राहुल सिंह
फुलबासन यादव की करिश्माई सफलता किसी फिल्मी कहानी की तरह लगती है. उनकी इस एक कहानी में कई छोटी-छोटी कहानियां शामिल हैं और कई संकेत भी. जैसे, कैसे एक अशिक्षित महिला अपने दु:ख को देख दूसरों के दु:ख को दूर करने के लिए उठ खड़ी हुई.
कैसे एक आइएएस अधिकारी की नेक नीयत से दूसरों के घरों में बरतन मांजने वाली एक महिला पदमश्री बन गयी व महिला सशक्तीकरण का एक श्रेष्ठ उदाहरण साबित हुई और एक महिला जब कुछ अच्छा काम करना चाहती है कि तो कैसे उसे अत्याचार से जूझना पड़ता है.
झारखंड के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिले राजनांदगांव की फुलबासन यादव अपनी उपलब्धि का श्रेय अपनी आत्मप्रेरणा के साथ अपने गुरुतुल्य आइएएस अधिकारी दिनेश श्रीवास्तव को देती हैं. वर्तमान में छत्तीसगढ़ सरकार में शिक्षा सचिव के रूप में कार्यरत दिनेश श्रीवास्तव जब राजनांदगांव के जिला कलेक्टर थे, तब उन्होंने फुलबासन को एसएचजी के प्रति उनके लगन को पहचाना और उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए हर तरह से मदद की, जिसके कारण आज उनकी मजबूत शख्सियत बन सकी है. फुलबासन यादव से अगर आप हिंदी में बात करेंगे, तो वे सहज नहीं हो पायेंगी. वे बार-बार अपनी भाषा छत्तीसगढ़ी में बोलने लगती हैं. फिर आप उन्हें हिंदी बोलवाने की कोशिश करते हैं, तो एक-दो पंक्तियां हिंदी में बोलने के बाद वे फिर छत्तीसगढ़ी में ही बोलते लगती हैं. दरअसल हिंदी जानने के बावजूद अपनी लोकभाषा में अपने विचारों-सोच को अभिव्यक्त करना उनके लिए अधिक आसान होता है.
10 साल के उम्र में फुलबासन का विवाह दूसरे के यहां चरवाही करने वाले चंदूलाल से हो गया. उनके मां-पिता का कहना था कि हम गरीब लोग हैं, पढ़ के क्या करोगी, शादी के बाद दूसरे के ही घर जाना है. तीन बहन और दो भाई वाले परिवार में सभी के लिए भोजन का प्रबंध करना भी बड़ी समस्या थी. शादी के पहले वे सात साल की उम्र से होटल में काम करती व बरतन साफ करतीं. शादी के बाद वे 13 साल की उम्र में ससुराल गयीं और वहां पति की तरह ही चरवाही करने लगीं. गरीबी इस कदर थी कि पैर में टूटी चप्पल भी नहीं होती. फुलबासन कहती हैं : फटे, पुराने कपड़े ही नसीब थे, यहां तक की बाल संवारने तक का सलीका नहीं था. इस बीच उन्हें चार बच्चे भी हो गये. दो लड़कियां, दो लड़के. रोटी के लिए बच्चों का तरसना उन्हें काफी परेशान करता था. इस संवाददाता से बात करते हुए रुआंसी होते हुए फुलबासन कहती हैं कि बच्चों की दवा के लिए उनके पास दो रुपये नहीं होते थे. ऐसे में उन्होंने संकल्प लिया कि वे कुछ करेंगी. उनका मानना है कि एक मां लाचार हो सकती है, दस मां नहीं. अगर हर कोई दो-दो रुपये भी जमा करे तो बुरे वक्त में एक-दूसरे की मदद हो सकती है. उन्होंने 2001 में महिलाओं का समूह बनाया व हर सप्ताह दो-दो रुपये व दो मुठ्ठी चावल जमा करने के अभियान की शुरुआत की. चावल जमा करने के इस अभियान को उन्होंने नाम दिया रामकोठी. ऐसी कोठी जिससे जरूरत पड़ने पर जरूरमंद लोग खाने के लिए अनाज ले सकें.
फटी-पुरानी साड़ी व खाली पैर वे हर दिन समूह को आगे बढ़ाने के लिए गांव-गांव जातीं. इस काम को लेकर इन्हें काफी विरोध ङोलना पड़ा. इनके साथ मारपीट भी की गयी, इसलिए क्योंकि आखिर एक महिला घर से बाहर जाकर क्यों काम करेगी. इस दौरान कलेक्टर दिनेश श्रीवास्तव से भेंट हुईं. फुलबासन कहती हैं कि वे कभी किसी अधिकारी से इससे पहले नहीं मिली थीं. फटी-पुरानी साड़ी, बालों में कं घी नहीं और खाली पैर उनसे मेरी मुलाकात हुई थी. उन्होंने मुङो चप्पल खरीद कर दी, साड़ी दी और कुछ दिनों बाद साइकिल भी खरीदवायी. उन्होंने इंदिरा आवास दिलवाया. उन्होंने मेरे द्वारा बनाये गये समूह से जुड़ी महिलाओं का प्राथमिकता के आधार पर बैंक खाता खुलवाया. कर्ज दिलवाया व काम करने के लिए प्रोत्साहित किया.
शख्सियत का सम्मान
फुलबासन यादव की अबतक देश-प्रदेश में दर्जनों पुरस्कार व सम्मान मिले हैं. उन्हें सरकार की ओर से दिये जाने वाले चार सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान में से एक पद्मश्री 2012 में मिला. इसके अलावा भी कई सम्मान मिले. वे बताती हैं कि अबतक उन्हें विभिन्न पुरस्कार के तहत 37 लाख रुपये मिले, जिसका पाई-पाई उन्होंने समाज कल्याण में खर्च किया. उन्हें कई बार पुरस्कार व सम्मान के रूप में सोने-चांदी मिले. उस सम्मान को भी उन्होंने समाज के लिए समर्पित कर दिया. इस वर्ष मार्च में जब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भारतीय महिला बैंक की शाखा का शुभारंभ हुआ तो उसका उदघाटन करने के लिए उन्हें बुलाया गया. यह उनकी शख्सियत का महत्वपूर्ण सम्मान था. छत्तीसगढ़ राज्य अलंकरण के रूप में मिले एक लाख रुपये से उन्होंने 52 गरीब बच्चों को गोद लेकर उनके लिए शिक्षा की व्यवस्था की. फुलाबासन की संस्था का कामकाज इतना बढ़ा गया है कि उन्हें अपने लिए पीए भी रखना पड़ा है व अपने प्रयास से उन्होंने हिंदी के साथ कुछ हद तक अंगरेजी भी पढ़ना सीख लिया है.
क्या करती है संस्था
फुलबासन द्वारा 10 महिलाओं के साथ शुरू किया गया समूह आज दो लाख महिलाओं वाले विशाल समिति में बदल गया है. उनकी संस्था का नाम है मां बम्लेश्वरी जनहितकारी समिति. मां बम्लेश्वरी राजनांदगांव में स्थित प्रमुख शक्तिपीठ है. उनकी समिति से लगभग 12 हजार समूह जुड़े हैं, जिसकी दो लाख सदस्य हैं. इस समिति से जुड़े समूह का अब जिले से बाहर राज्य के दूसरे हिस्सों में भी विस्तार हो चुका है. इस समूह की अपनी जमा बचत करीब 25 करोड़ रुपये है. समूह आचार-पापड़, फूड प्रोसेसिंग, खनन ठेका सहित कई तरह का काम करता है. वे बताती हैं कि हमारा समूह सीमेंट का पोल, मुरगी पालन, मध्याह्न् भोजन, बड़ी-पापड़ बनाने सहित कई तरह का काम करता है. छत्तीसगढ़ सरकार की 116 एकड़ भूमि को लीज पर लेकर उस पर वे समूह की महिलाओं से कृषि कार्य भी करा रही हैं. फु लबासन आज दो लाख महिलाओं का नेतृत्व करती हैं.
परिवार के विरोध के बाद भी नहीं हारी हिम्मत
घर से बाहर जब वे कामकाज को लेकर सक्रिय हुईं, तो उन्हें विरोध भी ङोलना पड़ा. उन्हें र्दुव्यवहार भी ङोलना पड़ा. पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. गांव की साफ -सफाई जैसे कार्यो से लोगों का दिल जीतने का प्रयास किया. लेकिन जहां वे व्यावसायिक गतिविधियों में सक्रिय होती फिर विरोध ङोलना होता. लेकिन अपने हौसले से उन्होंने इस विरोध को परास्त किया. आर्थिक गतिविधियों में उनका पहला महत्वपूर्ण कदम रहा पंचायत से बाजार का ठेका लेना. इसके लिए बैंक से कर्ज लिया. इस ठेके से समूह को 35 हजार रुपये की कमाई हुई. तत्कालीन जिला कलेक्टर दिनेश श्रीवास्तव की हौसला-अफजाई से उन्होंने डेढ़ साल में ग्यारह हजार से ज्यादा गांवों का दौरा किया और 5000 से ज्यादा स्वयं सहायता समूह बनाया, जिसमें डेढ़ लाख से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हैं. उन्होंने जिला कलेक्टर की प्रेरणा से साइकिल सीखी. उन्होंने साइकिल दिलवायी, जिससे वे आरंभिक दिनों में 25 से 30 किमी प्रति दिन यात्र करतीं व गांवों का दौरा करतीं. फुलबासन ने अपनी सक्रियता से सभी महिलाओं का बैंक खाता खुलवाया और उनकी ट्रेनिंग की भी व्यवस्था करवायी. उन्होंने जिन महिलाओं को समूह से जोड़ा, उन्हें बड़ी संख्या में साइकिल सिखाई. उन्होंने महिलाओं को प्रेरित करने के लिए पहली बार महिला ओलिंपिक भी आयोजित किया. उनके इलाके में आज महिलाएं स्वयं इस तरह का आयोजन करती हैं.
बाल विवाह व नशामुक्ति रोकने की कोशिश
फुलबासन ने अपनी महिला साथियों के साथ सैकड़ों बाल विवाह को रोका. उन्होंने गांवों में नशामुक्ति अभियान चलाया. उनके इस तरह के अभियान से महिलाओं में काफी जागरूकता आयी. वे मानती हैं कि महिलाओं की जिंदगी बदलने के लिए शिक्षा व आत्मनिर्भरता का उपाय करना जरूरी है. वे यह भी मानती हैं कि अगर प्रभावी विकास कार्यक्रम हों, तो नक्सल समस्या से निबटना आसान हो जायेगा. वे शिक्षा, स्वास्थ्य, जल संरक्षण व पर्यावरण जागरूकता के लिए भी काम करती हैं.
घर की अर्थव्यवस्था
अपने घर की आर्थिक स्थिति को दुरुस्त करने के लिए उन्होंने 50 बकरियां पाल रखी हैं. साथ ही 14-15 गाय भी उनके पास हैं. उन्होंने अपनी आय से जमीन भी खरीदी है. उन्होंने अपनी दोनों बेटियां का विवाह कर दिया है. दो बेटे हैं, जो पढ़ाई कर रहे हैं और पशुपालन के लिए प्रशिक्षित हैं और इस काम में अपना पूरा योगदान देते हैं. वे समिति व घर के आर्थिक मामलों का घाल-मेल नहीं करती हैं.