हजारीबाग जिले के कटकमदाग पंचायत का चयन झारखंड की 75 बाल हितैषी अगुवा पंचायत में हुआ है. उन्हें हाल ही में झारखंड पंचायत महिला रिसोर्स सेंटर की ओर से इस संबंध में पत्र मिला है. उन्हें इससे संबंधित प्रशिक्षण के लिए रांची भी बुलाया गया है. लेकिन इस पंचायत की मुखिया प्रियंका कुमारी इस योजना के तहत अपनी पंचायत का चयन किये जाने के पहले से ही बच्चों के लिए बेहतर कार्य कर रही हैं. हां, अब इस व्यवस्था से जुड़ने से उन्हें तकनीकी सहयोग, जानकारी व सहायता मिलेगी, जो उनकी पंचायत के लिए अधिक लाभकारी होगी.
प्रियंका ने अपनी पंचायत के दो गांवों हाथामड़ी व बांका के ईंट भट्ठा में काम करने वाले 15 बच्चों का नामाकरण स्कूल में करवाया. इस काम के लिए उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी. बच्चों के मां-पिता ने मुखिया प्रियंका कुमारी की इस कोशिश का विरोध किया. उनका सवाल था कि जब आप इन्हें स्कूल भेज दीजिएगा तो हमारे घर-परिवार का खर्च भी क्या आप ही चलाइएगा? यहां तक कि लोगों ने उनके खिलाफ बीडीओ से लिखित शिकायत कर दी. उनकी पंचायत अनुसूचित जाति बहुल है, जहां पर ज्यादातर लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. ऐसे में परिवार के लिए दो-चार रुपये कमाने की मजबूरी में बहुत सारे बच्चे स्कूल नहीं जाते. लेकिन प्रियंका कुमारी ने तमाम विरोध के बावजूद ऐसे 15 बच्चों का स्कूल में नाम दर्ज करवाया. मुखियाजी ने भी चेतावनी दी कि बाल मजदूरी करवाना अपराध है और ऐसा वे करेंगे तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी.
कड़ी दोपहरी में चापानल मरम्मत
प्रियंका कुमारी का अपनी जिम्मेवारियों के प्रति समझ व गंभीरता का आकलन इस बात से सहज ही किया जा सकता है कि गरमी की कड़ी दोपहरी में भी वे जिला मुख्यालय से पेयजल एवं स्वच्छता विभाग की गाड़ी मंगवा कर व खुद खड़ी होकर चापानल की मरम्मत करवाती हैं. हल्की-फुल्की गड़बड़ी वाले चापानल को वे अपने कोष से ही ठीक करवाती हैं. वे नहीं चाहतीं कि उनकी पंचायत के लोगों को पानी की दिक्कत हो.
आंगनबाड़ी केंद्र को लेकर हैं व्यथित
मुखियाजी अपनी पंचायत के आंगनबाड़ी केंद्र को लेकर व्यथित हैं. वे कहती हैं कि उनकी पंचायत के आंगनबाड़ी केंद्रों की व्यवस्था अच्छी नहीं है. टीएचआर, खिचड़ी बंद होने की नौबत आ गयी है. इस संबंध में सेविका व सहायिका कहती हैं कि जिले से फंड नहीं आ रहा है. प्रियंका कुमारी ने इस संबंध में बीडीओ से भी बात की है. लेकिन बताया जा रहा है कि चुनाव जारी होने व आचार संहिता लगे होने के कारण ही फंड आवंटन में दिक्कत हो रही है. ऐसे में मुखिया जी ने सेविका-सहायिका का एक सुझाव दिया है कि हर दिन एक किलो चना भिगो कर बच्चों को बांटे. गरमी के दिन में यह उनके लिए राहत देना वाला आहार होगा और पैसे की कमी से निबटते हुए बच्चों की उपस्थिति भी आंगनबाड़ी केंद्रों में बनायी रखी जा सकेगी.
महिला नेटवर्क से चलाती हैं पंचायत
प्रियंका कुमारी अपनी पंचायत को अपने महिला नेटवर्क के माध्यम से चलाती हैं. उनके नेटवर्क से दर्जनों महिलाएं जुड़ी हैं. 10 वार्ड वाली इस पंचायत में छह महिला सदस्य हैं. इसके अलावा तीन जल सहिया, छह स्वास्थ्य सहिया एवं मनरेगा की तीन महिला मेट भी उनकी टीम का हिस्सा हैं. उनकी पंचायत में 13 महिला समूह चलते हैं. प्रत्येक समूह में 10 से लेकर 20 तक सदस्य हैं. हर समूह की एक अध्यक्ष, एक सचिव व एक कोषाध्यक्ष होती है. ये सब उनके महिला नेटवर्क की सदस्य हैं. जब भी किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर बैठक करनी हो, चर्चा करनी हो तो इन्हीं तीनों पदधारकों को वे सूचित करती हैं और उसके बाद आपस में बैठक कर पंचायत के लिए निर्णय लेती हैं. वे इन महिला समूहों को बैंक से कर्ज दिलाने में भी मदद करती हैं. उनके इलाके में समूह से जुड़ी ज्यादातर महिलाएं टमाटर की खेती व बकरी पालन का काम करती हैं. वे कहती हैं कि महिलाओं को कर्ज लेने की समझ नहीं होने के कारण कुछ महिलाओं पर बैंक का अच्छा-खासा ब्याज हो गया, दरअसल उन्हें मालूम नहीं है कि बीपीएल महिला को ही ब्याज छूट का लाभ मिलता है. इसके बाद उन्होंने बैठक कर उन्हें इस संबंध में समझाया. हालांकि वे कहती हैं कि इस स्तर पर अब भी दिक्कत होती है.
महिलाओं के काम की योजना
जानिए क्या है राजीव गांधी किशोरी सशक्तीकरण स्कीम (सबला) वर्ष 2010 में देश के दो जिलों में प्रायोगिक आधार पर राजीव गांधी किशोरी सशक्तीकरण योजना – सबला की शुरुआत की गयी थी. इसके तहत झारखंड के सात जिले गिरिडीह, गढ़वा, साहिबगंज, हजारीबाग, गुमला, पश्चिमी सिंहभूम व रांची आते हैं. सबला स्कीम का उद्देश्य 11 से 18 वर्ष की आयु की किशोरियों के पोषण और स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार, उनके घरेलू कौशलों, जीवन कौशलों और व्यावसायिक कौशलों के उन्नयन करके उनका सशक्तीकरण किया जाना है. इसके तहत बालिकाओं को साफ-सफाई, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विषय में मार्गदर्शन दिया जाता है. इसका उद्देश्य स्कूल नहीं जाने वाली बालिकाओं को औपचारिक या अनौपचारिक शिक्षा की मुख्यधारा में शामिल किया जाता है. यह स्कीम समेकित बाल विकास सेवा स्कीम (आइसीडीएस) की संरचना के माध्यम से चलायी जाती है. आंगनबाड़ी केंद्रों में इस स्कीम की सेवाएं प्रदान की जाती है. लेकिन जहां आंगनबाड़ी केंद्रों की संरचना नहीं है व अन्य सुविधाओं की कमी है, वहां स्कूलों-पंचायतों के भवनों और अन्य सामुदायिक भवनों में इसके संचालन की वैकल्पिक व्यवस्था की जाती है.
राजीव गांधी किशोरी सशक्तीकरण – सबला स्कीम राज्य सरकारों व संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों के माध्यम से चलायी जाने केंद्र प्रायोजित योजना है. इस स्कीम के तहत पोषक घटक को छोड़ कर अन्य सभी घटकों के लिए केंद्र सरकार शत-प्रतिशत वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है. पोषण घटक पर होने वाले व्यय में केंद्र और राज्य सरकारें 50 : 50 के आधार पर भागीदारी करती हैं. भारत में किशोरियों की का प्रतिशत महिला आबादी में 17 प्रतिशत है. 2001 में 8.3 करोड़ किशोरियां थी, जिसमें 2.74 करोड़ बालिकाएं (33 प्रतिशत) अल्पपोषित हैं. अत: वैसी लड़कियों को ध्यान में रख कर ही इस तरह की योजना की शुरुआत भारत सरकार ने की.
लोकसभा में अपने दम पर बढ़ रही हैं महिलाएं
संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण देश का एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा है. इस पर बार-बार बहस छिड़ती है. लेकिन देश की कई राजनीतिक पार्टियों के तीखे विरोध के कारण इसे लागू करना संभव नहीं हो पा रहा है. इसके समर्थकों व विरोधियों के इसे लेकर अपने-अपने तर्क हैं. लेकिन महिलाओं व लैंगिक समानता के पक्ष में बात करने वालों के लिए एक अच्छी बात यह है कि महिलाएं अपने दम पर लोकसभा में लगातार अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रही हैं. बिना किसी प्रकार के आरक्षण के. पहली लोकसभा (1952) में 22 महिला सांसद थी, जिनका लोकसभा में प्रतिशत 4.4 था, वहीं 15वीं लोकसभा में उनकी संख्या 58 हो गयी और प्रतिशत बढ़ कर 10.7 हो गया. सामान्यत: महिला सांसदों का प्रतिशत लोकसभा में लगातार बढ़ा है. 1977 में गठित छठी लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या सबसे कम रही है. इस चुनाव में मात्र 19 महिलाएं लोकसभा सदस्य चुनी गयीं थी, जिनका प्रतिशत 3.8 था. पंद्रहवीं लोकसभा के बाद संसद में महिला सांसदों की सर्वाधिक संख्या 1999 में गठित तेरहवीं लोकसभा में थी. इस लोकसभा में 49 महिला सांसद चुनी गयी थीं, जिनका प्रतिशत 9.2 था. 2004 में गठित 14वीं लोकसभा में 45 महिला सांसद चुनी गयीं, जिनका प्रतिशत 8.7 था.