।। लखनऊ से राजेंद्र कुमार ।।
उत्तर प्रदेश चुनाव में असली परीक्षा अब
उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से 33 पर चुनाव हो चुके हैं. अगले तीन चरणों में अभी 47 सीटों पर मतदान होना बाकी है, इनमें ज्यादातर वीवीआइपी सीटें भी शामिल हैं. सभी दलों के युवराज ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच बनाने के लिए दिन-रात एक किये हैं. अब देखना है कि मतदान के दिन वोटर का दिल किस पर पसीजता है.
इन चुनावों में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती और भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के ही राजनीतिक कौशल का इम्तिहान नहीं हो रहा है, राजनीति का ककहरा सीख चुके चार ‘युवराजों’ की लोकप्रियता और क्षमता की भी परीक्षा हो रही है. इनमें सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र राहुल गांधी हैं, पहली बार कांग्रेस पार्टी उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है. राहुल गांधी का मुकाबला अपने रक्तवंशी वरुण गांधी के अलावा यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया के पुत्र जयंत चौधरी जैसे युवा चेहरों से है. ये चारों अपने परिवारों की राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए पहली बार अपने संसदीय क्षेत्र और राज्य के बाहर प्रचार करने के लिए जनता के बीच पहुंच रहे हैं.
उन्हें सुनने के लिए हर जगह भीड़ भी हो रही है. अब देखना यह है कि इन युवराजों की दौड़-भाग का परिणाम उनके दल के पक्ष में कितना आता है. भाजपा के अध्यक्ष राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह का भी नाम इन युवराजों के साथ कुछ लोग जोड़ रहे हैं. परन्तु चुनावी विश्लेषक राजनाथ सिंह के चुनाव प्रचार की लखनऊ में कमान संभालने वाले पंकज सिंह की इन युवराजों से तुलना नहीं करते. इनका कहना है कि राहुल, अखिलेश, वरुण और जयंत अपने दल में चुनाव लड़ रहे हर उम्मीदवार के हीरो हैं.
देश में अब इनकी अपनी एक पहचान है और ये चारों पहली बार अपने वारिसों की छत्र छाया से बाहर आकर व्यापक स्तर पर चुनाव प्रचार कर रहे हैं. इनके दलों का हर उम्मीदवार चाहता है कि उसका चुनाव प्रचार करने दल के युवराज एक बार जरूर आयें. तमाम कांग्रेसी नेता तो राहुल गांधी को जीत का ट्रंप कार्ड तक बता रहे हैं. इन नेताओ के अनुसार युवा मतदाता राहुल का फैन है. जिसका लाभ कांग्रेस उम्मीदवार को राहुल के चुनाव प्रचार करने से मिलेगा.
कांग्रेसियों की उम्मीद का सहारा बाने राहुल गांधी वर्तमान में कांग्रेस के उपाध्यक्ष और अमेठी संसदीय क्षेत्र से सांसद हैं. नेहरू, इंदिरा और राजीव की राजनीतिक विरासत का वारिस होने के बावजूद राहुल अपनी उम्र और अनुभव को लेकर लंबे समय तक संकोच व्यक्त करते रहे और उनकी सक्रि यता सिर्फअमेठी, रायबरेली तक ही सीमित रही. कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनने के बाद वह पहली बार कांग्रेस को चुनावी रणनीति का दारोमदार उनपर है. जिसे निभाते हुए राहुल हर दिन पांच सभाएं और रोडशो कर देश भर में कांग्रेस उम्मीदवारों का चुनाव प्रचार कर रहे हैं. और उनका हेलीकॉप्टर हर दिन कम से कम दो राज्यों में पहुंच रहा है.
राहुल के मुकाबले में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश सिंह खड़े हैं. उन्होंने अपने पिता की देखरेख में सालों तक खाटी समाजवादी शैली में राजनीति सीखी. कन्नौज से सांसद रहे और अब यूपी के मुख्यमंत्री पद का दायित्व संभाल रहे अखिलेश के लिए राजनीति के ऊंचे-नीचे रास्ते अब नये नहीं रहे. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में अखिलेश यादव की ही धुंआधार प्रचार रणनीति से सपा पहली बार यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही. अब इन प्रतिष्ठापूर्ण चुनावों में सपा प्रमुख उन्हें स्टार प्रचारक के रूप में आजमा रहे हैं.
यूपी की सभी संसदीय सीटों पर वह चुनाव प्रचार तो कर ही रहे हैं, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, गुजरात, तमिलनाडु में भी सपा प्रमुख ने उन्हें पार्टी का चुनाव प्रचार करने की जिम्मेदारी सौंपी हुई है. जिसे निभाने में अखिलेश कोई सुस्ती नहीं दिखा रहे हैं और पहली बार वह राहुल गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी की नीतियों में खामियों को अपने राजनीतिक कौशल से जनता के बीच रख रहे हैं. अखिलेश भी हर दिन पांच चुनावी सभाओं को संबोधित कर रहे हैं. वह रोज सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक चुनाव सभा और रोड शो के जरिये सपा उम्मीदवारों का प्रचार कर रहे हैं.
इन युवराजों के बीच रालोद सुप्रीमो चौधरी अजित सिंह के बेटे जयंत सिंह भी चर्चा में है. उन्हें राजनीति में आये मात्र छह वर्ष ही हुए हैं. इस अल्प अवधि में वह मथुरा संसदीय सीट से सांसद बने और पश्चिमी यूपी के हर गांव तथा यूपी के हर जिले का दौरा कर सभाएं की. इस बार भी वह मथुरा से चुनाव लड़ते हुए यूपी में कांग्रेस और रालोद के उम्मीदवारों के पक्ष में चुनाव प्रचार कर रहे हैं.
पहली बार वह ऐसी भूमिका में हैं. वर्ष 2008 में राजनीति में आने के बाद उन्होंने मथुरा तक ही अपने को सीमित रखा था. जयंत का राजनीतिक कौशल कितना धारधार रहा, यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा, परंतु वरु ण गांधी के राजनीतिक तेवरों की धार अब तो खुल कर दिखाई देने लगी है.
पीलीभीत संसदीय सीट से 2009 में चुनाव जीते वरु ण गांधी भाजपा के तेजतर्रार युवा नेता हैं. बचपन से ही उन्होंने अपने घर में राजनीति देखी और सीखी है. राजनीति में आने के बाद उन्होंने बतौर युवा भाजपा नेता देश भर का दौरा किया और अब वह अपने पिता के संसदीय क्षेत्र सुल्तानपुर से चुनाव लड़ रहे हैं. भाजपा उन्हें स्टार प्रचारक के तौर पर अन्य उम्मीदवारों का चुनाव प्रचार करने भेज रही है.