डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में करीब 23 करोड़ लोग अस्थमा से पीड़ित हैं. एक बार हो जाने के बाद यह पूर्णत: ठीक तो नहीं होता, लेकिन इसे काबू में जरूर किया जा सकता है, ताकि जीवन के लिए जरूरी सांसें आसान बनी रहें. इसी के प्रति जागरूकता के लिए हर वर्ष मई के पहले मंगलवार को ‘विश्व अस्थमा दिवस’ मनाया जाता है, जो इस वर्ष 6 मई को है. अस्थमा किस प्रकार सांसों में रुकावट बनता है और कैसे हम इस बीमारी का सामना कर सकते हैं, बता रहे हैं प्रमुख अस्पतालों के प्रतिष्ठित डॉक्टर.
अस्थमा से ग्रस्त मरीजों के सांस की नलियों में सूजन आ जाती है, जिससे नलियां सिकुड़ जाती हैं और मरीज को सांस लेने में परेशानी होती है. बदलते मौसम में यह बीमारी काफी तकलीफदेह होती है. सांस की नलियों में सिकुड़न होने से कुछ समय बाद फेफड़ों में भी हवा भर जाती है, इससे मरीज को अस्थमा अटैक का खतरा होता है. अस्थमा के लक्षण कई चरणों में सामने आते हैं, जैसे- अस्थमा के शुरुआती दौर में सांस लेने में परेशानी होना, घुटन महसूस होना, निरंतर खांसी होना आदि. अस्थमा से ग्रस्त हो चुके मरीजों को सुबह-शाम के समय बलगम बनना, सांस छोड़ते समय सीटी बजने की शिकायत होती है. अस्थमा अटैक में मरीजों का पल्स रेट बढ़ जाता है, तेज खांसी होती है, नाखून व होंठ नीले पड़ जाते हैं. यदि मरीज में ऐसे लक्षण दिखायी दें, तो तुरंत चिकित्सक को दिखाएं.
बदलते मौसम से रहें सावधान
अस्थमा श्वास संबंधी रोग है. मरीज बढ़ते प्रदूषण की वजह से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. इसकी वजह से इसके मरीजों की संख्या निरंतर बढ़ रही है. धूम्रपान करने से भी अस्थमा बढ़ता है. बदलते मौसम में सामान्य व्यक्तियों की सांस नलियों में भी सिकुड़न होती है, इस मौसम में अस्थमा मरीजों को काफी परेशानी होती है
डॉ प्रकाश गिरा
सीनियर कंसल्टेंट
पुष्पाजंलि
क्रॉसले, दिल्ली