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विकास के मुद्दे पर शुरू हुआ गुजरात का चुनाव प्रचार जिसमें पहले विकास पगला गया और इस प्रचार के अंत में विकास धार्मिक बन गया है.
अब गुजरात के लोग पगला गए विकास को वोट देते हैं या धार्मिक विकास को देते हैं यह तो 18 दिसंबर को परिणाम के दिन ही पता चलेगा.
गुजरात के चुनाव प्रचार में इस बार बहुत सारी चीज़ें नई और आश्चर्यजनक थीं. कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व के मामले में आगे बढ़ती दिखी तो भाजपा ने भी विकास के मुद्दे को परे रखकर आख़िर में राम मंदिर, तीन तलाक़ जैसे मुद्दे उठाने की कोशिश की.
भाजपा ने इस बात का भी प्रचार किया कि कांग्रेस ने गुजरात और गुजरात के नेताओं के साथ अन्याय किया है. सबसे ध्यान देने वाली बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभाओं के मुकाबले हार्दिक पटेल की जनसभाओं में उमड़ी भीड़ ने भी भाजपा को चिंतित किया.
काटने वाले जूते और गुजरात गुजरात की रेस
हटकर था चुनाव प्रचार
सरदार पटेल विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर बलदेव आगजा ने कहा कि इस चुनाव में गुजरात विधानसभा के पिछले 13 चुनावों से हटकर प्रचार देखने को मिला, कांग्रेस ने अपनी अल्पसंख्यक तुष्टिकरण वाली छवि तोड़कर सॉफ्ट हिंदुत्व का मार्ग अपनाया उसके उपाध्यक्ष राहुल गांधी प्रचार के दौरान बहुत सारे मंदिर भी गए. कांग्रेस ने शहरी मध्यम वर्ग और ग्रामीण वर्ग के साथ हिंदुत्व के मुद्दे पर अपने आप को जोड़ने की कोशिश की है.
प्रोफ़ेसर आगजा ने आगे कहा कि भाजपा ने उसके चुनावी प्रचार की शुरुआत विकास की बातों से की लेकिन उनका विकास समाज के आख़िरी छोर तक नहीं पहुंचा इसलिए लोगों में इस बात का प्रभाव ज़्यादा नहीं देखने को मिला इसलिए शुरुआत के 10 दिन के विकास आधारित प्रचार के बाद भाजपा भी हिंदुत्व के मुद्दे पर मुड़ गई और आख़िरकार उनका विकास धार्मिक बन गया.
उन्होंने आगे कहा कि गुजरात घटना परस्त राज्य है, यहां होने वाली बड़ी घटनाओं का असर लोगों के दिलो दिमाग़ पर रहता है. इसीलिए 2015 में शुरू हुआ पाटीदार अनामत आंदोलन इस चुनाव में पाटीदारों को भाजपा के ख़िलाफ़ कर रहा है.
गुजरात में विकास मुद्दा ही नहीं है
चुनाव के प्रचार में विकास के मुद्दे को भाजपा मानती होगी पर गुजरात नहीं मानता. भाजपा ने उसके विकास के मुद्दे के बदले 1979 में मोरबी में हुई तबाही पर इंदिरा गांधी ने मुंह पर रुमाल रखा था ऐसे मुद्दे भी उठाए जिसके अपेक्षित परिणाम नहीं मिले.
इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक उर्विश कोठारी कहते हैं कि इस चुनाव में प्रचार की शुरुआत किसी पक्ष ने नहीं की थी. विकास पगला गया है वह ट्रेंड सोशल मीडिया पर वायरल हो गया वही मेरे हिसाब से एक निर्णायक घटना थी. इस ट्रेंड की शुरुआत बरसात के मौसम के बाद रास्ते पर पड़े गड्ढों के कारण हुई थी.
गुजरात के चुनाव में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि जब लोगों के बीच से कोई मुद्दा आए या फिर लोगों का असंतोष खुद एक बड़ा मुद्दा बन जाए और वही मुद्दा खुद विपक्ष की भूमिका अदा करे.
वह आगे कहते हैं कि कांग्रेस को तो इस मुद्दे पर सिर्फ़ सवारी ही करनी थी जो कि उसने की. कांग्रेस हमेशा की तरह चुनाव प्रचार के लिए देर से जगी. विकास पगला गया है जब ट्रेंड हुआ तब कांग्रेस जागी हुई नहीं थी.
मगर जब से कांग्रेस ने प्रचार शुरू किया तब से राहुल गांधी एक बेहतर कॉपीराइटर के साथ देखने को मिले. उनके भाषणों में इस बार एक अदा देखने को मिली जिसके लिए वह जाने नहीं जाते थे.
कांग्रेस जिसके लिए बदनाम हुई है वह बात सही हो या नहीं लेकिन अल्पसंख्यकों (मुस्लिम, इसाई) की तरफ़दारी करने से राहुल गांधी ने सोच समझकर अंतर बनाए रखा. जिसके कारण विपक्ष को वह मौका नहीं मिला जिसे वो चाहता था.
प्रचार के दौरान क्या क्या हुआ?
उन्होंने आगे कहा कि भाजपा को उसके प्रचार में विकास पगला गया है उस ट्रेंड का विरोध करना पड़ा क्योंकि उसका गुजरात मॉडल दांव पर लगा हुआ है. एक तरफ़ उन्हें गुजरात में सचमुच विकास हुआ है यह बात साबित भी करनी है और दूसरी तरफ़ कांग्रेस वही पुरानी, दागी और भ्रष्टाचारी कांग्रेस है यह भी साबित करना है.
भाजपा का चुनाव प्रचार विकास के मामले में बचाव की भूमिका में रहा. मगर और मुद्दे पर जब वह आक्रामक बनने गए तब अज्ञात कारणों की वजह से उनका आक्रामक प्रचार लोगों तक पहुंचा ही नहीं.
पिछले एक महीने में भाजपा ने 15-20 बार अलग-अलग मुद्दों को आक्रामकता से उछालने की कोशिश की लेकिन एक भी मुद्दा लोगों के बीच उनके पक्ष में लहर नहीं पैदा कर पाया. जो कि पिछले चुनावों से अलग है.
पहले के चुनावों में भाजपा एक मुद्दा रखती थी जिससे वह लोगों में एक लहर पैदा होती और उस लहर पर सवार होकर चुनाव का परिणाम तय हो जाता. इस बार ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है और यह इस चुनाव में भाजपा के प्रचार की असफ़लता को दिखाता है.
सोशल मीडिया पर भाजपा फ़ेल
सोशल मीडिया और प्रचार दोनों में भाजपा का पलड़ा हमेशा भारी माना जाता था जो इस बार नहीं दिख रहा है. उधर कांग्रेस जो पहले लोगों की समस्याओं की बात नहीं करती थी उसके प्रचार के वीडियों में वह लोगों के मुद्दे उठा रही है जिसमें गुजरात की अस्मिता से लेकर बेरोज़गारी महिलाओं की सुरक्षा जैसे हर प्रकार के मुद्दे भी शामिल हैं.
इस बारे में बात करते हुए चुनाव विश्लेषक डॉ. आई.एम. खान कहते हैं कि राहुल गांधी सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ़ गए हैं. वह अभी बहुसंख्यकों को ध्यान में रखकर बात करते हैं जो पहले भाजपा करती थी. जो मुसलमान सालों से कांग्रेस के वफ़ादार मतदाता रहे हैं उनका यह सवाल है कि राहुल प्रचार के लिए मंदिर गए तो मस्जिद क्यों नहीं गए.
वह आगे कहते हैं कि इसके अलावा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय जादूगरों के द्वारा चुनाव प्रचार किया था और वही प्रयोग गुजरात में भी किया है.
अब देखना यह है कि यह प्रयोग गुजरात के कम आय वाले वर्गों में कितना सफ़ल होता है. भाजपा ने भी जीएसटी और नोटबंदी जैसे विवादास्पद निर्णय और महंगाई के मुद्दे में बचाव का प्रयास नहीं किया है. भाजपा अभी गुजरात और गुजराती के मुद्दे को उठा रही है.
सबसे ध्यान देने वाली बात यह है कि दोनों में से कोई भी पार्टी इस बार सांप्रदायिकता की बात नहीं कर रही है. नरेंद्र मोदी ने भी राम मंदिर के मुद्दे की बात कपिल सिब्बल के परिपेक्ष्य में की लेकिन उन्होंने उसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश नहीं की.
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