इस बात को साल भर से ज़्यादा हो चुका है लेकिन मलयालम फ़िल्म ‘कसाबा’ का वो डायलॉग मेरे जैसे सिनेमा प्रेमियों के ज़हन में अब भी ताज़ा है.
इस फ़िल्म के एक सीन में पुलिस अफसर का रोल निभा रहे एक्टर ममूटी अपने साथी महिला पुलिस ऑफिसर की बेल्ट खींचते हैं और कहते हैं कि वो चाहें तो कुछ ऐसा कर सकते हैं कि उनकी माहवारी बंद हो जाएगी.
करीब करीब सिंगल में काम कर चुकीं अभिनेत्री पार्वती ने भी कुछ दिन पहले इस बारे में ज़िक्र किया था और ममूटी के फ़ैन्स ने उनकी ज़बरदस्त ट्रोलिंग की थी.
इस बात का ज़िक्र होते ही मुझे ध्यान आया कि नए साल में आने वाली फ़िल्में महिला किरदारों, महिला निर्देशकों और निर्माताओं के लिहाज़ से कैसी हैं.
शाहरुख़, आमिर और सलमान जैसे हीरो को अलग रख, आइए नज़र डालते हैं 2018 की हिंदी फ़िल्मों पर महिलाओं के नज़रिए से.
वीरे दी वैडिंग
2018 में ऐसी फ़िल्म देखने को मिलेगी जिसमें पुरुषों की नहीं महिला दोस्तों की कहानी होगी.
फ़िल्म ‘वीरे दी वैडिंग’ चार दोस्तों -करीना कपूर, सोनम कपूर, स्वरा भाष्कर और शिखा तल्सानिया की कहानी है.
ज़्यादातर हिंदी फ़िल्मों में पुरुषों की दोस्ती के किस्से ही बयां किया जाते हैं फिर चाहे वो 1964 में आई फ़िल्म ‘दोस्ती’ हो, ‘शोले’ हो, ‘दिल चाहता हो’ या ‘ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा.’
औरत के नज़रिए से दोस्ती की कहानी पर्दे पर देखना दिलचस्प रहेगा.
मणिकर्निका- द क्वीन ऑफ झांसी
पिछले साल आई फ़िल्म ‘सिमरन’ के बाद कंगना रनौट एक बार फिर महिला प्रधान फ़िल्म में काम रही हैं.
इस फ़िल्म में मशहूर टीवी अभिनेत्री अंकिता लोखंडे भी डेब्यू कर रही हैं. कंगना की फ़िल्म ‘सिमरन’ बॉक्स ऑफ़िस पर अच्छा नहीं कर पाई थी.
पिछले कुछ सालों पर नज़र डालें तो कंगना ने ऐसी फ़िल्में करने में महारत सी हासिल की है जिसमें एक अभिनेत्री होने के नाते उनके हिस्से एक अच्छा और दिलचस्प रोल हो.
हिचकी
जब कोई हीरो पिता के बनने के बाद कोई फ़िल्म करता है तो शायह ही ऐसी हेडलाइन पढ़ने को मिले कि ‘पिता बनने के बाद हुई वापसी.’
लेकिन रानी मुखर्जी की नई फिल्म ‘हिचकी’ के हिस्से ऐसी हेडलाइन आ रही है.
पिछले साल माँ बनी रानी की फ़िल्म ‘हिचकी’ नए साल में देखने को मिलेगी जिसमें वो एक ऐसी टीचर के रोल में है जिसे टूरेट सिंड्रोम है.
ये बोलने में दिक्कत से जुड़ी एक बीमारी है.
महिला निर्देशक-निर्माता की फिल्में
मेघना गुलज़ार
निर्देशक मेघना इस साल ‘राज़ी’ नाम की फ़िल्म लेकर आ रही हैं जो एक कश्मीरी लड़की (आलिया भट्ट) की कहानी है जो एक पाकिस्तानी अफ़सर से शादी करती हैं और भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी के लिए काम करने लगती है.
ये फ़िल्म हरिंदर सिक्का की किताब ‘कॉलिंग सहमत’ पर बनी है.
मेघना गुलज़ार ने 2002 में सरोगेट माँ के विषय पर उस समय फ़िल्म बनाई थी जब इस मुद्दे पर भारत में ज़्यादा बात नहीं होती थी.
अनुष्का शर्मा
2018 में अनुष्का शर्मा एक बार फिर एक्टर-प्रोड्यूसर रोल में दिखेंगी. अनुष्का ‘परी’ नाम की फ़िल्म में एक्टिंग कर रही हैं और इसकी निर्माता भी है.
बतौर निर्माता ये उनकी तीसरी फ़िल्म है. इससे पहले वो ‘फिलौरी’ और ‘एनएच24’ बना चुकी हैं जो ऑनर किलिंग के इर्द गिर्द थी.
रीमा कागती
‘हनीमून ट्रैवल्स’ और ‘तलाश’ जैसी फ़िल्में बना चुकी रीमा कागती इस साल अक्षय कुमार के साथ फ़िल्म ‘गोल्ड’ का निर्देशन कर रही हैं.
ये हॉकी ख़िलाड़ी बलबीर सिंह और भारतीय हॉकी से जुड़ी कहानी है. बलबीर सिंह उस भारतीय टीम का हिस्सा थे जिसने 1948 में ओलंपिक गोल्ड जीता था.
ज़ोया अख़्तर
रीमा कागती के साथ काम कर चुकीं ज़ोया अख़्तर के निर्देशन में नई फ़िल्म ‘गली बॉय’ 2018 में आने वाली है जिसमें आलिया भट्ट और रणवीर सिंह है.
अपनी पिछली फ़िल्म ‘दिल धकड़ने दो’ में ज़ोया ने एक परिवार की कहानी दिखाई थी जो बिखरने के कगार पर है, बहन (प्रियंका चोपड़ा) जो बिज़नस संभालने का माद्दा रखती हैं पर पिता बेटे (रणवीर सिंह) पर ही कारोबार का बोझ डालना चाहते हैं.
वहीं ‘ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा’ चार दोस्तों की कहानी थी जो एक रोड ट्रिप के ज़रिए ख़ुद को दोबारा तलाशते हैं.
प्रियंका चोपड़ा ने भी अमरीकी चैनल एबीसी के लिए एक टीवी शो बनाने का करार किया है जो बॉलीवुड एक्टर माधुरी दीक्षित पर बनेगा.
लेकिन हिंदी सिनेमा की बात करें तो आज भी महिला निर्देशकों और निर्माताओं की गिनती बहुत कम है.
सेक्सिज़म पर आईबीएम की रिपोर्ट के मुताबिक, फ़िल्मों में महिला किरदारों की बात करें तो उनके लिए केवल सुंदर, आकर्षक जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है जबकि पुरुष किरदारों के लिए ताकतवर और सफल जैसे शब्द ज़्यादा इस्तेमाल किए जाते हैं.
महिलाओं के संदर्भ में शादी, प्यार शब्द आता है तो पुरुषों के संदर्भ में मारधाड़ से जुड़े शब्द आते हैं.
ज़्यादा महिला निर्देशकों और निर्माताओं के होने से फ़िल्मों में ‘सेक्सिज़म’ से निजात मिल जाए ये कोई ज़रूर नहीं लेकिन एक शुरुआत तो हो ही सकती है.
2017 में ऐसी कई फ़िल्मों को ख़ूब सराहा गया जो या तो महिला निर्देशकों ने बनाई थी या फिर महिलाओं के इर्द गिर्द थी.
‘अनारकली ऑफ़ आरा’, ‘तुम्हारी सुलु’, ‘सीक्रेट सुपरस्टार’, ‘पूर्णा’ कुछ ऐसी फ़िल्में थी जिसमें हीरोइन को दिलचस्प किरदार निभाने को मिले.
वहीं ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’, ‘डेथ इन द गंज’, ‘रिबन’, ‘बरेली की बर्फ़ी’ जैसी फ़िल्मों को अलंकृता श्रीवास्तव, कोंकणा सेन शर्मा, राखी शांडिल्य और अश्विनी अय्यर तिवारी ने बनाया.
कुछ साल पहले एक टीवी विज्ञापन आया था जिसमें एक महिला पत्रकार के जवाब में शाहरुख़ खान कहते हैं, अब से मेरी फ़िल्मों में हीरोइन का काम क्रेडिट में हीरो से पहले आएगा.
तो चलो, शुरुआत यहीं से की जाए?
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