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पाक में महिला पुलिस

पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में महिला पुलिसकर्मियों का पुलिस थाना अहम होता जा रहा है, वह भी पुरुष प्रधान समाज में. थाना प्रमुख 36 साल की बुशरा बतूल अपने सिर का दुपट्टा ठीक करते हुए पुलिस थाने में आती हैं. बतूल एक आदमी से बातचीत कर रही थीं, जिसकी शिकायत थी कि उसकी नौकरानी ने […]

पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में महिला पुलिसकर्मियों का पुलिस थाना अहम होता जा रहा है, वह भी पुरुष प्रधान समाज में. थाना प्रमुख 36 साल की बुशरा बतूल अपने सिर का दुपट्टा ठीक करते हुए पुलिस थाने में आती हैं. बतूल एक आदमी से बातचीत कर रही थीं, जिसकी शिकायत थी कि उसकी नौकरानी ने उसका आइफोन चोरी कर लिया है. बतूल ने उसे समझाया कि कोई भी कार्रवाई करने से पहले उसे जांच करनी होगी.

पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने 1994 में महिला थाने को शुरू किया था. महिला पुलिसकर्मियों वाला पुलिस थाना शुरू करने के पीछे कारण ही यह था कि उसमें महिलाओं के मामले या महिलाओं के खिलाफ दर्ज किये जानेवाले मामले आएं. बतूल का कहना है कि महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए महिला पुलिसकर्मियों का होना बहुत जरूरी है, ‘हमारी पुलिस अधिकारी छापा मारने जाती हैं.

उन महिलाओं के साथ रहती हैं जिन्हें सुरक्षा की जरूरत हैं, अगर किसी महिला पर अपराध का आरोप है, तो उसकी गिरफ्तारी हम करते हैं. हमारे समाज में पुरुष यह नहीं कर सकते.’ इस पुलिस थाने में घरेलू हिंसा के आरोपों की भी जांच की जाती है. महिला पुलिस अधिकारी उन महिलाओं को अदालत लाती ले जाती हैं, जिनका तलाक का मुकदमा चल रहा है और जिनकी जान को खतरा है. बतूल बताती हैं, ‘कोई भी महिला तभी पुलिस थाने आती है जब उसके पास कोई विकल्प नहीं बचता. और यह बात एक महिला ही समझ सकती है.’ घर में सबसे बड़ी होने के कारण बतूल को तब बाहर निकलना पड़ा, जब उनके पिता को दिल की बीमारी हो गयी थी. उस समय वह एमबीए कर रही थीं, पर पढ़ाई छोड़ कर उन्होंने पुलिस की नौकरी ले ली, ‘मैंने अपना घर छोड़ा और यह काम अपना लिया. यह उस समय की जरूरत थी और आजाद जिंदगी जीने की ख्वाहिश भी.’ इस पुलिस थाने में काम करने वाली सभी पुलिसकर्मी ऐसे ही किसी कारण से आई हैं. बतूल कहती हैं, ‘यहां आनेवाले सभी लोग बुरे नहीं हैं. हर मामले के पीछे कोई कहानी होती है.’

ऐसा ही एक मामला हिना नाहीद का है. उन्हें रात में एक चकलाघर में पड़े छापे के दौरान पकड़ा गया. उन्होंने बताया ,‘मैंने अपने हालात सुधारने के लिए बहुत काम किए. मैं नौकरानी रही, फिर से शादी की लेकिन कुछ फर्क नहीं पड़ा,अब मैं यहां (जेल में) पहुंच गयी हूं.’ बुशरा बतूल रोज ऐसी कहानियां सुनती हैं, उन्हें गंभीरता से लेती हैं और मुकदमे के दौरान सभी औरतों को सुरक्षित जगह दिलवाती हैं, ‘मैं समझ सकती हूं कि उसने जो किया वो मजबूरी थी. दूसरी महिला पुलिसकर्मी भी ये समङोंगी. लेकिन अगर कोई आदमी उसे पकड़ता तो शायद वह उसका अपमान करता.’ पुरुष प्रधान समाज में और पुरुष प्रधान नौकरी में बतूल को काफी चुनौतियां भी हैं. उनकी खुद की भी शादी टूट गई क्योंकि उन्होंने नौकरी छोड़ने से इनकार कर दिया था. वह कहती हैं, ‘इस स्टेशन ने मुङो जीवन की ऊंच नीच से उबरना सिखाया है. मैं अब इसे नहीं छोड़ सकती.’
(साभार : डीडब्ल्यू.डीइ)

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