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मां को ही रखना होगा बेटी की सुरक्षा का ध्यान

आज रिश्ते हों या प्रोफेशन, दोनों जगहों का माहौल इतना खराब हो गया है कि हमें संतुलन बना कर ही चलने की जरूरत है. जीवन में इतना तनाव है कि व्यक्ति हर समय झुंझलाया रहता है. माता-पिता बच्चों को अच्छी-से-अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं. उन्हें बेहतर जीवन मिले, इसलिए वे ज्यादा और देर तक काम […]

आज रिश्ते हों या प्रोफेशन, दोनों जगहों का माहौल इतना खराब हो गया है कि हमें संतुलन बना कर ही चलने की जरूरत है. जीवन में इतना तनाव है कि व्यक्ति हर समय झुंझलाया रहता है. माता-पिता बच्चों को अच्छी-से-अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं. उन्हें बेहतर जीवन मिले, इसलिए वे ज्यादा और देर तक काम करते हैं, लेकिन बच्चों के लिए कमानेवाले माता-पिता बच्चों को ही समय देना भूल जाते हैं.

प्रभा ने कहा- आंटी जी, मैं आपकी बात से बिल्कुल सहमत हूं, बल्किसभी ये बातें मानते हैं. मगर आज न तो पहले जैसा माहौल बचा है और न ही कोई दूसरे की भावनाओं की कद्र करता है. आज रिश्तें हों या प्रोफेशन, दोनों जगहों का माहौल इतना खराब हो गया है कि हमें संतुलन बना कर ही चलने की जरूरत है. जीवन में इतना तनाव है कि व्यक्ति हर समय झुंझलाया रहता है.

चाहे ऑफिस हो या घर, जीवन की रफ्तार के साथ दौड़ते-दौड़ते वह एक मशीन बन कर रह गया है और ज्यादातर ऑफिस की समस्याओं में उलझा व्यक्ति घर आकर सारा गुस्सा पत्नी-बच्चों पर निकालता है जिसका बच्चों पर बहुत नेगेटिव असर पड़ता है. जरूरतें पूरी करने के लिए कमाने में इस कदर व्यस्त रहते हैं कि आपस में पति-पत्नी एक-दूसरे के लिए ही समय ही नहीं निकाल पाते. बच्चों को भी पता है कि मम्मा-पापा दोनों नौकरी करते हैं. शाम को या रात में घर लौटने पर इतने थके होते हैं कि बच्चों को समय नहीं दे पाते. कुछ घरों में पति-पत्नी के बीच इस कदर झगड़ा होता है कि वे खुद को कमरे में बंद कर लेते हैं. इस सबके पीछे ज्यादा कमाने की चाहत होती है.

माता-पिता बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं. उन्हें बेहतर जीवन मिले, इसलिए वे ज्यादा और देर तक काम करते हैं, लेकिन बच्चों के लिए कमानेवाले माता-पिता बच्चों को ही समय देना भूल जाते हैं. आंटी जी, पहले नौकरी में भी इतना कॉम्पीटिशन नहीं था जितना आज बच्चे के दाखिले के समय स्कूल में ङोलना पड़ता है. कक्षा में नंबर वन बने रहने का दबाव उस पर इतना ज्यादा होता है कि वह खुद को पढ़ाई में झोंक देता है. फिर भी पैरेंट्स संतुष्ट नहीं होते और खुद को भी काम की चक्की में पीसते रहते हैं. आजकल तो हर कंपनी ज्यादा से ज्यादा काम लेती है और अगर काम नहीं तो नौकरी भी नहीं. बेरोजगारी इतनी है कि काम तलाशनेवालों की लाइन लगी रहती है, लेकिन सबसे बड़ी कमी यही है कि बच्चों के लिए कमानेवाला व्यक्ति बीवी और बच्चों को ही भूल जाता है. घर बनाने के लिए जतन में लगे लोग घर को घर नहीं बना पाते. पहले ऐसे हालात नहीं थे. मुङो याद है मेरे पापा हम भाई-बहनों को पूरा समय देते थे, लेकिन आधार प्रिया और पारस को समय नहीं दे पाते और मेरे इनलॉज भी साथ नहीं रहते. इसलिए बच्चों को मुङो ही समय देना पड़ता है. फिर भी देखिए मेरे देवर ने मेरी बेटी के साथ क्या किया, अब तो आप सबको पता चल ही गया. इसलिए मैं तो यही कहूंगी कि सास-ससुर और अपने पापा-मम्मी ही भरोसे के लायक हैं.

हम माओं को अपने ससुराल-मायके के किसी भी पुरु ष सदस्य पर विश्वास नहीं करना चाहिए. हम सब बार-बार यही कहते हैं कि सब एक जैसे नहीं होते. हम में से शायद कोई भी अपने भाई या देवर पर शक न कर पाये मगर एक बार ये सोचिए कि जो घटनाएं हम अखबारों में पढ़ते हैं, उन पीड़ित बच्चियों की मांओं ने क्या अपने रिश्तेदारों के बारे में कभी ऐसा सोचा होगा? कभी नहीं. न ही शक किया होगा. अगर शक किया होता तो ऐसी घटनाएं न होतीं. अभी जो प्रिया ने बताया, वह भी नहीं होता. उसकी बात सुन कर मेरे तो होश उड़ गये. मैंने भी कहां सोचा था कि मेरा छोटा देवर ऐसी हरकत करेगा? भगवान का शुक्र है कि समय रहते पता चल गया वरना कल कुछ गलत हो जाता तो मेरी बेटी पर क्या बीतती? इसलिए मैं तो यही कहूंगी कि एक बेटी की मां को किसी भी पुरुष पर यकीन नहीं करना चाहिए. सावधानी खुद रखनी होगी. बेटी को हमने जन्म दिया है तो उसकी सुरक्षा भी हमें ही करनी होगी. इसलिए अपने सास-ससुर को अपने माता-पिता समझ कर साथ रखना चाहिए.

केवल मां का ही ऐसा रिश्ता है जिस पर विश्वास किया जा सकता है. बाबा-दादी की छांव में बच्चे सुरिक्षत रहेंगे. हमें उन्हें सम्मान के साथ अपने साथ रखना चाहिए, बल्कि यह कहना चाहिए हम उनके साथ रहेंगे. अगर थोड़ा-बहुत कुछ कहते भी हैं तो उनकी बातों को नजरंदाज कर देना चाहिए. कुछ भी हो, हमें हमारे कर्तव्य याद रखने चाहिए और बच्चों को भी बचपन से यही सीख देनी चाहिए कि हमें बिना किसी अपेक्षा, अधिकार और लालच के अपने कर्तव्य निभाने चाहिए. जब बच्चे हमें हमारे माता-पिता का सम्मान करते देखेंगे तो उम्मीद तो यही रहेगी कि वे कभी हमारा अनादर नहीं करेंगे और आधार ने तो मां-पापा से कहा है कि हम जब भी आपके पैर छुएं तो आप ये आशिर्वाद दें कि जैसे तुम हमारी सेवा करो, वैसे ही तुम्हारे बच्चे भी तुम्हारी करें. इससे हम जहां भी गलत होंगे तुरंत हमारा मन डरेगा कि अगर हमने गलत किया तो कहीं हमारे बच्चे भी हमारे साथ गलत न करें. इस डर से हम गलत करने से बच जायेंगे.

वीना श्रीवास्तव

लेखिका व कवयित्री

इ-मेल: veena.rajshiv@gmail.com

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