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आसान नहीं मोदी की हिफाजत करना

।। ब्रजेश कुमार सिंह।। (संपादक-गुजरात, एबीपी न्यूज) एनडीए के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की सुरक्षा को लेकर चर्चा फिर से गर्म हो गयी है. चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर गुरु वार की सुबह एक ट्रेन में दो बम फटने के बाद भाजपा ने मोदी की सुरक्षा तत्काल बढ़ाने की मांग की है. आइबी और रॉ […]

।। ब्रजेश कुमार सिंह।।

(संपादक-गुजरात, एबीपी न्यूज)

एनडीए के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की सुरक्षा को लेकर चर्चा फिर से गर्म हो गयी है. चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर गुरु वार की सुबह एक ट्रेन में दो बम फटने के बाद भाजपा ने मोदी की सुरक्षा तत्काल बढ़ाने की मांग की है. आइबी और रॉ ही नहीं, बल्किविदेशी खुफिया एजेंसियां भी मोदी पर आतंकी हमले की आशंका को लेकर लगातार अलर्ट जारी कर रही हैं. एनआइए ने जब इंडियन मुजाहिदीन के बड़े आतंकी यासीन भटकल को पकड़ा, तब उसने भी कबूल किया कि मोदी ‘आइएम’ की हिट लिस्ट में हैं. आतंकी अपने मंसूबों में कामयाब न होने पायें, इसके लिए मोदी की सुरक्षा में तैनात एजेंसियां लगातार कोशिश कर रही हैं. उनकी चुनौती पिछले सात महीनों में और बढ़ गयी है, खास तौर पर तब, जबकि मोदी लगातार चुनावी दौरे कर रहे हैं.

इस आम चुनाव में न सिर्फ भाजपा, बल्कि एनडीए के भी प्रमुख कैंपेनर हैं नरेंद्र मोदी. पिछले साल 13 सितंबर को पीएम पद के भाजपा उम्मीदवार के तौर पर उनके नाम की घोषणा हुई. इसके बाद से अब तक वह 400 से भी अधिक रैलियां देश के अलग-अलग हिस्सों में कर चुके हैं. 10 मई को जब आखिरी चरण का चुनाव प्रचार औपचारिक तौर पर थम जायेगा, तब तक मोदी कुल 437 रैलियां कर चुके होंगे.

जाहिर है, उन तमाम जगहों पर जहां मोदी रैली करने पहुंचते हैं, सुरक्षा एजेंसियों को उनकी सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था करनी पड़ती है. पिछले साल उनकी पटना रैली में हुए धमाकों के बाद किसी किस्म की कोताही नहीं बरत रही हैं एजेंसियां. 27 अक्तूबर, 2013 को पटना में हुई मोदी की हुंकार रैली के दौरान आइएम से जुड़े आतंकियों ने सीरियल ब्लास्ट को अंजाम दिया था. इसमें छह लोगों की जान गयी, जबकि 80 से ज्यादा घायल हुए.

इस घटना के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय के स्तर पर मोदी की सुरक्षा की समीक्षा हुई. तय किया गया कि मोदी की सुरक्षा में तैनात एनएसजी जवानों की संख्या में बढ़ोतरी की जायेगी.साथ में एडवांस सिक्यूरिटी लायजन यानी एएसएल भी अनिवार्य तौर पर किया जायेगा, जैसा कि प्रधानमंत्री जैसे एसपीजी सुरक्षा घेरे में रहनेवाले वीआइपी लोगों के मामले में होता है. मोदी पिछले एक दशक से सुरक्षा इंतजामात की उच्चतम श्रेणी- ‘जेड प्लस’ में आते हैं. मोदी को 2002 में ही यह सुरक्षा कवच दिया गया था. इससे पहले गुजरात में मुख्यमंत्री की सुरक्षा बहुत सामान्य किस्म की होती थी. एक पायलट जीप, बीच में मुख्यमंत्री की गाड़ी और पीछे स्थानीय पुलिस के जवानों से भरी एक गाड़ी. बाकी मंत्रियों को तो बस एक एसआरपी कमांडो ही हासिल होता था. ‘सीएम सिक्यूरिटी’ नामक अलग से एजेंसी भी नहीं थी. 2002 के दंगों और फिर 24 सितंबर 2002 के अक्षरधाम हमले ने पूरे हालात बदल दिये.

जिस अक्षरधाम मंदिर पर हमला कर आतंकियों ने 29 लोगों की जान ले ली थी, वह गांधीनगर में मुख्यमंत्री आवास के ठीक सामने सड़क की दूसरी तरफ है. आतंकियों से निबटने के लिए तब एनएसजी को दिल्ली से बुलाना पड़ा था.

इसके बाद न सिर्फ गुजरात पुलिस जागी, बल्कि केंद्रीय खुफिया विभाग भी सक्रिय हुआ. मोदी की सुरक्षा का नये सिरे से आकलन शुरू हुआ. तात्कालिक उपाय के तौर पर मुख्यमंत्री की सुरक्षा के लिए जवानों का एक खास दस्ता बनाया गया, जो हर समय मोदी के इर्द-गिर्द रहते थे. कुछ समय बाद मोदी के दफ्तर और आवास पर सीआइएसएफ के जवानों को भी तैनात किया गया. व्यस्त सड़क के किनारे बने मुख्यमंत्री आवास को कंटीले तार की बाड़ से घेरा गया. उसकी चहारदीवारी ऊंची की गयी. चारों तरफ फ्लड लाइट लगायी गयी. वॉच टावर खड़े कर जवानों को उन पर मुस्तैद किया गया.

इससे पहले तक मोदी की निजी जिंदगी बहुत आसान हुआ करती थी. कई बार वह रात में छत पर सोने चले जाया करते थे या फिर बिना सुरक्षा घेरे के लोगों से मिलने निकल जाते थे. लेकिन अक्षरधाम हमले ने मोदी के ‘नॉर्मल मूवमेंट’ पर रोक लगा दी. 24 घंटे उनके इर्द-गिर्द जवान चौकसी देने लगे. लेकिन इन तात्कालिक उपायों के बाद सीएम सिक्यूरिटी की संगठित व्यवस्था के लिए एक खास कमेटी का गठन किया गया. इसमें तीन वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी प्रमोद कुमार, विनोद मल्ल और संजय श्रीवास्तव रखे गये. श्रीवास्तव उस वक्त गांधीनगर के पुलिस अधीक्षक हुआ करते थे और मोदी को सुरक्षा मुहैया कराने की बुनियादी जिम्मेदारी इन्हीं की थी.

इस कमेटी ने उन सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सुरक्षा कवच का बारीकी से अध्ययन किया जो सुरक्षा के लिहाज से ‘संवेदनशील श्रेणी’ में आते थे. इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पंजाब महत्वपूर्ण थे. तमिलनाडु में लिट्टे आतंकियों के हाथों देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी मारे गये थे, तो पंजाब में खालिस्तानी आतंकियों के हाथों तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह. आंध्र प्रदेश मे भी नक्सली तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को निशाना बनाने में लगे रहते थे.

इन सभी राज्यों के ‘सीएम सिक्यूरिटी कवर’ का अध्ययन करने के बाद गुजरात में मोदी की सुरक्षा के लिए ‘मैनुअल’ बनाने की तैयारी शुरू हुई. साथ ही शुरू हुआ अत्याधुनिक हथियारों और सुरक्षा उपकरणों को खरीदने का सिलसिला. बुलेटप्रूफ गाड़ियां भी खरीदी गयीं. शुरु के वर्षो में टाटा सफारी गाड़ियों को बुलेटप्रूफ बना कर मोदी के काफिले का हिस्सा बनाया गया, तो बाद के वर्षो में महिंद्रा स्कॉर्पियो गाड़ियों को. ‘जैमर’ की भी व्यवस्था की गयी ताकि आतंकी ‘रिमोट कंट्रोल’ के जरिये काफिले के रास्ते में बम विस्फोट को अंजाम न दे पायें.

सुरक्षाकर्मियों को दिल्ली के पास मानेसर की एनएसजी अकादमी में खास प्रशिक्षण दिलाया गया. वही हथियार खरीदे गये, जो एनएसजी इस्तेमाल करता था. बाद के वर्षो में अत्याधुनिक उपकरणों और हथियारों की बड़ी खेप खरीदी गयी. जिस तरीके से प्रधानमंत्री की हिफाजत करनेवाले ‘एसपीजी’ की अपनी ‘ब्लू बुक’ है वैसे ही नरेंद्र मोदी की सुरक्षा के लिए ‘क्लासीफाइड सिक्यूरिटी मैनुअल’ है जिसमें सुरक्षा की तमाम कवायदों और उपायों के साथ आपात स्थिति में कैसे ‘रिएक्ट’ किया जाये, इसका भी है दिशानिर्देश है.

खास बात यह है कि खुद केंद्रीय खुफिया विभाग की तरफ से मोदी की सुरक्षा को लेकर बार-बार न सिर्फ निर्देश दिये गये, बल्कि सुझाव भी दिये गये. आइबी अपनी रिपोर्टो में इस बात का इशारा करती रही थी कि मोदी लगातार आतंकी संगठनों की ‘हिट लिस्ट’ में सबसे ऊपर बने हुए हैं. इसी दौरान यह भी तय किया गया कि मोदी की सुरक्षा के लिए ‘एनएसजी’ को लगाया जाये. केंद्र में उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. फरवरी, 2003 के आखिरी हफ्ते में मोदी को ‘एनएसजी कवर’ देने का फैसला हुआ और उसके कुछ दिनों बाद ही मोदी की सुरक्षा में ‘ब्लैक कैट कमांडो’ आ गये. तब से एनएसजी का यह कवर बना हुआ है, बल्किसाल दर साल इसमें और बढ़ोतरी ही हुई है. खास तौर पर तब, जब पिछले साल सितंबर में मोदी भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित हुए. (जारी)

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