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थियेटर ने ही दिया यह मुकाम : राजश्री ठाकुर

अभिनय की दुनिया में आने के लिए आपको किसने प्रेरित किया?मैं यही मानती आयी हूं कि आत्मविश्वास ही आपका गुरु है. यहां यह जरूर बताना चाहूंगी कि थियेटर से लगाव के पहले गुरु विश्वास सोहनी ने ही मुङो इसके प्रति प्रेरित किया. इस तरह मेरा नाता एक्टिंग से जुड़ा. थियेटर से आपकी शुरुआत कैसे हुई? […]

अभिनय की दुनिया में आने के लिए आपको किसने प्रेरित किया?
मैं यही मानती आयी हूं कि आत्मविश्वास ही आपका गुरु है. यहां यह जरूर बताना चाहूंगी कि थियेटर से लगाव के पहले गुरु विश्वास सोहनी ने ही मुङो इसके प्रति प्रेरित किया. इस तरह मेरा नाता एक्टिंग से जुड़ा.

थियेटर से आपकी शुरुआत कैसे हुई?

तब मैं सिर्फ 11 साल की थी. तब से थियेटर कर रही हूं. हालांकि तब मुङो लगता था कि मुङो सब आता है. लेकिन जब पहली बार काम किया, तो समझ आया कि कितनी चीजें सीखना बाकी हैं. पहला प्ले था 1994 की लव स्टोरी. उससे पहले बैक स्टेज के लिए काम करती थी. हमारे ग्रुप के गुरु ने कहा था कि हमें पहले बैक स्टेज काम ही सीखना है. रसिक नाम से हमारा ग्रुप भी हुआ करता था. गुरु की किन बातों ने आपको प्रभावित किया?

खासतौर से उनकी यह बात अच्छी लगती थी कि वे काफी अनुशासित थे. हमें डांटते भी थे. पहले उन पर काफी गुस्सा आता था, अब लगता है कि मेरे अभिनय में यह निखार उनकी डांट से ही आ पाया. आज अपनी जिंदगी में उनकी कही बातों पर ही हम अमल कर रहे हैं और मुङो संतुष्टि मिलती है कि मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा.

आपके किस प्ले ने आपकी जिंदगी बदल दी?
उस वक्त ‘सतराहवर्षम्’ करके एक प्ले किया था. यह एक लव स्टोरी थी कि 17 साल में कैसे एक लड़की को प्यार होता है और उसकी जिंदगी में क्या-क्या बदलाव आते हैं. इसे काफी पसंद किया गया था. इसके अलावा मैंने एक और प्ले किया था, जिसमें मैंने प्रोस्टीट्यूट की भूमिका निभायी थी. वह प्ले बॉम्बे यूनिवर्सिटी के लिए था. उस वक्त लोगों ने काफी तारीफ की थी मेरी. खूब तालियां बजी थी. जब मैंने वह प्ले अच्छे से कर लिया तब मुझमें पूरा आत्मविश्वास आ गया कि मैंने जो क्षेत्र चुना है, वह बिल्कुल सही है और मैं एक अच्छी एक्ट्रेस बन सकती हूं.

आप स्प्रिचुएलिटी और थियेटर को किस तरह देखती हैं? क्या आपको लगता है कि दोनों में कोई कनेक्शन है?
हां, बिल्कुल. मुङो लगता है कि आप जब खुश होते हैं और अपनी अंतररात्मा की तलाश करते हैं तो वही स्प्रिचुएलिटी होती है. थियेटर करने से अगर आपको खुशी मिलती है, जैसे मुङो मिलती है. मैं अभिनय को एंजॉय करती हूं तो मैं मानती हूं कि मेरे लिए यही स्प्रिचुएलिटी है. मेरे लिए मेरा अभिनय ही साधना है और अभिनय मुङो थियेटर से ही मिला है. यह थियेटर की ही देन है कि आज मैं इस मुकाम पर हूं.

आपके गुरु की कौन-सी बातों को आज भी आप अमल में लाती हैं?
यही कि थियेटर को आसान काम न समङों. अनुशासन थियेटर की पहली डिमांड है. आपका फोकस, आपकी चाहत और हर छोटी-छोटी बारीकियां. सर हमेशा कहते थे कि थियेटर में सब कुछ लाइव होता है. जो होता है, वही दिखता है. वहां एडिटिंग के ऑप्शन नहीं होते. सो, अपना 100 प्रतिशत देना चाहिए. साथ ही आप जब स्टेज पर हैं तो पूरी दिन दुनिया को भूल जाइए. आप सिर्फ वही है,ं जो आप स्टेज पर किरदार निभा रहे हैं. आज भी जब मैं शॉट देती हूं, इस बात का पूरा खयाल रखती हूं. जब कैमरा ऑन होता है तो निजी जिंदगी भूल कर ऑनस्क्रीन किरदार में ढल जाती हूं. एक कलाकार की यही खूबी है कि वह अपने दुख-दर्द को भूल कर वही करता है, जो किरदार की डिमांड है. असल कलाकार की यही पहचान है.

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