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कविता की दुनिया मनुष्यता की दुनिया का ही हिस्सा है

दिल्ली पहुंचते ही जैसे ही मैंने अपना मोबाइल ऑन किया, व्हॉट्सएप पर साहित्यकार और पत्रकार मित्रों के मैसेज तैरने लगे- ‘प्रख्यात हिंदी कवि केदारनाथ सिंह नहीं रहे! एम्स में उन्होंने अंतिम सांस ली.’ इस खबर को देखते ही फौरन जेहन आज से तीन साल पहले 2015 की ओर फ्लैशबैक में घूमा और सारी तस्वीरें एक […]

दिल्ली पहुंचते ही जैसे ही मैंने अपना मोबाइल ऑन किया, व्हॉट्सएप पर साहित्यकार और पत्रकार मित्रों के मैसेज तैरने लगे- ‘प्रख्यात हिंदी कवि केदारनाथ सिंह नहीं रहे! एम्स में उन्होंने अंतिम सांस ली.’ इस खबर को देखते ही फौरन जेहन आज से तीन साल पहले 2015 की ओर फ्लैशबैक में घूमा और सारी तस्वीरें एक बार आंखों के सामने घूम गयीं.

जी हां, केदारनाथ सिंह पटना आये हुए थे. मैंने अपने टीवी प्राेग्राम ‘सिर्फ सच’ के लिए उन्हें स्टूडियो आने का आग्रह किया. वे सर्किट हाउस में ठहरे हुए थे. उन्होंने कहा कि आपको खुद आकर मुझे ले जाना होगा और सुबह मैं आपको नौ बजे वक्त दूंगा और एक घंटे में आप मुझे वापस सर्किट हाउस छोड़ देंगे, क्योंकि कई कार्यक्रमों में मुझे जाना है. स्टूडियो मैंने सुबह ही तैयार करवा दिया था और ठीक पौने नौ बजे मैं उनके पास हाजिर हो गया. वे तैयार बैठे थे, तैयार क्या- बस आसमानी रंग का कुर्ता और सफेद पाजामा पहन रखा था उन्होंने.
वे स्टूडियो में आये. लेकिन, जैसे ही मेकअप मैन अपना ताम-झाम लेकर उनका मेकअप करने आया, उन्होंने यह कहते हुए मेकअप से साफ इनकार कर दिया कि अव्वल तो वे मेकअप करते नहीं, दोयम यह कि मेकअप अापकी शख्सियत को चमकाता नहीं. बड़े सादे मिजाज के थे वे. कुर्ता भी कलफ किया हुआ नहीं और न ही विद्वता का ही कोई गुमान.
खैर, बातचीत शुरू हुई. मैंने पूछा कि पूरी दुनिया में उथल-पुथल मची हुई है और पूरी दुनिया के केंद्र में अलगाव, विध्वंस है. ऐसी विषम परिस्थिति में कविता की क्या भूमिका है? कविता सृजन है, सृजन का संसार है, ऐसे में क्या कविता की कोई सकारात्मक भूमिका है? इस पर उन्होंने कहा- कविता की भूमिका मनुष्यता की दुनिया का ही हिस्सा है, उससे अलग नहीं है. आदमी के मुख से जो कविता फूटती है, वह मनुष्यता की दुनिया में आती है. हां, अलगाववाद निश्चित रूप से आज एक बड़ी समस्या है,
और यह मनुष्य की मूलभूत समस्याओं में एक है. उसका सामना अकेले यह दुनिया नहीं कर सकती. कविता मनुष्य के अंदर की संवेदना को बचाये रख सकने में भूमिका निभा सकती है.
उन्होंने कहा- ज्यां पाल सार्त्र से पूछा गया था कि आपका लेखन, दर्शन, उपन्यास क्या भूख से तड़पते बच्चे के लिए भोजन ला सकता है? इस पर सार्त्र ने कहा था कि मेरी किताब यह करेगी कि एक बच्चा भूख से तड़प रहा है, उस संवेदना को हमारे अंदर उकेरेगी और उस संवेदना को लोगों तक पहुंचायेगी और नहीं तो हमें मान लेना चाहिए कि संवेदना का स्रोत सूख गया है. उनसे और भी बहुत सारे मुद्दों पर खूब बातें हुईं. आज उनका हमें छोड़ जाना निश्चित ही हिंदी संसार के लिए एक बड़ी क्षति है. उन्हें शत् शत् नमन!

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