Advertisement
कभी लंदन में भी था स्मॉग का कहर, चार हजार लोगों की हुई थी मौत
दिल्ली में जारी धुंध के कहर से लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो रही है. दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में फैल रहे वायु प्रदूषण और बढ़ रहे कोहरे के कहर के दौर में छीटाकंशी का दौर जारी है. हालांकि इस गंभीर समस्या को लेकर मंथन जारी है लेकिन अब तक समाधान के […]
दिल्ली में जारी धुंध के कहर से लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो रही है. दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में फैल रहे वायु प्रदूषण और बढ़ रहे कोहरे के कहर के दौर में छीटाकंशी का दौर जारी है. हालांकि इस गंभीर समस्या को लेकर मंथन जारी है लेकिन अब तक समाधान के दिशा में कोई ठोस कदम उठाया नहीं जा सका है. 60 साल पहले दिल्ली की तरह ही ब्रिटेन की राजधानी लंदन में भी स्मॉग बेहद गंभीर समस्या बन चुकी थी. इस संकट को ‘बिग स्मॉग’ के रूप में जाना जाता है.
आज के लंदन को देखकर यह अंदाजा लगा पाना मुश्किल है कि कभी यहां दिल्ली जैसे हालत रहे होंगे. 1952 के करीब लंदन में ‘बिग स्मॉग’ की वजह से 4,000 लोगों की मौत हो गयी थी. कहा तो यह भी जाता है कि दृश्यता इतनी खराब थी कि बस और टैक्सी के परिचालन को रोक दिया गया था. बिग स्मॉग की समस्या वर्ष 1952 के दिसंबर महीने में ठंड के दिनों में आयी और लंदन में अचानक से सांस लेने में लोगों को दिक्कत होने लगी.
समस्या इतनी भयावह हो चुकी थी कि शहर में एक लाख लोग श्वसन संबंधी बीमारी से ग्रसित हो गये. तेजी से बढ़ रहे औद्योगिककरण से लंदन के हवा में जहर घुल गयी थी. हालांकि इस ऐतिहासिक संकट को लेकर अन्य कारकों को भी जिम्मेदार ठहराया गया. 5 दिसंबर से शुरू हुई यह स्थिति 9 दिसंबर तक बनी रही. इस दौरान लोग बीमार पड़ने लगे. इस समस्या ने ब्रिटेन को हिलाकर रख दिया. इसके बाद ब्रिटेन में पर्यावरण विज्ञान पर रिसर्च हुए और सामान्य लोगों के बीच पर्यावरण जागरूकता के कार्यक्रम चलाये गये. प्रदूषण की समस्या से निबटने के लिए Clean Air Act 1956 नाम से कानून बनाया गया.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
अरबन प्लानिंग के विशेषज्ञों के मुताबिक भारत के शहरों ने पुराने चरित्र को खो दिया. पैदल चलने वाले यात्रियों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. वहीं सड़कों के किनारे अतिक्रमण अब भी गंभीर समस्या बनी हुई है. भारत के शहरों में लागातार भीड़ बढ़ रही है और तालाबों, खेल के मैदान में आवासीय भवन और शॉपिंग कॉम्पलेक्स का निर्माण हो रहा है. वहीं सड़कों के डिजायन के वक्त हमेशा कारों के परिचालन को ध्यान में रखा जाता है. पैदल और साइकिल चलने वाले लोग सड़कों में सहमे दिखते हैं. यूरोपियन शहरों के डिजायन के वक्त साइकिल और पैदल यात्रियों का खास ख्याल रखा जाता है. नीदरलैंड ने प्रदूषण और खराब एयर क्वालिटी से निबटने के लिए साइकिल को बढ़ावा दिया है. वहीं कोपेनहेगन ने गाड़ियों की पार्किंग स्पेस को घटाकर ग्रीन स्पेस में तब्दील कर दिया गया है.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement