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गोवा के फादो संगीत की पुकार : शास्त्रीय-संगीत

कहते हैं कि फादो संगीत शैली 19वीं सदी में लिस्बन शहर के अल्फामा क्वॉर्टर से नाविकों के गायन से निकली थी. फादो संगीत पर मंडराते खतरे को इस बात से समझा जा सकता है कि इसे साल 2011 में यूनेस्को की विश्व सांस्कृतिक धरोहर सूची में जोड़ा गया. अरब सागर के तट पर बसे गोवा […]

कहते हैं कि फादो संगीत शैली 19वीं सदी में लिस्बन शहर के अल्फामा क्वॉर्टर से नाविकों के गायन से निकली थी. फादो संगीत पर मंडराते खतरे को इस बात से समझा जा सकता है कि इसे साल 2011 में यूनेस्को की विश्व सांस्कृतिक धरोहर सूची में जोड़ा गया.

अरब सागर के तट पर बसे गोवा में साल 1961 तक चलनेवाले पुर्तगाली शासन के खात्मे के बाद वहां यूरोपीय संस्कृति की विशाल विरासत अब भी मौजूद है. संस्कृति सीमाओं से परे होती है, इसका भारतीय प्रमाण तकरीबन सारे विश्व में देखा जा सकता है, संगीत से लेकर नृत्य तक, भोजन से लेकर धर्म तक. भारत की अतिविशाल संस्कृति को समृद्ध बनाने में अनेकों संस्कृतियों का योगदान रहा है, और है. लेकिन किस कारणवश पुर्तगाल की कलाओं को हम समावेशित नहीं कर पाये, उन्हें जानना और उन्हें दूर किया जाना होगा, बशर्ते हममें अपने सांस्कृतिक खजाने को और बेहतर बनाने की इच्छा हो. वैसे इस तरह की बेहतरी भारत के प्रति विदेशी रुझान को बढ़ावा भी देगी.
पुर्तगाल से गोवा और गोवा से हम सब को वहां के अर्द्धशास्त्रीय संगीत की विरासत ‘फादो संगीत’ मिली तो है, लेकिन सच यह है कि इसके बारे में मुझे पता लगे एक महीना ही हुआ है. ‘फादो’ का इतिहास खंगालने की कोशिश में इसकी समृद्धता का कुछ एहसास होता है, जो संगीत प्रेमियों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए काफी है.
फादो का हिंदी अर्थ प्रारब्ध या भाग्य जैसा कुछ है और अफ्रीकी-अमेरिकी ब्लूज से मिलते फादो संगीत के गीत, इसके इस अर्थ से मिलते हुए, बेदिली और उदासी की कविता होते हैं, विरह के गीत. लिस्बन शहर का अल्फामा क्वॉर्टर, शहर का वह ऐतिहासिक हिस्सा, जो 1775 के भूकंप से बचा रह गया, कहते हैं कि फादो शैली 19वीं सदी में यहीं के नाविकों के गायन से निकली थी. फादो पर मंडराते खतरे को इस बात से समझा जा सकता है कि इसे साल 2011 में यूनेस्को की विश्व सांस्कृतिक धरोहर सूची में जोड़ा गया.
फादो के संरक्षण यानी विस्तार यानी कम-से-कम गोवा में इसकी पहचान बनाने के लिए पुर्तगाली संस्थाओं के बाद भारत से पहल गोवा के ताज होटल समूह ने की है. हाल में ‘स्पिक मैके’ के जुड़ने से आशा है इसे और गति मिलेगी. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र का अपनी मासिक लोकगीत की शाम ‘संजारी’ में 23 फरवरी को गोवा की प्रसिद्ध फेदिस्ता (फादो गायिका) सोनिया शिरसाठ को बुलाना, शायद सरकार को दिखे और संगीत की इस विधा को राज्य का, जो अब तक नहीं मिला, सहयोग दे पाये.
खैर सोनिया का फादो गायन सुनते हुए वही एहसास हो रहा था, जिसके लिए यह संगीत जाना जाता है. प्रेम-विरह और दुख-दर्द भाषा में कहां बंधते हैं, ये सारी भावनाएं सोनिया के बेहद सुरीले, गहरे, ठहरे और सधे हुए पुर्तगाली गायन के जरिये श्रोताओं- जिनमें मृणाल पांडे, कविता कृष्णमूर्ति और डॉ एल सुब्रमणियास्वामी भी शामिल थे- के दिल को छू रही थीं.
फादो संगीत में प्रेम की पीड़ा का चित्रण गायन के साथ दो वाद्ययंत्रों, 12 तारों वाले पुर्तगाली-गिटार (जिसके बिना फादो अकल्पनीय है, भारत में इसके सिर्फ तीन वादक हैं) और क्लासिकल बॉक्स गिटार पर भी निर्भर होता है, और यह क्रमशः पुर्तगाल के ऑर्लैंडो डे नोरहाना और गोवा के कार्लोस मेनेसेस के सधे हुए वादन से निश्चित हो रहा था.
अनेक देशों में फादो गायन कर चुकीं, गोवा के संगीत की राजदूत कही जानेवाली सोनिया शिरसाठ फादो की तुलना गजल से करती हैं, जो ठीक है, लेकिन मुझको यह मर्मस्पर्शी संगीत शैली 1950 के दौर के मोहम्मद रफी की याद दिलाती रही. मैं भारत के संगीत प्रेमियों को फादो सुनने की सलाह जरूर दूंगा, इस जॉनर की गायन शैली में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत यूरोपीय रंग में घुलकर कुछ अलग-ही निखरता है.
भरत तिवारी, कला समीक्षक

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