विद्या दास पिछले 25 साल से आदिवासी आबादी के सशक्तीकरण के लिए काम कर रही हैं. वे प्राकृतिक संसाधन पर उनके हक, उनकी जागरूकता और कौशल विकास के मुद्दे पर काम करती हैं. वे उन्हें प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के बारे में बताती हैं और औपचारिक व अनौपचारिक शिक्षा भी उपलब्ध कराती हैं. वे जनजातीय आबादी की सक्रियता बढ़ाती हैं और उनमें जागरूकता लाती हैं. विद्या आदिवासी व समाज के सबसे वंचित समुदाय के बच्चों के सशक्तीकरण के लिए काम करती हैं.
ओडिशा के कालाहांडी, बोलंगीर, कोरापुट, राजगढ़ जैसे जिलों में उनकी अधिक सक्रियता है. वे इन क्षेत्रों में रहने वाले दलितों व आदिवासियों के सशक्तीकरण के लिए ढाई दशक से लड़ रही हैं. उनकी संस्था एग्रेगेमी कई तरह के प्रोजेक्ट पर कार्य करती है. जैविक खेती के लिए ग्रामीणों को प्रेरित करने व नरेगा को सफल बनाने जैसे विषय भी उन्होंने अपने कार्यक्षेत्र में रखा है.
उनका एक महत्वपूर्ण योगदान यह है कि उन्होंने आदिवासी महिलाओं को लघु वनोपज पर अधिकार की मांग के लिए संगठित व सक्रिय किया. उनकी प्रेरणा व सक्रियता से आदिवासी महिलाओं ने इस मुद्दे पर रणनीतिक ढंग से संघर्ष किया, जिसके परिणाम स्वरूप राज्य सरकार को अपनी नीति बदलनी पड़ी. ओडिशा सरकार ने अंतत: सभी आदिवासी क्षेत्र में लघु वनोपज के प्रबंधन की जिम्मेवारी पंचायतों को सौंपी.
विद्या दास ने ओड़िशा के पांच जिलों के 200 गांवों की 5000 आदिवासी महिलाओं को संगठित किया और इनके माध्यम से भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार और हिंसा व मानवाधिकार के उल्लंघन के खिलाफ व्यापक आंदोलन छेड़ा. उनकी प्रेरणा से इसको लेकर स्थानीय लोगों में जागरूकता आयी. महिलाएं शिक्षा को लेकर लामबंद हुईं. उन्होंने आदिवासी क्षेत्र के 210 गांवों में शिक्षा सुविधा की पहुंच बनाने के लिए भी काम किया, ताकि जनजातीय बच्चे शिक्षा पा सकें. उनके द्वारा गणित शिक्षण की विकसित की गयी पद्धति को राज्य के विभिन्न एनजीओ ने अपनाया. पांच हजार लड़के-लड़कियां अब बेहतर ढंग से प्राइमरी व उच्च शिक्षा पा रहे हैं. इसके पीछे उनके प्रयासों का ही योगदान है. वैसे गांव जहां शून्य साक्षरता दर थी, वहां कि 600 आदिवासी बच्चियां अब प्राथमिक शिक्षा पा रही हैं.
विद्या दास को उनकी लेखनी व पुस्तकों के लिए भी जाना जाता है. वे बड़े स्तर पर आदिवासी लोगों के खिलाफ होने वाले अन्याय के विरुद्ध राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित करने के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इन मुद्दों पर निरंतर लेखन कार्य भी किया है.
उनकी कोशिशों का नतीजा है कि आज गांव-समुदाय के भीतर नेतृत्व की एक मजबूत लाइन बन गयी है. गांवों में क्षमता निर्माण, टिकाऊ व कम लागत की प्रौद्योगिकी, बाजार लिंकेज जैसी सुविधा उपलब्ध करा कर वे लोगों को आत्मनिर्भर बना रही हैं.
25 सालों से अधिक समय से लोगों में ऊर्जा भरने का उनका कार्य व उन्हें गरिमापूर्ण जीवन व आजीविका उपलब्ध कराना, ग्रामीण महिलाओं को सक्षम बनाने का प्रयास सचमुच सराहनीय है. महिला एवं बाल विकास के लिए अपने महत्वपूर्ण योगदान हेतु उन्हें 2013 का जमना लाल बजाज फाउंडेशन की ओर से सम्मानित भी किया गया.