विजय शर्मा, लेखिका
हम लाये हैं तूफान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के. पिछली पीढ़ी पूर्व के लोग वास्तव में तूफान से कश्ती निकाल कर लाये थे. आसान नहीं था ब्रिटिश साम्राज्य से भारत को आजाद कराना. करीब सौ साल के संघर्ष, आत्म-बलिदान और न मालूम कितने त्याग और तपस्या के बल पर हम आजाद हुए. 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हुआ और हम एक गणतंत्र के रूप में दुनिया के नक्शे पर उभरे. हम 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस, उल्लास पर्व के रूप में मनाते हैं. हम अपने शहीदों को स्मरण करते हैं, स्वतंत्रता सैनानियों को सम्मानित करते हैं. वे लोग समाप्तप्राय हैं, जिन्होंने जीवन की बाजी लगा कर हमें एक स्वतंत्र देश सौंपा. नयी पीढ़ी को स्वतंत्र देश उपहार के रूप में प्राप्त हुआ. जो हमें अनायास प्राप्त होता है, उसकी वास्तविक कीमत हम नहीं आंक पाते हैं. यहीं फिल्म अपनी भूमिका निभाती हैं.
फिल्म एक चाक्षुष माध्यम है. यह समाज का प्रतिनिधित्व करती है. ऐतिहासिक फिल्में हमें अतीत से परिचित कराती हैं. इसके माध्यम से हम अपने इतिहास को जान-समझ पाते हैं. हमारे देश की जनता का काफी प्रतिशत अभी निरक्षर है. ऐसे लोग पढ़ कर अपना ज्ञान नहीं बढ़ा सकते हैं, लेकिन फिल्म के द्वारा अनपढ़ व्यक्ति भी काफी कुछ जान-सीख सकता है. फिल्में मात्र मनोरंजन का साधन नहीं होती हैं. एक अच्छी सार्थक फिल्म देखने के बाद दर्शक वहीं नहीं रह जाता है, उसके दृष्टिकोण, सोच में परिवर्तन होता है. फिल्म दर्शक को तदनुभूति द्वारा दूसरों के सुख-दुख से जोड़ती हैं. देशाभिमान की फिल्में दर्शक को रोमांचित करती हैं, उसके भीतर देश प्रेम का जज्बा पैदा करती हैं.
भारत में प्रारंभ से देशभक्ति से जुड़ी फिल्में बनती रही हैं और दर्शकों द्वारा सराही जाती रही हैं. मोहम्मद रफी के गाये जिस गीत का ऊपर जिक्र हुआ है, वह भी एक प्रेरणादायक फिल्म जाग्रिति का गीत है. इस गीत का संगीत हेमंत कुमार का है. लेकिन जो ध्यान देनेवाली बात यह है कि इसे कवि प्रदीप ने लिखा है. वे लिखते हैं कि मुल्क हर बला को टाल कर अपनी मंजिल पर पहुंचा है. इसे बापू ने अपने खून से सींचा है और शहीदों ने इस दीपक को जलाये रखा है, अब तुम्हारी पारी है, तुम ही इसका भविष्य हो, इसे संभाल कर रखने की जिम्मेदारी अब तुम्हारी है. कवि 1954 (फिल्म जाग्रिति का रिलीज वर्ष) में हमें आगाह करते हैं कि हम बारूद के ढेर पर बैठे हुए हैं. सावधान रहना है, आलस्य नहीं करना है और देश को आगे ले जाना है.
कवि प्रदीप ने बहुत सारे गीत लिखे. जाग्रिति फिल्म का ही एक और उनका लिखा और लता मंगेशकर का गाया गीत है, ‘दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल, साबरमति के संत तूने कर दिया कमाल’. इसका संगीत भी हेमंत कुमार ने दिया है. प्रदीप ने कुछ शब्दों में गांधी, आजादी का संघर्ष और भारत की तस्वीर उकेर दी है. हर 15 अगस्त और 26 जनवरी को राष्ट्रीय त्योहार के अवसर पर इन्हें अवश्य बजाया जाता है. मैंने यह फिल्म बहुत बचपन में देखी थी, मगर आज भी मानस पटल पर इसकी स्मृति सुरक्षित है.
जाग्रिति एक शुरुआती फिल्म थी, जो देश के प्रति कर्तव्य का संदेश देती है. इसके बाद देशप्रेम से जुड़ी कई फिल्में बनी हैं, जिन्होंने कभी प्रत्यक्ष और कभी परोक्ष रूप से दर्शकों को गणतंत्र के प्रति जागरूक होने का पैगाम दिया है. शहीद, शहीद भगत सिंह, स्वदेश, पूरब-पश्चिम, रंग दे बसंती, चक दे इंडिया, एयरलिफ्ट, लगान, नमस्ते लंदन और न मालूम कितनी फिल्में हैं, जिन्हें देख कर अपने देश पर मर-मिटने को जी चाहता है.
इन फिल्मों को देख कर गर्व होता है. हृदय में देशप्रेम की हिलोर उठने लगती हैं. जब भी देशप्रेम पर बनी फिल्मों की बात होती है, सबसे पहले मनोज कुमार की शहीद याद आती है. मनोज कुमार ने देशप्रेम की ऐसी लहर चलायी कि लोग उन्हें ‘भारत कुमार’ कहने लगे. शहीद फिल्म भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु जैसे देश प्रेम के दीवानों की गाथा कहती है.
स्वतंत्रता आंदोलन के वक्त इन लोगों ने जो शहादत दी, उसकी मिसाल दुनिया में खोजे से नहीं मिलेगी. स्वयं मनोज कुमार नेशहीद भगत सिंह की भूमिका की. यह फिल्म दर्शकों की दृष्टि से खूब सफल रही, इसका अंतिम दृश्य अत्यंत मार्मिक बन पड़ा है. कई फिल्में देशप्रेम का पर्याय बन गयी हैं, गणतंत्र दिवस पर कुछ फिल्मों के माध्यम से देशवासियों को मेरा सलाम.