!!पल्लव , संपादक, बनास जन!!
दूधनाथ सिंह का मूल स्वर विद्रोह रहा है और इसके लिए विद्रूप से इन्हें कोई गुरेज नहीं रहा. निधन के दो-तीन माह पहले आयी उनकी संस्मरण पुस्तक ‘सबको अमर देखना चाहता हूं’ गद्य के अलहदा रचाव की बड़ी बानगी है. इस संस्मरण पुस्तक में एक राजनेता और तीन साहित्यकारों के संस्मरण हैं. जिन पाठकों ने दूधनाथ जी की किताब ‘लौट आ ओ धार’ पढ़ी है, वे जानते हैं कि संस्मरण के लिए भी उनकी भाषा कैसा जादू रच सकती है, जो कभी-कभी विराग जैसा लगे और निष्ठुर होने का भ्रम पैदा कर सके. इन संस्मरणों में अनायास उभर रही दूधनाथ जी की आत्मछवि कम महत्त्वपूर्ण नहीं है, जो साधारण किसान की सहजात खुद्दारी और बेचैनी का परिणाम है.
प्रधानमंत्री रहे चंद्रशेखर की उदारता और सौजन्यता के समक्ष यह तेजस्वी छवि पाठक में भी विश्वास पैदा करनेवाली है. प्रेमचंद के पुत्र और कथाकार अमृत राय का ‘हताहत लेकिन हंसते हुए’ जो चित्र खींचा है, उससे कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण वह बहस है, जिसे अमृत राय ने प्रगतिशील आंदोलन के ज्वार के दिनों में उठाया था. यहां अमृत राय को याद करते हुए दूधनाथ सिंह उस बहस की स्मृति को पुनर्नवा करते हैं, जिसकी उत्तेजना देर तक बनी रहती है. उन्होंने लिखा है- ‘किसी घर में होनेवाले उत्सव से आप उस घर की अंतरात्मा को नहीं तौल सकते, उसके भीतर पैठे मौन से उसकी पहचान होती है. ‘बीज’ (अमृत राय का उपन्यास) की असफलता और ‘मैला आंचल’ (फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास) की सफलता का रहस्य यही है.’ कहानीकार और संपादक सतीश जमाली तथा आलोचक और इलाहाबाद में प्रोफेसर रहे सत्यप्रकाश पर संस्मरण इलाहाबादी जीवन के भी दस्तावेज हैं. गप, चुहल, छेड़छाड़ और अकुंठ विनोद के अनेक दृश्य इनमें आये हैं, तो संस्मृतों का जीवन संघर्ष भी. आलोचक विजय मोहन सिंह पर लिखा संस्मरण तो दूधनाथ जी के सफल किस्सागो होने का रहस्य बताता है.
ऐसा माना जाता है कि मनुष्य के भीतर बैठी दुष्टता की संसार में सबसे अधिक पहचान-अध्ययन शेक्सपीयर के नाटकों में है. दूधनाथ सिंह मनुष्य के इसी कलुष का संधान करते हैं, गो कि उनका लक्ष्य अंतत: उस दुष्टता का खात्मा है. इस आखिरी संग्रह में सम्मिलित ‘नरसिंह के नाम प्रेमपत्र’ ऐसी ही एक कहानी है, जिसमें वाचक न जाने कितने खयाल बुनता है और यह माने बैठा है कि उसका मित्र ही उसका रकीब है. मान लेने की इस प्रक्रिया का वर्णन ही इस कहानी की विषयवस्तु है. दूधनाथ जी को कविताओं और आलोचना पुस्तकों के साथ हम नाटक ‘यमगाथा’ के लिए भी याद करेंगे. उन्होंने महादेवी वर्मा और शमशेर बहादुर सिंह के अलावा भुवनेश्वर पर भी अनूठी किताबें संपादित की थीं. मेरी नजर में, साहित्य के इतिहास में दूधनाथ सिंह जैसे लेखक कभी-कभार होते हैं.