प्राचीन काल में हमारे ऋषियों ने योग को अनुभव किया और इसके महत्व को पहचाना. इसके बाद उन्होंने समाज के कल्याण के लिए इस पद्धति को विकसित किया. उन्होंने इसे इतने सुंदर और तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया कि यह आधुनिक समाज में भी लोकप्रिय है.
भारतीय दर्शन को षडदर्शन जैसे- मीमांसा, वेदांत, न्याय, वैशेषिक, सांख्य और योग कहे जाते हैं. सांख्य और योग, प्राचीन वैदिक तथा वेदांत फिलॉसफी हैं. इन दोनों दर्शनों ने भूमंडल के सभी विद्वानों को अपने दर्शन से चकित कर दिया है. सांख्य के आचार्य ऋषि कपिल और योग के हिरण्यगर्भ हैं. दोनों दर्शन एक दूसरे के पूरक माने जाते हैं. योग सांख्य का क्रियात्मक रूप है. यह तत्व ज्ञान को स्वयं अनुभव करना सिखा कर मनुष्य को अपने अंतिम लक्ष्य तक पहुंचाता है.
आयुर्वेद का स्तंभ है योग
हिरण्यगर्भ के सूत्रों के आधार पर महर्षि पतंजली ने योग सूत्र का निर्माण किया था. पतंजली मुनि के अनुसार योग से अंत:करण, पद से वाणी और आयुर्वेद से मल को दूर किया जाता है. योग को आयुर्वेद का मूलाधार स्तंभ भी माना जाता है. यह योग प्रक्रिया के आधार पर ही है. प्राचीन काल में ऋषियों ने पहले इससे स्वयं साक्षात्कार किया और इसे अनुभव किया. इसके बाद लोक समाज के लिए इसे ग्राह्य एवं उपयोगी बनाने के लिए क्रमिक अभ्यास की विधियां विकसित की. इसके ज्ञान को उन्होने इस सुंदर और तार्किक तरीके से प्रस्तुत किया कि यह आज वैज्ञानिक युग में भी लोकप्रिय है. विद्वानों ने इसे आधुनिक समाज की आवश्यकताओं एवं जीवनशैली के अनुरूप बनाने का प्रयास किया है, जिससे लोग व्याधि मुक्त, तनाव मुक्त, स्वस्थ, संतुष्ट एवं श्रेष्ठ जीवन व्यतीत कर सकें. योग दर्शन पर भाष्य रची गयी हैं, जिनमें व्यास भाष्य, तत्व बैशारदी, योग वर्तिका, योग सार आदि प्रमुख हैं.
योग की हैं अनेक पद्धतियां
पतंजली मुनी का अष्टांग योग, महर्षि धेरंड द्वारा रचित धेरंड संहिता में सप्तांग योग, गोरखनाथ रचित गोरक्षशतक में षडांग योग की चर्चा है. इसका अर्थ यह है कि समय एवं आवश्यकता के अनुसार लोगों ने योग की कुछ पद्धतियों को प्रचलित किया. परंतु आधुनिक काल में पतंजली का अष्टांग योग ज्यादा लोकप्रिय है. ये यम(आत्मसंयम), नियम (आत्मशोधन के नियमों का पालन), आसन (शारीरिक मुद्रा), प्राणायाम (श्वास-प्रश्वास का नियमन), प्रत्याहार(इंद्रियों को उसके विषय से रोकना), धारणा(चिंतन), ध्यान (तल्लीनता) और समाधि(पूर्ण अंतरतन्मयता) हैं. इस प्रकार योग ऐसी पद्धति है, जिससे व्यक्ति अपने भीतर छिपी शक्तियों को संतुलित रूप से विकसित कर सकता है. यह पूर्ण स्वानुभूति कराने का साधन प्रदान करता है. आत्मा को सर्व व्यापी परमात्मा से जोड़ने के साधन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है. इसलिए महर्षि पतंजली को चित्त वृत्तियों का निरोध बताया है.
जीवन ही योग है
सरलतम शब्दों में जीवन ही योग है. हमारे दैनिक कर्म ही योग हैं. योग का लक्ष्य समन्वित व्यक्तित्व का विकास है. यह शारीरिक, मानसिक उत्थान के लिए है. दुखी मानवता के लिए यह मनो दैहिक चिकित्सा पद्धति के रूप में एक वरदान है. सत्य खोजने वालों के लिए ईश्वरानुभूति की सीधी राह है. वस्तुत: योग पूर्णता की योजना है. योग आत्मसाक्षात्कार का एक मार्ग है. योग के कई प्रकार होते हैं, जिनमें – जप योग (अपने मन को एक पवित्र नाम या अक्षर पर केंद्रित कर इसका सतत उच्चरण करना) कर्मयोग (फल की चिंता किये बगैर कार्य करना), ज्ञानयोग (आत्मा और अनात्मा में भेद), भक्तियोग (ईश्वर के प्रति श्रद्धा भाव के साथ समर्पण), राजयोग (अष्टांग योग), स्वर योग या नाद योग(श्वास के द्वारा संयोग) हैं. वर्तमान में योग को रोग निरोधक, स्वास्थ्य वर्धक और रोग निवारण मूल्यांकन हेतु भारत और विदेशों में इस पर योजनाबद्ध तरीके से अनुसंधान हो रहा है. पिछले वर्ष फ्रांस में सरकार ने यूनिवर्सिटी स्तर तक योग की पढ़ाई को स्वीकृति दे दी है.
भारत में कुछ प्रसिद्ध संस्थान जैसे- शरीर क्रिया विज्ञान व संबंधित विज्ञान रक्षा संस्थान, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स), राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य तथा तंत्रिका विज्ञान संस्थान (निमहांस), विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान, कैवल्य धाम योग संस्थान, बिहार योग विद्यालय, मुंगेर आदि योग के प्रभावों के संबंध में गहन अनुसंधान कर रहे हैं.
महेश लेपचा
योग विशेषज्ञ