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किधर जायेंगे बनारस के मुसलमान?

– 17 लाख मतदाताओं में से 3.5 लाख हैं मुसलमान – केजरीवाल के पक्ष में होती दिख रही है गोलबंदी शनिवार को वाराणसी संसदीय क्षेत्र के लिए चुनाव प्रचार खत्म हो गया. पिछले कुछ दिनों में यहां जो कुछ हुआ, वह किसी सिनेमा से कम नहीं था. ताबड़तोड़ रैलियां, रोड शो, गली-गली घूमते प्रचार दल. […]

– 17 लाख मतदाताओं में से 3.5 लाख हैं मुसलमान

– केजरीवाल के पक्ष में होती दिख रही है गोलबंदी

शनिवार को वाराणसी संसदीय क्षेत्र के लिए चुनाव प्रचार खत्म हो गया. पिछले कुछ दिनों में यहां जो कुछ हुआ, वह किसी सिनेमा से कम नहीं था. ताबड़तोड़ रैलियां, रोड शो, गली-गली घूमते प्रचार दल. इतना व्यापक और सघन चुनाव प्रचार इससे पहले शायद ही कभी देखने को मिला हो. लेकिन, इस हल्ले-गुल्ले में आम मुसलमानों की शिरकत कम ही देखने को मिली. उनकी तरफ से एक खामोशी दिखती है. पर, शायद यह खामोशी ऊपरी है, रणनीतिक है.

मुसलमानों में भीतर-भीतर जबदस्त मंथन चल रहा है. नरेंद्र मोदी उनके लिए एक ‘चुनौती’ हैं, जिन्हें वो हर हाल में रोकना चाहते हैं. इस बात के पुख्ता संकेत मिल रहे हैं कि बनारस में मुसलमान गोलबंद होकर किसी एक उम्मीदवार के पक्ष में जा सकते हैं. और, ऐसा लग रहा है कि वह उम्मीदवार कोई और नहीं, आम आदमी पार्टी (आप) के नेता अरविंद केजरीवाल हैं.

ऐसी चर्चा है कि केजरीवाल के विशाल रोड शो के बाद वाराणसी के मुसलिम मतदाताओं को यह एहसास हुआ है कि वाराणसी में मोदी का मुकाबला केजरीवाल ही कर सकते हैं. शुक्रवार को केजरीवाल ने जो रोड शो किया, उसमें एक दिन पहले हुए मोदी के रोड शो के मुकाबले कुछ ही कम भीड़ थी. इसके अलावा, ‘आप’ कार्यकर्ता जोश के मामले में मोदी समर्थकों से उन्नीस पड़ते नहीं दिख रहे थे. मुसलिम मतदाताओं पर इसका काफी असर पड़ा है.

एक अंगरेजी अखबार ने एक वरिष्ठ मुसलिम धर्मगुरु के हवाले से खबर दी है कि मतदान से ठीक एक दिन पहले, 11 मई को मुसलिम धार्मिक नेता बैठक करके गुप्त रूप से तय करेंगे कि किसे वोट दिया जाये, ताकि मुसलिम वोट बंटने न पाये. बनारस के मुफ्ती अब्दुल बाथिन नूमानी ने अखबार को बताया कि ‘‘धर्मनिरपेक्षता के सामने आयी चुनौतियों को देखते हुए हम अपने लोगों को कह रहे हैं कि वे एक ही तरफ वोट दें.

हम अपने समुदाय के वोटों को बंटने नहीं देंगे.’’ उन्होंने यह तो साफ-साफ नहीं बताया कि उनकी पसंद अजय राय हैं या केजरीवाल, पर यह जरूर कहा- ‘‘हमारे समुदाय के लोग केजरीवाल में काफी रुचि दिखा रहे हैं, पर यह बात मैं साफ कर देना चाहता हूं कि कई मोहल्लों में लोग अजय राय के बारे में भी बात कर रहे हैं.’’ अखबार ने मुसलिम समुदाय से जुड़े कई अन्य गणमान्य लोगों से भी बात की है, जिनका दावा है कि अधिकतर मुसलमानों का रुख केजरीवाल के पक्ष में है. भाजपा लगातार यह दावे कर रही है कि वाराणसी में मोदी की जीत ऐतिहासिक अंतर से होगी.

उसे उम्मीद है कि मुसलिम वोट ‘आप’, कांग्रेस, सपा और बसपा में बंटेंगे, जिसका उसे फायदा मिलेगा. लेकिन उसकी इस उम्मीद पर मुसलमान पानी फेर सकते हैं. बताते चलें कि वाराणसी में कुल वोटरों की संख्या लगभग 17 लाख है जिनमें से लगभग 3.5 लाख वोटर मुसलिम हैं. इनमें से ज्यादातर बनारस के शहरी इलाकों में रहते हैं इसलिए इन्हें गोलबंद कर पाना संभव दिखता है.

कुछ दिनों पहले तक मुसलमानों में इस बात को लेकर काफी भ्रम था कि वे कांग्रेस के उम्मीदवार अजय राय के पक्ष में गोलबंद हों या केजरीवाल के. लेकिन जैसे-जैसे मतदान का दिन करीब आ रहा है, मुसलमान केजरीवाल की ओर झुकते दिख रहे हैं. अजय राय की भाजपा से जुड़ी पृष्ठभूमि के चलते भी मुसलमान, केजरीवाल को बेहतर विकल्प मान रहे हैं.

चुनाव प्रचार के आखिरी दिन राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने अपनी-अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए पूरा दम-खम लगाया. इन दोनों नेताओं ने अपने रोड-शो के लिए मार्ग के चयन में मुसलिम इलाकों का खास तौर पर ध्यान रखा. अगर मुसलिम एकजुट होकर ‘आप’ के पक्ष में आ जायें और सपा, बसपा व कांग्रेस के उम्मीदवार अपनी और अपनी पार्टी के जातिगत वोट बैंक को बचाये रखने में सफल हो जायें, तो भाजपा के लिए वाराणसी की राह कठिन हो सकती है.

केजरीवाल ने चुनाव मैदान में उतरने के लिए जिस दिन से बनारस की धरती पर कदम रखा है, उसी दिन से उनके दिमाग में यह बात साफ है कि बनारस में उनकी नैया की पतवार मुसलमानों के हाथ में है. 26 मार्च की सुबह बनारस पहुंचने पर, उन्होंने हरा गमछा लपेट कर गंगा स्नान किया. उसी दिन यह चर्चा शुरू हो गयी कि हरे गमछे का चयन सोच-समझ कर प्रतीकात्मक रूप से किया गया है.

उसी दिन उन्होंने शहर के काजी से मुलाकात की. शाम को उन्होंने उसी बेनिया बाग में रैली की, जहां रैली करने की अनुमति सुरक्षा कारणों से बीते गुरुवार को नरेंद्र मोदी को नहीं मिल पायी. इस मैदान के आसपास सघन मुसलिम आबादी है. रैली के दौरान केजरीवाल के बगल में मंच पर मुसलिम धर्मगुरु भी विराजमान थे. अजान के समय रैली को चंद मिनटों के लिए रोक कर भी उन्होंने संदेश देने की कोशिश की. आप कार्यकर्ताओं ने भी मुसलिम इलाकों में ज्यादा जोर लगा कर प्रचार किया, क्योंकि उन्हें सबसे ज्यादा उम्मीद इसी समुदाय के मतदाताओं से है.

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