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झारखंड का जनसंख्या घोटाला, 10 साल में सिर्फ 5 बच्चों का जन्म

झाररखंड के रांची से सुबह चलें तो मेरौनी छेर्हट गांव पहुंचते-पहुंचते अंधेरा हो जाता है. यहां एक स्कूल है, जिसके पास बने चबूतरे पर गांव के सैकड़ों लोग जमा हैं. कुछ कुर्सियां लगी हैं. ठंड के बावजूद लोग अपने गांव में हुए जनसंख्या घोटाले के विरोध के लिए जमा हैं. ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे भी लगने […]

झाररखंड के रांची से सुबह चलें तो मेरौनी छेर्हट गांव पहुंचते-पहुंचते अंधेरा हो जाता है.

यहां एक स्कूल है, जिसके पास बने चबूतरे पर गांव के सैकड़ों लोग जमा हैं. कुछ कुर्सियां लगी हैं. ठंड के बावजूद लोग अपने गांव में हुए जनसंख्या घोटाले के विरोध के लिए जमा हैं. ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे भी लगने लगे हैं.

गढ़वा जिले के केतार प्रखंड का मेरौनी छेर्हट गांव रांची से करीब 300 किलोमीटर दूर है.

क़रीब 300 घरों वाले इस गांव के किनारे सोन नदी बहती है. यह झारखंड राज्य के अंतिम छोर पर बसा है, जहां से कुछ ही दूरी पर बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमाएं शुरू होती हैं.

गांव वालों का आरोप है कि राजनीतिक फायदे के लिए उनके गांव में हुई जनगणना के आंकड़ों में हेरफेर की गई है. गांववालों ने प्रधानमंत्री कार्यालय से इसकी शिकायत की है.

10 साल में 5 बच्चों का जन्म

साल 1991 की जनगणना के मुताबिक, मेरौनी छेर्हट गांव की जनसंख्या 1435 थी. 2001 की जनगणना में यहां की जनसंख्या 1440 दिखाई गई. जबकि साल-2011 की जनगणना में यहां की आबादी 2149 बताई गई.

मतलब ये कि पहले दस साल (1991-2001) के दौरान इस गांव में सिर्फ 5 बच्चों ने जन्म लिया. वहीं बाद वाले 10 साल (2001-2011) के दौरान यहां 709 बच्चों का जन्म हो गया. यह जनसंख्या वृद्दि की पुरानी दर से 142 गुणा अधिक है.

मेरौनी छेर्हट गांव के आनंद तिवारी पेशे से इंजीनियर हैं लेकिन इस जनसंख्या घोटाले को उजागर करने और इसकी शिकायत प्रधानमंत्री तक से करने में इनकी अग्रणी भूमिका रही है.

वो सवाल करते हैं कि बीते 27 सालों में जब गांव में कोई महामारी नहीं हुई, कोई बड़ा पलायन नहीं हुआ, तो फिर दो दशकों (1991-2011) की जनसंख्या दर में इतना बड़ा अंतर कैसे संभव है.

आनंद तिवारी ने बीबीसी से कहा, "मेरा गांव लोहरगड़ा पंचायत का हिस्सा है. क्योंकि, यह ब्राह्मणों का गांव है, इसलिए जनप्रतिनिधियों ने जानबूझकर मेरे गांव की जनसंख्या के आंकड़ों में हेर-फेर करवाई. वो चाहते थे कि मेरा गांव पंचायत न बन सके और हम लोग पंचायत मुख्यालय होने के कारण मिलने वाली सुविधाओं से महरूम रहें."

वो कहते हैं, "साल 1991 से 2001 के बीच मेरे गांव में 279 लड़के-लड़कियों ने जन्म लिया. इनके पास इन सभी की जन्मतिथि के सभी ज़रूरी दस्तावेज मौजूद हैं. अगर जनगणना के आंकड़ों में मेरे गांव की वास्तविक आबादी दिखाई गई होती तो मेरौनी छेर्हट ही पंचायत बन जाता. अब हमलोग लोहरगड़ा पंचायत के अधीन हैं."

‘…तो क्या हम भूत हैं?’

मेरौनी के अरुण पाठक की बेटी प्रियंका कुमारी का जन्म 10 जनवरी 1997 को हुआ था. अब वो 21 साल की हैं. उनका आधार कार्ड और स्कूल का सर्टिफिकेट उनकी जन्मतिथि की तस्दीक करता है.

प्रियंका कहती हैं, ‘आधार कार्ड में मेरी जन्मतिथि का साल 1997 है. लेकिन, जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक मेरा जन्म ही नहीं हुआ. अब यह बताइए कि मेरा कोई वजूद है कि नहीं. क्या मैं भूत हूं, जो जन्म लिए बगैर घूम रही हूं. सरकारी आंकड़ों में इतनी गड़बड़ी कैसे हो जाती है.’

‘हमारा हुआ है जन्म’

इसी तरह अनिरुद्ध पाठक के बेटे वसंत का जन्म 1992 और उनकी बेटी पूजा का जन्म 1997 में हुआ. गांव के अभिषेक पाठक, विजेंद्र राम, श्रीकांत पाठक, आशुतोष पाठक, राजेश पाठक, कन्हैया दुबे, प्रिंस कुमार तिवारी, चंदन राम, चांदनी कुमारी आदि के जन्म भी 1991 से 2001 के बीच हुए.

इन सबके पास आधार कार्ड हैं, जो इनकी जन्मतिथि प्रमाणित करते हैं लेकिन जनगणना के आंकड़ों में इनका ज़िक्र नहीं है.

अब ये लोग अपने वजूद को लेकर सवाल कर रहे हैं. इन्होंने प्रधानमंत्री से इसकी जांच कराने की मांग की है. प्रधानमंत्री कार्यालय में इनकी शिकायत पर अभी तक झारखंड सरकार ने अपना पक्ष नहीं रखा है.

नामांकन के आंकड़े

मेरौनी छेर्हट स्थित मध्य विद्यालय के शिक्षक अमरेश तिवारी ने बीबीसी को बताया कि 1995 से 2001 के बीच मेरे स्कूल में 216 नए बच्चों का नामांकन हुआ.

वो कहते हैं "ऐसे में यह कहना कि साल 1991 से 2001 के बीच सिर्फ पांच बच्चों ने जन्म लिया, सरासर गलत और राजनीति से प्रेरित है."

2015 में पहली बार शिकायत

यहां मेरी मुलाकात कस्तूरी तिवारी से हुई. वो स्वास्थ्य विभाग से रिटायर हैं और उस विभाग के कर्मचारी होने के नाते 2001 की कुष्ठ गणना में शामिल थे.

उन्होंने बताया कि साल 2005 में पंचायत के गठन के वक्त उन्होंने प्रखंड कार्यालय में इस बारे में पूछताछ की और कहा कि कुष्ठ गणना में उन्होंने मेरौनी छेर्हट की आबादी करीब 1700 पाई थी, तो जनगणना में यह संख्या 1440 ही कैसे रह गई. तब उन्हें किसी भी अधिकारी ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया.

कस्तूरी तिवारी ने बीबीसी से कहा, "जुलाई 2015 में गांव के लोगों ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहद मैरौनी की जनगणना के बारे में जानकारी मांगी, तो सारी बातों का खुलासा हुआ. तब उपायुक्त से इसकी शिकायत की गई."

वो कहते हैं, "इसके बाद मुख्यमंत्री जनसंवाद में भी इसकी शिकायत की गई. कोई कार्रवाई नहीं होने पर हमलोगों ने पहले गृहमंत्री और फिर प्रधानमंत्री से इसकी शिकायत की. हमारी मांग है कि साल 2001 की जनगणना के आंकड़ों को अमान्य कर 2011 की जनगणना को मेरे गांव की अबादी का आधार बनाया जाए. ताकि मेरौनी छेर्हट पंचायत घोषित हो सके."

सरकार के विकल्प

गढ़वा के वरिष्ठ पत्रकार विनोद पाठक ने बीबीसी से कहा कि इस गांव की जनगणना के आंकड़ों में गड़बड़ी साफ दिखाई देती है.

वो कहते हैं, "लेकिन कोई अधिकारी इस संबंधित स्पष्ट जवाब नहीं दे पाता, क्योंकि यह बात 27 साल पुरानी हो चुकी है. तब जनगणना में शामिल अधिकतर कर्मचारी अब रिटायर भी हो चुके हैं."

वो कहते हैं, "ऐसे में सरकार के पास आसान विकल्प यह है कि वह साल-2011 की जनगणना को मेरौनी छेर्हट की आबादी का आधार मानकर 2001 की जनगणना को अमान्य घोषित कर दें."

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