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चुनावी कर्फ्यू और एक मतदाता का सफर

।। पुष्यमित्र ।। मतदान के लिए लिफ्ट लेकर 55 किमी का सफर वोट देना हर नागरिक का कर्तव्य है, लेकिन मतदान के दिन जिस तरह से अघोषित कर्फ्यू होता है, उससे कई बार परेशानी होती है. पेश है एक संस्मरण.ट्रेन से कटरिया स्टेशन पर उतरा तो सुबह के 6.15 बज रहे थे, धूप ठीक से […]

।। पुष्यमित्र ।।

मतदान के लिए लिफ्ट लेकर 55 किमी का सफर

वोट देना हर नागरिक का कर्तव्य है, लेकिन मतदान के दिन जिस तरह से अघोषित कर्फ्यू होता है, उससे कई बार परेशानी होती है. पेश है एक संस्मरण.ट्रेन से कटरिया स्टेशन पर उतरा तो सुबह के 6.15 बज रहे थे, धूप ठीक से खिली नहीं थी. रंगरा चौक के पास एनएच पर पहुंचा. वहां चार-पांच सिपाही खड़े थे. उनसे मैंने पूछा- धमदाहा तक पहुंच पायेंगे क्या? सिपाही जी ने कहा- मुश्किल है. शाम तक भी पहुंच गये तो गनीमत समङिायेगा. जैसे वोट शुरू होगा, सड़क पर एक गाड़ी नहीं दिखेगा.

हालांकि बाद में उनकी यह बात गलत साबित हुई. सवा दस बजे मैं अपने घर में था, जो कटरिया स्टेशन से लगभग 55 किमी दूर है. वैसे सुबह जो हालात नजर आ रहे थे उसमें 55 क्या 5 किमी का सफर भी असंभव लग रहा था. एनएच तक पर बैरियर लगा दिये गये थे. सड़क पर इक्का-दुक्का मोटरसाइकिल भी नजर नहीं आती थी. महज वोट देने के लिए कल मैं पटना से निकला था. अगर बिना वोट डाले लौटना पड़ता तो इससे बुरी क्या बात हो सकती थी.

थोड़ी देर में हिंदुस्तान पेट्रोलियम के तीन ट्रक आते दिखे. सिपाही आपस में बतिया रहे थे, तेल वाली गाड़ियां हैं, इसे जाने देना होगा. मैं सजग हो गया, जैसे ही गाड़ियां बैरियर के पास पहुंची अनुरोध किया कि कुरसेला तो छोड़ दो. एक गाड़ी वाला मान गया और मैं सवार हो गया.

कुरसेला चौक पर लोग भी ठीक-ठाक संख्या में थे, कुछ रिक्शे भी टहल रहे थे. धमदाहा जाने वाली सड़क पर दस-बारह यात्रीखड़े थे. तभी एक टैंपो नमूदार हुआ. उसने कहा, अगर पुलिस ने रोका नहीं तो सबको रु पौली पहुंचा देगा, वरना टीकापट्टी में ही उतार देगा. लोग आनन-फानन में सवार हो गये और टैंपो चल पड़ा. पंद्रह लोग सवार थे.

एक परिवार बक्सर से आ रहा था, वोट डालने के लिए. समूह वाली एक महिला कटिहार से आ रही थी. बांकी लड़के थे. अधिकांश लोग वोट डालने के लिए ही यात्रा कर रहे थे. मगर यह यात्रा पुलिस द्वारा रोके जाने की वजह से टीकापट्टी बैरियर पर ही खत्म हो गयी. हमने कहा कि कम से कम बाजार तक तो जाने दें. मगर दरोगाजी आकर रौब झाड़ने लगे. कहा, एक कदम आगे बढ़े तो होश ठिकाने लगा देंगे. लिहाजा किराया चुकाया और पैदल ही आगे बढ़ गये.

टीकापट्टी बाजार पर लोग इस भीड़ को ऐसे देख रहे थे कि कोई अजूबी चीज हों. समूह वाली महिला तब तक गुस्से में आ गयी थी और वह प्रशासन को जोर-जोर से गालियां दे रही थी. लड़के फोन पर अपने रिश्तेदारों से कह रहे थे कि किसी को साइकिल लेकर भेज दें. वे लोग पास के होंगे, धमदाहा अब भी तकरीबन 35 किमी दूर था. मैंने उस भीड़ का साथ छोड़ कर टीकापट्टी थाने से आगे एक ढाबे पर रुक गया. थोड़ी देर बाद थाने से कुछ गाड़ियां बाहर निकलीं. उम्मीद के मुताबिक एक जीप वाले ने लिफ्ट दे दी, मगर सिर्फ तेलडीहा तक.

किस्मत अच्छी थी, तेलडीहा में एक बाइक सवार मिल गया, भवानीपुर तक के लिए. आझोकोपा में चुनाव शुरू हो चुका था, लंबी-लंबी कतारें थीं, वहां से रु पौली-भवानीपुर तक कई बूथ नजर आये. भाई साहब ने भवानीपुर बाजार से एक किमी पहले दुर्गापुर चौक पर मुङो उतार दिया. वहां चाय-पान की दो गुमटियां थीं, मैं वहीं बैठ गया. वहां से धमदाहा 15-16 किमी था. अब मुङो भरोसा हो गया था कि घर तो पहुंच ही जाऊंगा सो आराम से लोगों से बतियाता और चुनाव का माहौल समझता चलूं. एक सज्जन पान बनवा रहे थे, मेरे पूछने पर बोले- भाई वोट तो खूब पड़ रहे हैं और जिसको जहां जी आये वहीं दे रहा है.

फिर एक बाइक वाले ने भवानीपुर बाजार तक लिफ्ट दे दिया. वहां मैंने लिट्टी खायी और चाय पिया. दुकान पर बैठे लोगों ने कहा कि इस बार खूब वोट पड़ रहे हैं. कोई ऐसा नहीं है जो वोट नहीं डाल रहा. मरद तो मरद, जनानी भी. चाय वाले की पत्नी ने कहा, जनानी नहीं डालेगी क्या. सरकार जनानी के लिए इतना काम करती है, तो जनानी कैसे भोट नहीं डालेगी. साइकिल देती है, समूह बनाती है…

दिन खिलने लगा था, सुबह के नौ बज गये थे. मतदान की बढ़ती तेजी के साथ आवागमन की रफ्तार लगभग शून्य पर पहुंच गयी थी. एक घंटे से भवानीपुर में था, मगर एक दोपहिया वाहन भी सड़क पर नजर नहीं आ रहा था. खैर एक बाइक वाले ने जो बिशनपुर जा रहे थे, लिफ्ट दे दिया.

बिशनपुर भाजपा नेता उदय सिंह और उनके भाई एनके सिंह का ननिहाल है. उनके नाना उस इलाके के सबसे बड़े जमींदार थे. उनकी जजर्र डय़ोढ़ी के सामने एक गुमटी के आगे बने मचान पर बैठ गया. सामने स्कूल में वोटिंग चल रही है. दुकान के पास बैठे लोग बतिया रहे थे कि किस टोले में तीर के खाते में वोट जा रहा है, किसमें कमल.

वहां से धमदाहा मात्र आठ किमी है. मगर घंटा भर बैठने के बाद भी कोई सवारी नहीं मिली, बाइक भी नहीं. न पुलिस वाहन, न चुनावी पर्यवेक्षकों की गाड़ी. धूप तेज और पैदल चलने की आदत छूट गयी थी. वरना आठ किमी की परवाह गांव के लोग कहां करते हैं. हार-थक कर धमदाहा के पत्रकार साथी को फोन लगाया. वह वहीं आसपास से गुजर रहा था, थोड़ी देर में वह आ गया. इस तरह चुनावी कर्फ्यू के दौरान एक मतदाता का 55 किमी का सफर पूरा हो गया.

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