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जब इस पत्रकार ने अपना नाम रखा ‘रिग्रेट’ अय्यर

<p>पिता ने उनका नाम सत्यनारायण अय्यर रखा था, लेकिन उन्होंने अपना नाम बदलकर रिग्रेट अय्यर मतलब ‘खेद’ अय्यर रख लिया. बीबीसी संवाददाता गीता पांडे ने दक्षिण भारतीय शहर बेंगलुरु में उनसे मुलाक़ात की और पूछा कि क्या उन्हें अपना नाम बदलने का अब कोई पछतावा है?</p><p>अय्यर को हैट्स पहनने का शौक है. वो ख़ुद को […]

<p>पिता ने उनका नाम सत्यनारायण अय्यर रखा था, लेकिन उन्होंने अपना नाम बदलकर रिग्रेट अय्यर मतलब ‘खेद’ अय्यर रख लिया. बीबीसी संवाददाता गीता पांडे ने दक्षिण भारतीय शहर बेंगलुरु में उनसे मुलाक़ात की और पूछा कि क्या उन्हें अपना नाम बदलने का अब कोई पछतावा है?</p><p>अय्यर को हैट्स पहनने का शौक है. वो ख़ुद को लेखक, प्रकाशक, फ़ोटोग्राफ़र, पत्रकार, कार्टूनिस्ट और अन्य पेशों से जुड़ा बताते हैं. </p><p>जब मैंने इस महीने की शुरुआत में 67 साल के अय्यर से उनके घर पर मुलाक़ात की तो उन्होंने बताया कि बचपन में वो पत्रकार बनना चाहते थे और इसी चाहत के कारण उन्हें अपना नाम सत्यनारायण अय्यर से रिग्रेट अय्यर करना पड़ा. </p><p>1970 के दशक के आख़िर में जब अय्यर एक कॉलेज स्टूडेंट थे तभी लेखन के कीड़े ने उन्हें काट लिया था. </p><p>उसी दौरान अय्यर ने एक लेख लिखा. इस लेख में उन्होंने अस्तित्व को लेकर सवाल किया था, जैसा कि ऐसे सवाल ज़्यादातर युवा पूछते हैं. लेख शीर्षक था- ‘मैं कौन हूं?'</p><p>यह लेख उनके कॉलेज की पत्रिका में छपा. इस प्रकाशन के बाद उनका आत्मविश्वास बढ़ा और उन्हें लगा कि वो पत्रकार बन सकते हैं. इसके बाद अय्यर ने संपादकों के नाम पत्र लिखना शुरू किया. </p><p>आज की डिजिटल दुनिया में यह ऑनलाइन लेखों पर की जाने वाली टिप्पणी की तरह है. अय्यर की कई टिप्पियां प्रकाशित भी हुईं.</p><p>संपादक ने नाम चिट्ठियां प्रकाशित होने के बाद अय्यर का आत्मविश्वास और बढ़ा. इसके बाद उन्होंने लोकप्रिय कन्नड सांध्य अख़बार जनवाणी में एक लेख भेजा. यह लेख बिजापुर शहर के इतिहास पर था. कुछ दिनों बाद उनके पास एक खेद पत्र आया. </p><p>इस पत्र की शुरुआत संपादक के धन्यवाद से था. संपादक ने अख़बार में दिलचस्पी दिखाने के लिए अय्यर को शुक्रिया कहा था. इसके साथ ही संपादक ने लेख नहीं छापने के लिए माफ़ी भी मांगी थी.</p><p>अय्यर कहते हैं कि उन्हें निराशा तो हुई, लेकिन उत्साह ख़त्म नहीं हुआ था. अगले कुछ सालों तक अय्यर कन्नड़ और अंग्रेज़ी अख़बारों को बिना मांगे पत्र, लेख, कार्टून्स, फ़ोटो और कविता भेजते रहे. </p><p>अय्यर मंदिरों और पर्यटन के अलावा ख़बरों की दिलचस्पी वाले मुद्दों पर लिखते थे. उनके पत्र जनशिकायतों, ख़राब बस सेवा और गंदगी से जुड़ी समस्याओं पर होते थे. </p><p>1970 और 80 के दशक में अय्यर के पत्रों और लेखों का सामना करने वाले जाने माने स्थानीय पत्रकार नागेश हेगड़े कहते हैं, ”उनके विषय संपादकों के लिए दुःस्वप्न की तरह थे. उनके कुछ लेखन को प्रकाशित किया गया, लेकिन ज़्यादातर चीज़ें वापस कर दी गईं. कुछ सालों में कई अख़बारों से उनके पास 375 खेदपत्र आ गए. ये पत्र केवल भारत से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी थे.” </p><p>अय्यर कहते हैं, ”मेरे पास खेदपत्रों की बरसात हो गई. मुझे नहीं पता था कि मेरे लेखन को क्यों लौटा दिया गया. फिर मैंने सोचना शुरू किया कि आख़िर ऐसी क्या कमी है कि वापस कर दिया जा रहा है? लेकिन संपादकों ने कभी नहीं बताया कि एक लेखक या फ़ोटोग्राफ़र के काम में क्या कमी है.”</p><p>जाने-माने पत्रकार नागेश हेगड़े कहते हैं कि अय्यर का लेखन बहुत ही लापरवाह किस्म का होता था. नागेश हेगड़े को ही सत्यनारायण अय्यर का नाम रिग्रेट अय्यर कराने का श्रेय दिया जाता है. </p><p>हेगड़े ने मुझसे कहा, ”घटनाक्रम पर उनकी नज़रें बनी रहती थीं. ख़बरों को वो ध्यान से पढ़ते थे. ख़बर पहचानने की उनमें उम्दा प्रतिभा थी, लेकिन वो इन चीज़ों को ठीक से लिख नहीं पाते थे. उनका लेखन का काफ़ी कमज़ोर होता था.” </p><p>हेगड़े प्रजावाणी अख़बार में एक लोकप्रिय कॉलम लिखते थे. हेगड़े के बाद लगभग सभी अख़बारों ने अय्यर के लेख को लगातार लौटाना शुरू कर दिया. </p><p>हेगड़े ने कहा कि अगर वो अय्यर का एक लेख भी प्रकाशित कर देते तो वो और भेजना बंद नहीं करते. इसके बाद 1980 में एक दिन अय्यर प्रजावाणी के दफ़्तर पहुंच गए और उन्होंने हेगड़े से खेदपत्रों के संग्रह के बारे में बताया. </p><p>हेगड़े ने कहा, ”मैंने अय्यर से खेदपत्रों के संग्रह का सबूत मांगा. अगले दिन अय्यर सैकड़ों पत्रों के साथ दफ़्तर आए.” </p><p>उसके अगले दिन हेगड़े ने अपना कॉलम रिग्रेट अय्यर शीर्षक से लिखा. हेगड़े ने कहा कि अय्यर के अलावा कोई दूसरा होता तो वो शर्म से इन पत्रों को छुपा लेता, लेकिन अय्यर ने उन पत्रों को गर्व से दिखाया. </p><p>एक आशावादी की तरह अय्यर को पता था कि उनके दुर्दिन कभी अच्छे दिन में बदल सकते हैं. उन्होंने अपनी नाकामी का इस्तेमाल कामयाबी की सीढ़ी बनाने में किया. </p><p>संपादकों का कहना है कि अय्यर उनके बीच कई नामों से जाने जाते थे और आख़िर में यह नामकरण रिग्रेट अय्यर पर आकर थमा. </p><p>अय्यर कहते हैं कि जब उन्हें नया नाम मिला तो अहसास हुआ कि कलम की ताक़त तलवार से कहीं ज़्यादा है. अय्यर सिविल कोर्ट गए और एक शपथपत्र के ज़रिए अपना नाम बदलवाया. </p><p>अय्यर कहते हैं, ”मैंने पासपोर्ट और बैंक अकाउंट पर भी अपना नाम बदलवाया. इसके साथ ही विवाह निमंत्रण पत्र पर भी बदला हुआ ही नाम लिखा.” </p><p>अय्यर ने कहा, ”पहले लोग मेरे ऊपर हंसे. मुझे बेवकूफ़ और पागल कहा. लोगों ने अपमानित किया, लेकिन मेरे पिता ने मुझे साहस दिया. मुझे लगा कि मैं किस्मत वाला व्यक्ति हूं कि मेरे घर वालों ने दिल से समर्थन किया.” </p><p>अय्यर ने अपने जीवन का बड़ा समय पिता के पैसे से काटा. </p><p>अय्यर ने कहा, ”मैं बहुत कम पैसे खर्च करता था. मैं अपने माता-पिता के साथ रहता था और वो मेरा खर्च उठाते थे. उन्होंने ही मेरे बच्चों को स्कूल और कॉलेज में पढ़ाया.” </p><p>और एक दिन अय्यर की ज़िंदगी ने भी करवट ली. उनकी ज़्यादा से ज़्यादा चिट्ठियां प्रकाशित होने लगीं. अय्यर की ली तस्वीरें भी प्रकाशित होने लगीं. </p><p>अय्यर ने सीखा कि उन्हें कैसे लिखना है. इसके बाद उनके लेखन को सभी कन्नड़ और अंग्रेज़ी अख़बारों ने प्रकाशित करना शुरू कर दिया. </p><p>रिग्रेट अय्यर कहते हैं, ”मैं कैमरा, स्कूटर, हेलमेट और यहां तक कि एक लोगो वाली शर्ट के साथ वन मैन आर्मी था.” अब रिग्रेट अय्यर की पत्नी और उनके दो बच्चों ने भी अपने नाम के बीच में रिग्रेट शब्द को जोड़ लिया है. </p><p>हेगड़े का कहना है कि रिग्रेट अय्यर को कर्नाटक का और शायद भारत का भी पहला नागरिक पत्रकार कहा जा सकता है. उनका कहना है कि हेगड़े से हम भले खीझ जाते थे, लेकिन हमारे पाठकों के लिए प्रेरणास्रोत हैं. </p><p>लोग हमेशा छोटे और रोचक लेखन को अख़बार या पत्रिका में पसंद करते हैं और रिग्रेट अय्यर की रिपोर्ट और तस्वीरें इस कसौटी पर बिल्कुल खरी रहती है. रिग्रेट अय्यर ने अपने लेखन से जल्द लोकप्रियता हासिल कर ली. </p><p>ज़िद ही उनकी सबसे बड़ी मज़बूती थी. हेगड़े कहते हैं, ”दूसरे रिपोर्टर अपना काम पूरा करने के बाद चले जाते थे, लेकिन रिग्रेट अय्यर देर तक रुकते थे. वो रिपोर्ट के लिए हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहते थे. उन्हें ख़बरें निकालने की कला पता थी. अय्यर के लोकप्रिय होने से ऑफिस के लोग डर गए थे. वो अपने साथ हमेशा कैमरा रखते थे. वो फ़र्जी भिखारियों, गिरे हुए पेड़ों, पुलिस के अत्याचारों, पानी के नलों के रिसाव और सड़क पर फैले कूड़ों की तस्वीरें लेते थे.” </p><p>नाकामी की लंबी फ़ेहरिस्त के बावजूद अय्यर का कहना है कि वो कभी परेशान नहीं हुए. उनका कहना है कि ख़ारिज किए जाने से उनका लंबा संबंध रहा है. </p><p>अय्यर ने अपनी कई नाकामियों को साझा किया. उन्होंने कहा, ”मैंने एक अंतरराष्ट्रीय खेद पत्र संग्रहकर्ता बनाने की कोशिश की, लेकिन कोई भी सामने नहीं आया. कोई नाकाम नहीं होना चाहता है.”</p><p>मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्हें नाम बदलने का पछतावा है? रिग्रेट अय्यर कहते हैं, ”नहीं. मैं इतिहास में एक खेदपत्र संग्रहकर्ता के तौर पर पहचाना जाना चाहूंगा. एक दिन आएगा जब खेदपत्र के लिए कोई जगह नहीं होगी. आज की डिजिटल दुनिया में कई लोग मुझसे पूछते हैं कि खेदपत्र क्या होता है? लेकिन एक दिन सारे कंप्यूटर सर्वर बैठ जाएंगे पर मेरी आलमारी में खेदपत्र बचे रहेंगे.”</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां</a><strong> क्लिक करें. आप हमें </strong><a href="http://www.bbc.com/hindi/sport-39061037">फ़ेसबुक</a><strong> और </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">ट्विटर</a><strong> पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)</strong></p>

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