कर्नाटक और केरल में शांति से रथयात्रा निकलने के बाद तमिलनाडु में कांग्रेस और लेफ्ट इसका विरोध कर रहे हैं.
तमिलनाडु में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की राम राज्य रथयात्रा का विरोध जारी है. मुख्य विपक्षी दल डीएमके और अन्य दलों के विरोध के बावजूद रथयात्रा ने मंगलवार को तमिलनाडु में प्रवेश किया.
डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष एमके स्टालिन ने विधानसभा में यह कहकर यात्रा का विरोध किया कि इससे राज्य का सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ेगा.
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इसके बाद स्टालिन और डीएमके के सदस्यों ने विधानसभा में नारेबाजी और सदन से बाहर चले गए. इसके बाद बाहर आकर सड़क पर बैठे स्टालिन और विधायकों को हिरासत में ले लिया.
13 फ़रवरी को उत्तर प्रदेश के अयोध्या से चली इस यात्रा का पहला चरण 25 मार्च को कन्याकुमारी में पूरा होगा.
लेकिन, कई राज्यों से शांति से गुजरी इस यात्रा के तमिलनाडु में ज़बरदस्त विरोध के क्या मायने हैं और राम राज्य के मुद्दे का राज्य पर क्या प्रभाव है इस संबंध में बीबीसी संवाददाता मोहम्मद शाहिद ने तमिलनाडु के वरिष्ठ पत्रकार डी सुरेश कुमार से बात की. उन्होंने क्या कहा आगे पढ़ें.
कहां से शुरू हुआ विवाद
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के एक विधायक ने रथयात्रा का विरोध किया था. उन्होंने कहा था कि यात्रा तमिलनाडु से नहीं निकल सकती.
इसके बाद डीएमके के नेता स्टालिन ने इस विरोध को आगे बढ़ाया. उनका कहना है कि जब सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर का मामला अब भी लंबित है तो इस समय रथ यात्रा नहीं निकाली जा सकती. उन्होंने इसका सख्त विरोध किया था. इसके बाद कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल भी साथ आ गए.
लेकिन, एक तरफ़ राजनीतिक विरोध चल रहा था तो दूसरी तरफ़ मंगलवार को तिरुनेल्वेली में यात्रा आने वाली थी, लेकिन सोमवार को ही वहां के कलेक्टर ने धारा 144 लगा दी. इसके कारण विरोध और बढ़ गया.
लोगों का कहना था कि यहां धारा 144 लगा दी गई है, लेकिन रथ यात्रा लाने वालों को सुरक्षा दी जा रही है. यहां पर एआईडीएमके की सरकार है या बीजेपी की.
राज्य की हालिया स्थिति क्या है
यहां ज़बरदस्त राजनीतिक विरोध चल रहा है. सड़क जाम करने के कारण डीएमके के कुछ नेताओं को गिरफ्तार भी किया गया.
वहीं, तिरुनेलवेली में भी कुछ नेताओं को गिरफ्तार किया गया है. पहले यात्रा विरुधुनगर में पहुंची और फिर शाम 6:30 बजे मदुरई आई और बुधवार को रामनाथपुरम पहुंची.
तमिलनाडु में विपक्षी दल साथ क्यों
1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के समय भी तमिलनाडु में शांति ही शांति थी. राज्य में सांप्रदायिक तनाव बहुत कम है. सिर्फ़ एक ही बार यहां 1998 में ऐसा हुआ था.
उस समय बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी कोयंबटूर में कैंपेन करने आने वाले थे और तब वहां बम विस्फोट हुआ था. ,
तमिलनाडु में जातीय टकराव होता है, लेकिन हिंदू-मुस्लिम या हिंदू-इसाई विभाजन नहीं है क्योंकि यहां सामाजिक न्याय आंदोलन बहुत मज़बूत और प्रभावी रहा है.
अब फिर से ऐसा मौका आया है जब विरोधी दल एक हुए हैं क्योंकि केरल में वामपंथी और कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है फिर भी इन राज्यों से रथयात्रा शांति से निकल गई. लेकिन, तमिलनाडु में कांग्रेस, लेफ्ट पार्टी और डीएमके सभी इसका विरोध कर रहे हैं.
बहुत सालों से तमिलनाडु में अलग-अलग धर्मों के लोग आपसी सौहार्द से रहते हैं. लेकिन, अभी ये बहुत बड़ा मामला इसलिए हो गया है क्योंकि जयललिता की मौत के बाद यहां बीजेपी अपने लिए मौका तलाश रही है.
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