देखकर खुश होना है. </p><p>ट्युलिप गार्डन 30 हेक्टर ज़मीन पर फैला हुआ है. रसूल के मुताबिक़ इस बाग़ में 57 क़िस्म के ट्युलिप हैं. </p><p>ट्युलिप का मेला मार्च के आखिर से शुरू होता है जो क़रीब एक महीने तक जारी रहता है. बीते ग्यारह दिनों में यहां 81,000 हज़ार टूरिस्ट आ चुके हैं. </p><h1>काम के लिए मिला सम्मान</h1><p>वर्ष 2006 में उस समय के मुख्यमंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने ट्युलिप गार्डन बनाने का विचार सामने रखा था. </p><p>उस समय सरकार ने विभाग के चुनिंदा कर्मचारियों और माहिर लोगों की एक टीम ट्युलिप गार्डन को बनाने के लिए तैयार की थी जिसमें गुलाम रसूल भी शामिल थे. </p><p>वह कहते हैं, &quot;जब आज़ाद साहब ने ट्युलिप गार्डन बनाने का विचार सामने रखा तो विभाग के सभी लोगों जिन में कुछ अधिकारी भी शामिल थे, उन्होंने इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया. एक साल के बाद जब हमने ट्युलिप गार्डन को आम लोगों के लिए खोल दिया तो आज़ाद साहब बहुत उत्साहित नज़र आए.&quot;</p><p>गुलाम रसूल को उनके बेहतरीन काम के लिए सम्मानित भी किया जा चुका है. </p><p>ट्युलिप गार्डन के कस्टोडियन जावेद अहमद कहते हैं कि ‘इस में कोई शक नहीं है कि गुलाम रसूल ने इस गार्डन के लिए अपनी मेहनत की हर हद को पार किया है.’ </p><p>जावेद अहमद कहते हैं कि ‘दूसरे लोग भी हमारे यहां हैं जो इस बाग़ की बेहतरी के लिए बहुत मेहनत करते हैं.’ </p><p>वह बताते हैं कि कश्मीर में पर्यटन का सीजन पहले मई में शुरू होता था, लेकिन ट्युलिप गार्डन शुरू होने के बाद अब मार्च में ही पर्यटक आना शुरू हो जाते हैं. </p><p>जब में ट्युलिप गार्डन से वापस निकला तो उस समय रात के आठ बज चुके थे. </p><p>मैंने गुलाम रसूल से कहा कि क्या आप घर नहीं जा रहे हैं तो वह मेरे चेहरे को कुछ गौर से देखते रहे और कहा कि नहीं अभी तो सवेरा है.</p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-43393385">कैसे बना जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा?</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-43218789">दो मुल्कों की गोलियों से बचते कश्मीर के ये गांववाले</a></p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/BBCnewsHindi/">फ़ेसबुक</a><strong> और </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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