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पाक में शक्तिपीठ

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित हिंगलाज माता के मंदिर में हर साल अप्रैल में होनेवाली तीन दिन की खास पूजा में पूरे पाकिस्तान और भारत से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. धर्म ग्रंथों के अनुसार हिंगलाज माता शक्तिपीठ में माता सती का ब्रrारंध्र यानी सिर गिरा था और यह 51 शक्तिपीठों में से एक […]

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित हिंगलाज माता के मंदिर में हर साल अप्रैल में होनेवाली तीन दिन की खास पूजा में पूरे पाकिस्तान और भारत से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. धर्म ग्रंथों के अनुसार हिंगलाज माता शक्तिपीठ में माता सती का ब्रrारंध्र यानी सिर गिरा था और यह 51 शक्तिपीठों में से एक है. हाल ही में इस मंदिर की यात्र से लौटीं शाजिया हसन की खास रिपोर्ट..

‘अल्लाह निगहबान’ और ‘माशाअल्लाह’ जैसे शब्द हवा से टकरा कर गूंज रहे हैं. कई घंटों का सफर तय कर चिलचिलाती धूप में घुमावदार घाटियों और पहाड़ों से होते हुए बस आगे बढ़ती जा रही है. गंतव्य है- पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित शक्तिपीठ माता हिंगलाज मंदिर, जिसे नानी मंदिर के रूप में भी जाना जाता है.

रंग-बिरंगी साड़ियां और कपड़े चट्टानों पर सूख रहे हैं. कई श्रद्धालुओं ने मंदिर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर पड़नेवाली मटमैली सी नदी में स्नान किया है. ‘यह उनके लिए साफ है’, अपनी क्षमता से अधिक हिंदू तीर्थ यात्रियों को लेकर आनेवाली बसों में से एक बस के चालक अली शेर मुस्कुराते हुए कहते हैं कि हमने अपनी बस यात्र तांदो मोहम्मद खान के साथ शुरू की. हम रास्ते में पड़नेवाले कराची और कींझर के मंदिरों और यहां कुछ किलोमीटर पहले पड़नेवाले मिट्टी के ज्वालामुखी में भी रुके. मोहम्मद खान ने कहा, ‘यह तीर्थ एक तरह से हिंदुओं के लिए हज की तरह है और रास्ते में पड़नेवाले मंदिरों में रुकना ‘उमरा’ जैसा है.’ बसों में लिखी इस्लामिक इबारतों के बारे में बस कंडक्टर अब्दुल रहीम बताते हैं, ‘ये हम लिखते हैं और वे लाल और नारंगी रंग के तिकोनेवाले झंडे लगाते हैं. न हमें उनके झंडों पर आपत्ति है और न उन्हें हमारी इबारतों पर.’

‘सभी तीर्थयात्रियों से माता मंदिर में पवित्रता का पूरा ध्यान रखने और मंदिर परिसर में किसी तरह का विघ्न उत्पन्न न करने का अनुरोध है. यहां मांस और मछली का सेवन वजिर्त है. माता मंदिर सिर्फ माता की प्रार्थना के वक्त ही खुलता है. यहां पिकनिक मनाने के उद्देश्य से न आयें. कृपया इस स्थान को स्वच्छ रखने का विशेष ध्यान रखें. मंदिर में प्रवेश के वक्त अपने सिर को ढंक कर रखें.’ ये निर्देश एक पीले रंग के बोर्ड पर दर्ज हैं, जो मंदिर परिसर के नीले रंग के गेट के पास लगा हुआ है.

यहां स्थित चार मंदिरों में से नानी मंदिर सबसे बड़ा मंदिर है. माता हिंगलाज के मंदिर में पाकिस्तान सहित दूसरे देशों से भी बड़े पैमाने पर तीर्थयात्री आते हैं. यहां लगनेवाले हिंगलाज मेले के पहले दिन यह अफवाह फैल गयी थी कि बॉलीवुड सुपर स्टार अमिताभ बच्चन भी इस वर्ष माता हिंगलाज के मंदिर की यात्र कर सकते हैं. ‘मैंने एक उर्दू अखबार में पढ़ा है कि वह यहां आनेवाले हैं’, एक युवा लड़के ने मंदिर के मुख्य द्वार की ओर देखते हुए कहा.

बेबी नाम की एक तीर्थयात्री बताती हैं कि ‘हम जब भारत में स्थित प्रसिद्ध मंदिरों की यात्र करते हैं, तो हमसे जरूर पूछा जाता है कि क्या आप कभी पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित हिंगलाज माता के मंदिर में गये हैं? भारतीय हिंदुओं का विश्वास है कि यह एक पवित्र तीर्थ है. लेकिन वीजा मिलने में होनेवाली कठिनाइयों के चलते उनके लिए यहां की यात्र असंभव हो जाती है. मैं जब बेबी का असली नाम पूछता हूं, तो वह मुस्कुराते हुए कहती हैं, ‘सच में मेरे माता-पिता ने मेरा नाम बेबी ही रखा है. मैं यहां माता के चरणों में झूठ नहीं बोलूंगी.’

कुछ यात्री यहां कराची से पैदल ही आये थे. लैयारी से आये धानी मोहन ने बताया- ‘हमने अपनी यात्र सात दिन पहले शुरू की थी. हमारा 22 लोगों का कारवां है, जिसमें मेरे बेटे, बेटियों, दामादों और पोते-पोतियों सहित मैं खुद भी शामिल हूं.’

एक अन्य तीर्थयात्री राजकी, जो कराची की बहाइंस कॉलोनी से आयी थीं, ने बताया, ‘हमारे समूह में 40 यात्री शामिल थे, जिनमें से युवा लोगों ने हाथ से चलाये जानेवाली छकड़ागाड़ी बनायी थी और उसमें रास्ते के लिए राशन-पानी रखा था.’ राजकी के आग के शब्द थे ‘माता के स्थान तक आने का रास्ता बेशक कठिनाई से भरा रहा, लेकिन यहां पहुंच कर हमें अपार प्रफुल्लता, शांति और ताजगी महसूस हुई.’

‘मैं यहा कई वर्षो से आ रहा हूं और हर बार यहां आकर मैंने खुद में बहुत सकारात्मक पर्वितन महसूस किया है.’ यह कहना था एक अन्य यात्री मिथुन कुमार का, जो तीर्थ यात्रियों को पीने का ठंडा पानी उपलब्ध करा रहे थे. मिथुन ने बताया, ‘पहले यहां तक आने के लिए माकूल रास्ता नहीं था. कोई सड़क नहीं थी. अब तीर्थयात्रियों के लिए विश्रम गृह भी हैं और जेनरेटर भी.’ वह हिंगलाज सेवा मंडली में आर्थिक सहयोग भी देते हैं. उन्होंने यह जानकारी भी दी कि ‘मंदिर समिति को सरकार से यहां के रख-रखाव के लिए तय अनुदान भी मिलता है.’

मंदिर की ओर जानेवाली सीमेंटेड पगडंडी में महिलाएं और बच्चे, जिनमें से अधिकतर मुसलिम हैं, लाल धागे, मोती की मालाएं, चुनरी, हाथ में बांधी जानेवाली पट्टियां, जिनमें सुनहरे रंग से हिंदू प्रतीक चिह्न् बने थे, बेच रहे हैं. ‘सुरक्षा कर्मी उनके साथ बहुत सख्त रवैया अपनाते हैं. उन्हें अंदर जाकर ये चीजें बेचने नहीं देते.’ इन अल्फाजों में जरीना अपनी शिकायत जाहिर करती हैं. वह कहती हैं, ‘हम लाल शाहबाज कलंदर के उर्स में भी चीजें बेचते हैं, लेकिन वहां, यहां की तरह सुरक्षा से जुड़ी मुश्किलें नहीं होतीं.’

‘वहां विक्रेताओं के लिए एक जगह है.’ हवलदार अब्दुल हमीद यह बताते हुए मंदिर के प्रवेशद्वार की ओर आनेवाली मुख्य गली के दोनों तरफ लगी अस्थायी दुकानों की ओर इशारा करते हैं. वह सफाई देते हैं, ‘उन्हें अंदर आने की अनुमति नहीं है, लेकिन क्या कर सकते हैं, वे कपड़ों के बंडल में अपना सामान छुपा कर अंदर चले आते हैं.’ वह कहते हैं, ‘आज त्योहार का पहला दिन है, हम दूसरे और तीसरे दिन की भीड़ का अनुमान लगा कर उसे संभालने कि लिए खुद में हौसला पैदा कर रहे हैं. तब यहां पैर रखने की भी जगह नहीं होगी. अगर भीड़ बढ़ती जायेगी, तो भगवान ही जाने कि क्या होगा.’ वह अपनी बात में आगे जोड़ते हैं, ‘हर धर्म सम्मान का हकदार है, और यहां किसी किस्म के उपद्रव की अनुमति नहीं होगी.’

(साभार: द डॉन)

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