<p>बारह जनवरी की तारीख भारत के न्यायिक इतिहास में हमेशा याद की जाएगी. वो दिन शुक्रवार का था, राजधानी दिल्ली में गुनगुनी धूप सरमाया थी. </p><p>सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे चेलमेश्वर ने अपने सरकारी बंगले के लॉन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और सोशल मीडिया से चैनलों के न्यूज़रूम तक में पारा परवान चढ़ गया.</p><p>उस अभूतपूर्व प्रेस कॉन्फ्रेंस में जस्टिस चेलमेश्वर के साथ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस जस्टिस मदन भीमराव लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ़ भी मीडिया से मुखातिब थे. </p><p>उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के काम करने के तरीके पर सवाल उठाए. इसमें सुप्रीम कोर्ट के रोस्टर से जुड़ा हुआ मुद्दा भी उठाया गया.</p><p>ये सवाल उठना लाज़िमी है कि सुप्रीम कोर्ट का वो रोस्टर क्या होता है जो इतना बड़ा मुद्दा बना और इसकी अहमियत इतनी क्यों है?</p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/international-42699428">7 मामले, जिन्हें नहीं सुनेंगे चार ‘बागी’ जज </a></p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india-42660321">वो चार जज जिन्होंने चीफ़ जस्टिस पर सवाल उठाए</a></p><h1>रोस्टर क्या है और इसे कौन बनाता है?</h1><p>सुप्रीम कोर्ट में रोस्टर का मतलब वो लिस्ट होती है जिसमें ये दर्ज किया जाता है कौन सी बेंच के पास कौन सा केस जाएगा और उस पर कब सुनवाई होगी. </p><p>रोस्टर बनाने का अधिकार मुख्य न्यायाधीश के पास होता और उन्हें ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ कहते हैं. </p><p>सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार मुख्य न्यायाधीश के आदेशानुसार रोस्टर बनाते हैं. </p><p>नवंबर 2017 में दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच ने ये फ़ैसला सुनाया था कि मुख्य न्यायाधीश ही ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ होंगे. </p><p>उस फ़ैसले में यह भी लिखा गया था कि कोई भी जज किसी भी मामले की सुनवाई तब तक नहीं कर सकता जब तक मुख्य न्यायाधीश उसे वो केस न सौंपे. </p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/india-42675471">’फ़ुल बेंच सुलझाए न्यायाधीशों के बीच मतभेद'</a></p><p><a href="http://www.bbc.co.uk/hindi/social-42660441">’जज ही अब न्याय की मांग कर रहे हैं'</a></p><h1>रोस्टर का मुद्दा क्यों अहम है?</h1><p>सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायमूर्तियों के मीडिया के सामने आने के बाद ही रोस्टर का मुद्दा गरमाया. </p><p>उन जजों ने कहा कि चीफ़ जस्टिस के पास रोस्टर बनाने का और केसों को जजों को सौंपने का अधिकार है लेकिन वो भी ‘बराबरी वालों में पहले है और किसी से ज़्यादा या किसी से कम नहीं है.'</p><p>चारों जजों ने चीफ़ जस्टिस के रोस्टर बनाने औऱ जजों के केस सौंपने के तरीके पर सवाल उठाए. </p><p>उन्होंने कहा, "ऐसे कई मौके हुए हैं जब ऐसे केस जो देश और संस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण थे, उन्हें कुछ चुनिंदा बेंचों में भेजा गया. मुख्य न्यायाधीश के इस कदम का कोई उचित आधार नहीं था."</p><p>बीबीसी मराठी से बात करते हुए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस पीबी सावंत ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई. </p><p>उन्होंने कहा, "मुख्य न्यायाधीश को केस सौंपने का पूरा अधिकार है. किसी भी केस के लिए यह फैसला महत्वपूर्ण होता है. अगर कोई अपनी ताक़त का ग़लत इस्तेमाल करना चाहता है तो वो कर सकता और कोई उसपर सवाल नहीं उठा सकता क्योंकि इससे जुड़ा कोई भी लिखित नियम नहीं है." </p><p>जस्टिस सावंत ने भी मुख्य न्यायधीश को एक चिट्ठी लिखकर कहा है कि, "हर केस एक रूटीन केस नहीं होता है. लेकिन कई ऐसे केस संवेदनशील होते हैं जिन्हें के मुख्य न्यायाधीश समेत शीर्ष 5 जजों को सुनना चाहिए."</p><h1>दूसरे देशों में क्या व्यवस्था है? </h1><p>भारत के सुप्रीम कोर्ट में 25 जज हैं. ये सभी 2 या उससे ज़्यादा की बेंच में बैंठते हैं. अमरीका के सुप्रीम कोर्ट में 9 जज हैं, केस की सुनवाई सभी एक साथ करते हैं. </p><p>ब्रिटेन में सुप्रीम कोर्ट में 12 जज हैं. ये 5 या 6 जजों की बेंच में बैठते हैं. </p><p>दोनों ही देशों में मुख्य न्यायाधीश के पास जजों के केस सौंपने के विकल्प कम होते हैं, लेकिन भारत में मुख्य न्यायाधीश के पास ज़्यादा विकल्प हैं.</p><p>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप <a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a> कर सकते हैं. आप हमें <a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a> और <a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</p>
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क्या ये है जजों के ‘बग़ावत’ करने की असली वजह?
<p>बारह जनवरी की तारीख भारत के न्यायिक इतिहास में हमेशा याद की जाएगी. वो दिन शुक्रवार का था, राजधानी दिल्ली में गुनगुनी धूप सरमाया थी. </p><p>सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे चेलमेश्वर ने अपने सरकारी बंगले के लॉन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और सोशल मीडिया से चैनलों के न्यूज़रूम तक में पारा परवान चढ़ गया.</p><p>उस […]
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