श्रद्धा सुमन
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आधुनिक लोकप्रिय कवियों में केदार जी
श्रद्धा सुमन आधुनिक कविता के सशक्त हस्ताक्षर केदारनाथ सिंह अपनी अंतिम यात्रा पर चले गये हैं. जाने को सबसे खौफनाक क्रिया माननेवाले कवि का जाना गहरे दुख में ले जानेवाला है. हिंदी कविता को समृद्ध करनेवाले और अगली कई पीढ़ियों को कविता का एक संस्कार देनेवाले केदार जी आजीवन ग्रामीण संवेदना के कवि बने रहे. […]
आधुनिक कविता के सशक्त हस्ताक्षर केदारनाथ सिंह अपनी अंतिम यात्रा पर चले गये हैं. जाने को सबसे खौफनाक क्रिया माननेवाले कवि का जाना गहरे दुख में ले जानेवाला है. हिंदी कविता को समृद्ध करनेवाले और अगली कई पीढ़ियों को कविता का एक संस्कार देनेवाले केदार जी आजीवन ग्रामीण संवेदना के कवि बने रहे. हिंदी साहित्य जगत में करीब सारे सम्मान-पुरस्कार पाने के बावजूद वे अजातशत्रु थे. उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!
आधुनिक लोकप्रिय कवियों में केदार जी
श्रद्धांजलि
सल 1989 में साहित्य अकादमी से सम्मानित केदारनाथ सिंह का जन्म वर्ष 1934 में उत्तर प्रदेश के बलिया के एक छोटे से गांव चकिया में हुआ था. साल 2013 में साहित्य का प्रतिष्ठित सम्मान ‘ज्ञानपीठ’ पानेवाले वे हिंदी के दसवें लेखक थे. केदार जी ने साल 1956 में बीएचयू से हिंदी में एमए किया और फिर 1964 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. पहले उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य शुरू किया और बाद में वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में चले गये,
जहां से वे हिंदी भाषा के विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुए. ‘अभी बिल्कुल अभी’, ‘जमीन पक रही है’, ‘यहां से देखो’, ‘बाघ’, ‘अकाल में सारस’, ‘उत्तर कबीर और अन्य कविताएं’, ‘तालस्ताय और साइकिल’, और ‘सृष्टि पर पहरा’, उनकी प्रमुख कृतियां हैं. केदार जी ने कई पत्रिकाओं का संपादन भी किया. बीते 19 मार्च को दिल्ली के एम्स में उन्होंने आखिरी सांस ली.
केदारनाथ सिंह की कविताएं
मुक्ति
मुक्ति का जब कोई रास्ता नहीं मिला
मैं लिखने बैठ गया हूं
मैं लिखना चाहता हूं ‘पेड़’
यह जानते हुए कि लिखना पेड़ हो जाना है
मैं लिखना चाहता हूं ‘पानी’
‘आदमी’ ‘आदमी’ – मैं लिखना चाहता हूं
एक बच्चे का हाथ
एक स्त्री का चेहरा
मैं पूरी ताकत के साथ
शब्दों को फेंकना चाहता हूं आदमी की तरफ
यह जानते हुए कि आदमी का कुछ नहीं होगा
मैं भरी सड़क पर सुनना चाहता हूं वह धमाका
जो शब्द और आदमी की टक्कर से पैदा होता है
यह जानते हुए कि लिखने से कुछ नहीं होगा
मैं लिखना चाहता हूं.
पूंजी
सारा शहर छान डालने के बाद
मैं इस नतीजे पर पहुंचा
कि इस इतने बड़े शहर में
मेरी सबसे बड़ी पूंजी है
मेरी चलती हुई सांस
मेरी छाती में बंद मेरी छोटी-सी पूंजी
जिसे रोज मैं थोड़ा-थोड़ा
खर्च कर देता हूं
क्यों न ऐसा हो
कि एक दिन उठूं
और वह जो भूरा-भूरा-सा एक जनबैंक है
इस शहर के आखिरी छोर पर
वहां जमा कर आऊं
सोचता हूं
वहां से जो मिलेगा ब्याज
उस पर जी लूंगा ठाट से
कई-कई जीवन…
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