देश 16वें आम चुनाव में व्यस्त है. इस वक्त सबके जेहन में यही सवाल है कि इस चुनाव के बाद कौन बनेगा प्रधानमंत्री? ऐसे वक्त में यह जानना दिलचस्प होगा कि आजादी के बाद से अब तक प्रधानमंत्री पद को पूर्णकालिक रूप से सुशोभित करनेवाले 13 नेताओं ने कहां-कहां से और कैसे जीता था चुनाव. प्रधानमंत्रियों के चुनाव की जानकारी दे रहा है आज का नॉलेज..
जवाहरलाल नेहरू
(15 अगस्त, 1947 से 27 मई, 1964)
स्वतंत्र भारत की पहली चुनी हुई लोकसभा का गठन 17 अप्रैल, 1952 को हुआ और यह अपने पूरे कार्यकाल (4 अप्रैल, 1957) तक चली. वर्ष 1991-52 में पहली लोकसभा के लिए चुनाव चार माह तक कई चरणों में आयोजित किये गये थे. पहली लोकसभा के चुनाव में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जिस लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था, उसे इलाहाबाद जिला (पूर्व) सह जाैनपुर जिला (पश्चिम) के नाम से जाना जाता था. इसमें दो सीटें शामिल थीं. 27 मार्च, 1952 को हुए मतदान में एक सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी जवाहर लाल नेहरू थे, जबकि दूसरी सीट से मसुरिया दीन. जेहरू जी को कुल 2,33,571 वोट मिले थे, जबकि मसुरिया दीन को 1,81,700 वोट मिले थे. पहले आम चुनाव में नेहरू जी को चुनौती देनेवाले निर्दलीय उम्मीदवार प्रभुदत्त ब्रrाचारी को 56,718 और केके चटर्जी को 27,392 वोट मिले थे. इसके अलावा, तीन अन्य प्रत्याशियों बंशीलाल, लक्ष्मण गणोश और बद्री प्रसाद को क्रमश: 59,642, 25,870 और 18,129 वोट हासिल हुए थे. चुनाव में मतदान का प्रतिशत 40.21 रहा था.
वर्ष 1957 में हुए दूसरे आम चुनाव में फूलपुर सीट से कांग्रेस की ओर से ये दोनों ही प्रत्याशी थे. नेहरू जी को 2,27,448 वोट और मसुरिया दीन को 1,98,430 वोट हासिल हुए थे. इसके अलावा, पीएसपी के चेत राम, बीजेएस के ठाकुर दास, निर्दलीय सीताराम खेमका, बीजेएस के शिवआधार, निर्दलीय इंदु देव को क्रमश: 61,322; 47,169; 34,329; 31,071 और 17,093 वोट हासिल हुए.
1962 के तीसरे लोकसभा चुनाव में नेहरू जी ने फूलपुर से (एसओसी के प्रत्याशी) राममनोहर लोहिया को हराया था. नेहरू जी को 1,18,931 वोट, जबकि लोहिया जी को 54,360 वोट मिले थे.
लाल बहादुर शास्त्री
(9 जून 1964 से 11 जनवरी, 1966)
नेहरू जी के असामयिक निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने देश की बागडोर संभाली थी. तीसरी लोकसभा के चुनाव में शास्त्रीजी 1962 में इलाहाबाद लोकसभा क्षेत्र से रामगोपाल संड को हराकर सांसद निर्वाचित हुए थे. उस चुनाव में शास्त्रीजी को 1,37,324 वोट हासिल हुए थे, जबकि रामगोपाल संड को 68,791 वोट मिले थे. उस चुनाव में इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र के 4,46,090 मतदाताओं में से 2,45,210 ने वोट डाला था यानी तकरीबन 55 फीसदी वोट पड़े थे. इसमें शास्त्रीजी को 58 फीसदी और संड को 29 फीसदी वोट मिले थे.
इंदिरा गांधी
(24 जनवरी, 1966 से 24 मार्च, 1977)
शास्त्रीजी के असामयिक निधन के बाद श्रीमती इंदिरा गांधी को देश की बागडोर सौंपी गयी. हालांकि, उस समय वे राज्यसभा की सदस्य थीं. लेकिन अगले वर्ष यानी 1967 में हुए चौथे लोकसभा चुनाव के दौरान इंदिरा गांधी ने रायबरेली से निर्दलीय उम्मीदवार बीसी सेठ को हराया था. इंदिरा गांधी को उस लोकसभा चुनाव में 1,43,602 वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी सेठ को 51,899 वोट मिले थे.
वर्ष 1971 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली से राजनारायण को हराया था. श्रीमती गांधी को 1,83,309 वोट, जबकि राजनारायण को 71,499 वोट मिले थे. हालांकि, छठे आम चुनाव (1977) में इंदिरा गांधी राजनारायण से हार गयीं. राजनारायण को 1,77,719 वोट मिले, जबकि श्रीमती गांधी को 1,22,517 वोट ही मिले थे. उस वर्ष रायबरेली में 54.16 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाले थे.
मोरारजी देसाई
(24 मार्च, 1977 से 28 जुलाई, 1979)
देश में 1977 में बनी पहली गैर-कांग्रेसी सरकार में मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री चुने गये. देसाई गुजरात में सूरत से लोकसभा चुनाव जीत कर आये थे. वर्ष 1977 में आयोजित छठे लोकसभा चुनाव में भारतीय लोक दल (बीएलडी) के प्रत्याशी के तौर पर देसाई मोरारजी रणछोड़जी को 2,06,206 वोट मिले थे, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार चौहान जसवंत सिंह को 1,84,746 वोट मिले थे. उस चुनाव में सूरत लोकसभा क्षेत्र के 68.83 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था.
चरण सिंह
(28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980)
मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी जनता पार्टी की सरकार के अल्पमत में आने की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और उसी दल से अलग हुए कुछ सांसदों ने चरण सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस का समर्थन लेते हुए केंद्र में नयी सरकार का गठन किया. तत्कालीन लोकसभा चुनाव में चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश की बागपत सीट से जीत कर आये थे. वर्ष 1977 में छठी लोकसभा चुनाव में चरण सिंह को 2,86,301 वोट मिले थे, जबकि उनके एकमात्र प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार कांग्रेस के राम चंद्र विकल को 1,64,763 वोट हासिल हुए थे. इस लोकसभा सीट पर 74.83 फीसदी मतदाताओं (4,56,968) ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था.
इंदिरा गांधी
(14 जनवरी, 1980 से 31 अक्तूबर, 1984)
चरण सिंह की सरकार भी ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी और 1980 में सातवां आम चुनाव कराया गया, जिसमें कांग्रेस को पूर्ण बहुमत हासिल हुआ. इंदिरा गांधी के नेतृत्व में एक बार फिर से केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी. तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी आंध्र प्रदेश की मेडक सीट से जनता पार्टी के एस जयपाल रेड्डी और उत्तर प्रदेश में रायबरेली सीट से राजमाता विजया राजे सिंधिया को हराने में सफल रही थीं. मेडक में जहां उन्हें 3,01,577 वोट मिले, वहीं रायबरेली में 2,23,903 वोट मिले थे. मेडक में 63.21 फीसदी, जबकि रायबरेली में 56.68 फीसदी मतदान हुए थे.
राजीव गांधी
(31 अक्तूबर, 1984 से 2 दिसंबर, 1989)
इंदिरा गांधी की हत्या (31 अक्तूबर, 1984) के बाद राजीव गांधी को देश का अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया और असम व पंजाब को छोड़ कर पूरे देश में लोकसभा चुनाव कराये गये. इन चुनावों में कांग्रेस ने ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और 400 से ज्यादा सीटें हासिल की. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अमेठी से मेनका गांधी को भारी मतों से हराया. राजीव गांधी को 3,65,041 वोट मिले, जबकि मेनका गांधी को महज 50,163 वोट ही मिल पाये थे. अमेठी सीट से उस चुनाव में 31 उम्मीदवारों ने चुनाव में अपना भाग्य आजमाया था. 7,40,782 मतदाताओं में से 4,46,289 ने (60.25 फीसदी) अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था. राजीव गांधी को कुल वैध वोटों का 83.67 फीसदी वोट हासिल हुआ था.
विश्वनाथ प्रताप सिंह
(2 दिसंबर, 1989 से 10 नवंबर, 1990)
वर्ष 1989 में आयोजित नौवीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बहुमत हासिल करने में सफल नहीं हो सकी. तब विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी, जिसे वाम दलों के साथ-साथ भाजपा का भी समर्थन मिला. विश्वनाथ प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश की फतेहपुर सीट से चुन कर आये थे. उन्होंने कांग्रेस के हरिकृष्ण शास्त्री को करीब सवा लाख वोटों से हराया था. वीपी सिंह को 2,45,653 वोट, जबकि हरिकृष्ण शास्त्री को 1,24,097 वोट मिले थे. इस सीट पर 17 उम्मीदवारों के बीच हुए चुनाव में कुल 9,18,378 मतदाताओं में से 49.75 फीसदी (4,56,882) ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था.
चंद्रशेखर
(10 नवंबर, 1990 से 21 जून, 1991)
भारतीय जनता पार्टी द्वारा वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस लेने के कारण सरकार अल्पमत में आ गयी और श्री सिंह को इस्तीफा देना पड़ा. बाद में, चंद्रशेखर के नेतृत्व में जनता दल से अलग हुए सांसदों के एक गुट ने नयी सरकार का गठन किया, जिसे कांग्रेस का समर्थन हासिल हुआ. चंद्रशेखर उत्तर प्रदेश की बलिया सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव जीत कर नौवीं लोकसभा में आये थे. चंद्रशेखर ने कांग्रेस के उम्मीदवार को हराने में सफलता पायी थी. बलिया में जनता दल को 2,51,997 वोट, जबकि कांग्रेस को 1,61,016 वोट मिले थे. 9,88,096 वोटरों में से 50.55 फीसदी ने अपने वोट का इस्तेमाल किया था. चंद्रशेखर को कुल वैध मतों का 52.53 फीसदी, जबकि कांग्रेस के जगन्नाथ चौधरी को 33.57 फीसदी वोट मिले थे.
पीवी नरसिंहराव
(21 जून, 1991 से 16 मई, 1996)
चंद्रशेखर की सरकार से कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस ले लेने के बाद केंद्र में नयी सरकार के गठन के लिए 10वीं लोकसभा के चुनाव आयोजित किये गये. चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार राजीव गांधी की हत्या हो गयी. इन चुनावों में कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें मिली और पीवी नरसिंह राव के नेतृत्व में केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी. हालांकि, राव उस समय संसद के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे, लिहाजा आंध्र प्रदेश की नांद्याल सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीते उम्मीदवार जीपी रेड्डी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव के लिए अपनी सीट छोड़ते हुए इस्तीफा दे दिया. बाद में उप-चुनाव में प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने पांच लाख से ज्यादा मतों से जीत दर्ज की, जो उस समय एक विश्व रिकॉर्ड बना. दरअसल, उस उप-चुनाव में आंध्र प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल तेलुगु देशम पार्टी ने उनके खिलाफ अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था.
अटल बिहारी वाजपेयी
(16 मई, 1996 से 1 जून, 1996)
दसवीं लोकसभा ने अपना कार्यकाल पूरा किया. 11वीं लोकसभा चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत हासिल न होने के चलते सबसे बड़े दल के तौर पर राष्ट्रपति ने भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया. हालांकि, प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बहुमत नहीं जुटा सके और महज 13 दिनों के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. वाजपेयी लखनऊ सीट से समाजवादी पार्टी के राज बब्बर को हरा कर लोकसभा पहुंचे थे. उन्हें 3,94,865 वोट मिले, जबकि राज बब्बर को 2,76,194 वोट. 58 उम्मीदवारों के बीच लड़े गये चुनाव में वाजपेयी को 52.25 फीसदी वोट हासिल हुए थे.
एचडी देवेगौडा
(1 जून, 1996 से 21 अप्रैल, 1997)
वाजपेयी की सिर्फ 13 दिनों तक चली सरकार के इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस के समर्थन से संयुक्त मोरचा की सरकार केंद्र की सत्ता में आयी, जिसके मुखिया एचडी देवेगौड़ा बनाये गये. देवेगौड़ा उस समय कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे और प्रधानमंत्री नियुक्त किये जाने के बाद वे राज्यसभा से सांसद चुने गये. इससे पूर्व 1991 में देवेगौड़ा कर्नाटक में हासन लोकसभा सीट से चुनाव जीते थे, लेकिन 1994 में कर्नाटक का मुख्यमंत्री नियुक्त किये जाने के चलते 1996 के लोकसभा चुनाव में वे उम्मीदवार नहीं थे. जनता दल की अगुआई में संयुक्त मोरचा का गठन हुआ और देवेगौड़ा को उसका मुखिया चुना गया. हालांकि, जनता दल को लोकसभा में कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले काफी कम सीटें मिली थीं, लेकिन अन्य दलों को शामिल करते हुए कांग्रेस की मदद से सरकार बनी.
इंद्र कुमार गुजराल
(21 अप्रैल, 1997 से 19 मार्च, 1998)
मार्च, 1997 में संयुक्त मोरचा सरकार को समर्थन दे रही कांग्रेस से कुछ गतिरोध के चलते एचडी देवेगौड़ा ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. बाद में इंद्र कुमार गुजराल ने अप्रैल, 1997 में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. हालांकि, वे तत्कालीन (11वीं) लोकसभा में किसी संसदीय क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़े थे. उन्हें 1992 में बिहार से राज्यसभा सदस्य चुना गया था. इससे पूर्व वे 1989 में जालंधर से जनता दल के टिकट पर जीत दर्ज कर चुके थे. नौवीं लोकसभा चुनाव में पंजाब की जालंधर सीट से गुजराल को 2,62,032 वोट मिले थे, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार कांग्रेस के राजिंदर सिंह को 1,81,674 वोट मिले थे. उस चुनाव में मतदान का प्रतिशत 59.12 रहा था. कुल 29 उम्मीदवारों में गुजराल को 48.10 फीसदी वोट हासिल हुए थे. उस समय वे वीपी सिंह सरकार में विदेश मंत्री नियुक्त किये गये थे.
अटल बिहारी वाजपेयी
(19 मार्च, 1998 से 22 मई, 2004)
11वीं लोकसभा का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने के चलते इंद्र कुमार गुजराल के नेतृत्ववाली केंद्र सरकार अल्पमत में आ गयी और लोकसभा असमय भंग कर दी गयी. 12वीं लोकसभा के चुनाव के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार गठित हुई. वाजपेयी लखनऊ से दो लाख से ज्यादा मतों से चुनाव जीते थे. वाजपेयी को 4,31,738 वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के मुजफ्फर अली 2,15,475 वोट हासिल कर सके थे. 15,12,907 वोटरों में से तकरीबन आधे (7,53,528) ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया और वाजपेयी को कुल वैध मतों का 57.28 फीसदी वोट मिला.
हालांकि महज 13 माह के बाद ही वाजपेयी की सरकार अल्पमत में आ गयी और 1999 में 13वीं लोकसभा के चुनाव आयोजित किये गये. इस बार वाजपेयी के नेतृत्व में ‘राष्ट्रीय जनतांत्रिक गंठबंधन’ की सरकार बनी, जिसमें भाजपा प्रमुख पार्टी थी. इस बार भी वाजपेयी लखनऊ सीट से ही जीते थे. हालांकि, इस चुनाव में उन्हें कांग्रेस उम्मीदवार डॉ कर्ण सिंह से कड़ी चुनौती मिली और उन्हें कुल वैध मतों का 48.11 फीसदी वोट ही मिल पाया. वाजपेयी को 3,62,709 वोट मिले, जबकि डॉ कर्ण सिंह को 2,39,085 वोट मिले.
डॉ मनमोहन सिंह
(22 मई, 2004 से अब तक)
वर्ष 2004 के अप्रैल-मई में आयोजित 14वीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें मिली और यह सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी. हालांकि, प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस पार्टी में प्रमुख दावेदार सोनिया गांधी थीं, लेकिन विपक्षी दलों की ओर से विदेशी मूल का मसला उठाये जाने पर पार्टी ने डॉ मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री चुना. 1970 और 1980 के दशक में डॉ सिंह भारत सरकार के अनेक प्रमुख पदों पर रहे. वे 1982 से 1985 के दौरान रिजर्व बैंक के गवर्नर और उसके बाद दो वर्षो तक योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन पद पर रहे. 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने इन्हें वित्त मंत्री नियुक्त किया. इसी वर्ष वे राज्यसभा सदस्य चुने गये. वर्ष 1996 और 2001 में वे फिर से असम से राज्यसभा के सदस्य चुने गये.
1999 के हुए 15वीं लोकसभा के चुनाव में डॉ सिंह दक्षिणी दिल्ली सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार बनाये गये, लेकिन भाजपा के विजय कुमार मल्होत्रा से इन्हें हार का सामना करना पड़ा. मल्होत्र को 2,61,230 वोट मिले, जबकि डॉ सिंह को 2,31,231 वोट हासिल हुए थे. 15वीं लोकसभा चुनाव में संयुक्त प्रगतिशील गंठबंधन (यूपीए) को फिर से बहुमत हासिल हुआ और डॉ सिंह केंद्र में कांग्रेस की अगुआई वाली दूसरी यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री बने.
यह भी जानें
-आजादी के बाद से कुल 13 लोग प्रधानमंत्री के पद पर पूर्णकालिक तौर पर रह चुके हैं.
-श्रीमती इंदिरा गांधी और श्री अटल बिहारी वाजपेयी अलग-अलग कार्यकाल में दो बार (अंतराल के बाद) प्रधानमंत्री बने.
-गुलजारी लाल नंदा दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने. पहली बार नेहरू जी के प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए निधन होने के पश्चात और दूसरी बार लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री रहते हुए निधन के पश्चात.(स्रोत : भारत का निर्वाचन आयोग )
प्रस्तुति : कन्हैया झा