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इवीएम चुनाव सुधार की बड़ी उपलब्धि
।।आरके नीरद।। मित्रों, मतदान का पैटर्न बदल गया है. पहले कागज के मतपत्र पर हम मुहर लगाते थे और उसे मोड़ कर टीन की मतपेटी में डाल देते थे. इन मतों की गिरती भी मैनुअल होता था. बड़ी संख्या में कर्मचारी लगाये जाते थे. दो-तीन दिनों तक गिनती चलती थी. नतीजे आने में काफी समय […]
।।आरके नीरद।।
मित्रों,
मतदान का पैटर्न बदल गया है. पहले कागज के मतपत्र पर हम मुहर लगाते थे और उसे मोड़ कर टीन की मतपेटी में डाल देते थे. इन मतों की गिरती भी मैनुअल होता था. बड़ी संख्या में कर्मचारी लगाये जाते थे. दो-तीन दिनों तक गिनती चलती थी. नतीजे आने में काफी समय लगता था. इसमें धांधली भी होती थी. बूथ कब्जा आसानी से होता था. अब इवीएम से वोटिंग होती है. इसमें बहुत आसानी से वोटिंग भी होती है और वोटों की गिनती भी. आखिर यह सुविधा कैसे आयी. इन मशीनों का निर्माण कौन-सी कंपनी करती है. मशीन कैसे काम करती है और यह कितना सुरक्षित है. ये ऐसे विषय हैं, जिनके बारे में जानकारी होनी चाहिए. मतदान केंद्रों पर पोलिंग पार्टी के साथ-साथ मतदाताओं के भी कुछ कर्तव्य हैं.
हम केवल वोट न दें, बल्कि उन कर्तव्यों को पूरा भी करें. चुनाव आयोग मतदान को लेकर लोगों की रुचि बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है. इसके तहत भ्रयमुक्त और सुरक्षित मतदान की व्यवस्था की गयी है. साथ ही मतदान केंद्रों पर कई तरह की सुविधाएं भी मतदाताओं के लिए निर्धारित की गयी हैं. इन सुविधाओं को प्राप्त करना मतदाता का अधिकार है. मतदान केंद्र पर आपका व्यवहार ऐसा हो कि दूसरे मतदाताओं और मतदान कर्मियों को मदद मिले. उन्हें परेशानी न हो. पीठासीन पदाधिकारी के क्या अधिकार हैं और अन्य मतदान पदाधिकारी किस तरह के काम निबटाते हैं, यह भी हमें जानना चाहिए. मतदान केंद्रों पर बीडी-सिगरेट पीना या मोबाइल ले जाना मना है. निष्पक्ष वोट कराना मतदान अधिकारी की एक मात्र जवाबदेही है. ऐसे में बूथ पर आने वाला हर व्यक्ति समान है. चाहे वह मंत्री, विधायक, सांसद या अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने पहुंचा कोइ अफसर ही क्यों न हो. इनके प्रति मतदानकर्मी का व्यवहार कैसा हो, हम इस अंक में इन्हीं विषयों की चर्चा कर रहे हैं.
इवीएम का पहली बार इस्तेमाल 1982 में केरल के एक विधानसभा क्षेत्र के 50 मतदान केंद्रों पर हुआ था. यह चुनाव सुधार की बड़ी पहल थी. लिहाजा जहां इसका स्वागत हुआ, वहीं विवाद भी. इस प्रक्रिया को वैधानिक मान्यता का सवाल उठा. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. कोर्ट ने इवीएम के इस्तेमाल के पहले इस प्रक्रिया को वैधानिक दर्जा देने का निर्देश दिया. संसद ने दिसंबर 1988 में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में संशोधन किया और धारा-61ए जोड़ी. इससे चुनाव आयोग को इस मशीन के इस्तेमाल का अधिकार मिला. इस अधिकार को 15 मार्च 1989 से लागू किया गया. इस कानूनी और संवैधानिक प्रक्रिया के पूरा होने के बाद भी इवीएम के इस्तेमाल को लेकर व्यावहारिक बाधा बनी रही.
1990 में केंद्र सरकार ने इसके इस्तेमाल पर सहमति तैयार करने के लिए चुनाव सुधार समिति बनायी. इसके बाद विशेषज्ञों की समिति बनी. इन दोनों समितियों ने इवीएम के इस्तेमाल की सिफारिश की. 24 मार्च 1992 को केंद्रीय विधि मंत्रलय ने अधिसूचना जारी और चुनाव सुधार के लिए इवीएम के इस्तेमाल का रास्ता साफ किया. इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद चुनाव आयोग ने यह सुनिश्चित करने की कार्रवाई शुरू की इवीएम का इस्तेमाल कितना सटीक और सुरक्षित है. इसके लिए उसने तकनीकी विशेषज्ञों की समिति बनायी. यह समिति अब भी आयोग को अपना सुझाव देती है. पहले यह समिति तीन सदस्यीय थी. 2010 में इसे पांच सदस्यीय बनाया गया.
इवीएम का पहला प्रयोग 1998 में
चुनाव में इसका पहला इस्तेमाल 1998 के विधानसभा चुनाव में देश के तीन राज्यों के 16 विधानसभा क्षेत्रों में किया गया था. यह प्रयोग के तौर पर था और सफल रहा. इवीएम का इस्तेमाल पहली बार जिन विधानसभा क्षेत्रों में हुआ था, उनमें दिल्ली के छह तथा राजस्थान और मध्यप्रदेश के पांच-पांच विधानसभा क्षेत्र शामिल थे. इस मशीन को देश की दो कंपनियां बनाती हैं. एक भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड बेंगलुरु और दूसरी इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड हैदराबाद. इसमें छह वोल्ट की बैटरी लगी होती है, जिससे यह बिना बिजली के चलती है. एक इवीएम में अधिक-से-अधिक 3840 वोट डाले जा सकते हैं. यह खुद में पर्याप्त है. हमारे देश में बूथों का गठन इस तरह किया गया है कि एक बूथ पर करीब डेढ़ हजार ही मतदाता होते हैं. एक इवीएम में 64 उम्मीदवारों के लिए मतदान कराया जा सकता है, लेकिन इसके लिए चार बैलेटिंग यूनिट लगानी होगी. एक यूनिट में केवल 16 बटन होते हैं. यानी इतने ही उम्मीदवारों के नाम लिखे जा सकते हैं. इससे अधिक नाम होने पर बैलेटिंग यूनिट की संख्या बढ़ानी होती है.
अब तो अंतिम बटन ‘नोटा’ के लिए है. इसलिए एक बैलेटिंग यूनिट में 15 उम्मीदवारों के ही नाम हो सकते हैं, लेकिन 64 से अधिक उम्मीदवार होने पर इवीएम का इस्तेमाल संभव नहीं है. तब पुराने तरीके से ही वोट कराना होगा. इस मशीन में वोटों के रिकॉर्ड दर्ज करने की विश्वसनीयता पर संदेह की स्थिति अब तक नहीं आयी है. हां, मशीन खराब हो सकती है, लेकिन उसमें भी इतनी गारंटी रहती है कि खराब होने के पहले तक जितने वोट डाले गये, वे कंट्रोल पैनल में दर्ज हो जायेंगे और उनकी गिनती संभव है. इवीएम के खराब होने पर उसकी जगह दूसरी इवीएम तुरंत उपलब्ध करायी जाती है. इसके लिए दस मतदान केंद्रों पर एक अधिकारी तैनात होता है. उसके पास अतिरिक्त इवीएम होती है.
इवीएम किफायती है
इवीएम से वोट कराना मतपेटी-मतपत्र के मुकाबले काफी सुविधाजनक, प्रामाणिक और फिफायती है. एक इवीएम सेट की कीमत करीब 5500 रुपये है. इससे मतदान कराने में समय कम लगता है. उसी तरह मतों की गिनती भी आसानी से, कम समय में और कम कर्मचारियों की मदद से होती है. इसलिए जहां एक दिन में मतों की गिनती का काम पूरा हो जाता है, वहीं खर्च भी कम पड़ता है.
वोट की बरबादी नहीं
पहले मतपत्र और मतपेटी से चुनाव कराने में बहुत संख्या में मतपत्र इसलिए रद्द कर दिये जाते थे कि वोटर सही स्थान पर मुहर नहीं लगा पाता था या एक से ज्यादा नाम के आगे मुहर लगा देता था. इस तरह बड़ी संख्या में अवैध मत पड़ते है. इवीएम के इस्तेमाल से यह समस्या खत्म हो गयी है. इसमें जब भी कोई वोट डाला जायेगा, तो किसी न किसी उम्मीदवार के खाते में ही दर्ज होगा.
बूथ कब्जा नहीं रह आसान
इवीएम ने बूथ कब्जा को अब आसान नहीं रहने दिया. इसमें दो बातें हैं. एक कि इसमें एक बटन ‘क्लोज’ नाम का है. इसे जब मतदान अधिकारी एक बार दबा देता है, तो उस इवीएम की वोटिंग प्रणाली बंद हो जाती है. इस तरह किसी उपद्रवी को देखते ही अधिकारी इस बटन का इस्तेमाल कर बूथ कब्जे को आसानी से रोक सकता है. दूसरा के इसकी प्रोग्रामिंग इस तरह की गयी है कि इसमें एक मिनट में पांच से अधिक वोट नहीं डाले जा सकते हैं. अगर सौ लोग भी बूथ कब्जा करने आ जायें और घंटे भर भी वोट डालते रहें, तो 300 सौ अधिक वोट नहीं डाल सकते. कागज के मतपत्र पर मुहर लगा कर मतपेटी में गिराने की जब व्यवस्था थी, तब बूथ कब्जा आसान था.
इवीएम के दिलचस्प किस्से
भारत में देश के सभी मतदान केंद्रों पर इवीएम का इस्तेमाल पहली बार 2004 के आम चुनाव में हुआ.
इवीएम की एक खासियत है कि वोटरों के लिए इसका इस्तेमाल बेहद आसान है. यहां तक कि अनपढ़ आदमी भी चुनाव चिह्न् के आधार पर आसानी से वोट डाल सकता है. एक इवीएम में 3840 वोट दर्ज हो सकते हैं. इनमें नोटा भी शामिल है. हमारे यहां बूथों का गठन इस तरह किया गया है कि एक बूथ पर अधिक-से-अधिक 1500 वोटर होते हैं. इवीएम के नतीजे का प्रिंट आउट भी लिया जा सकता है. इसमें दस सालों का यानी सामान्य अवस्था में पिछले दो चुनावों के नतीजे सुरक्षित रखे जा सकते हैं.जहां बिजली नहीं है या बिजली आपूर्ति में बाधा पड़ गयी है, वहां भी इवीएम सामान्य रूप से काम करती है. इसके लिए इसके अंदर छह वोल्ट की बैटरी लगी होती है. बैलट बटन के पास एक स्पीकर होता है. वोट को दर्ज करने पर वह बजता है.
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