33.5 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कामयाबी तो वक्त के हाथों में, पर लड़ा तो सही

एक प्रत्याशी ऐसा भी जयपुर के डॉ तन्मय चाहते हैं जातिविहीन समाज आम चुनाव के शोर में मूल बातें नदारद हैं, विकास की चर्चा है, लेकिन सामाजिक मूल्यों की नहीं. पर, कुछ लोग हैं, जो चुपचाप बगैर शोर के समाज को ‘कुंठाओं’ से मुक्त करना चाहते हैं, तोड़ना चाहते हैं धर्म-जाति के जकड़न को. राजस्थान […]

एक प्रत्याशी ऐसा भी

जयपुर के डॉ तन्मय चाहते हैं जातिविहीन समाज

आम चुनाव के शोर में मूल बातें नदारद हैं, विकास की चर्चा है, लेकिन सामाजिक मूल्यों की नहीं. पर, कुछ लोग हैं, जो चुपचाप बगैर शोर के समाज को ‘कुंठाओं’ से मुक्त करना चाहते हैं, तोड़ना चाहते हैं धर्म-जाति के जकड़न को. राजस्थान की राजधानी जयपुर के डॉ तन्मय की लड़ाई एक ऐसे समाज के लिए है, जिसमें आदमी जाति से नहीं, व्यक्तित्व से जाना जाये. बकौल डॉ तन्मय ‘मैं कामयाब होता हूं या नहीं, यह तो वक्त बतायेगा, लेकिन कम से कम अपने बेटे से तो कह सकूंगा कि मैं लड़ा था.’

जयपुर : लोकसभा चुनावों के इस महासमर में जनता को प्रभावित करने के लिए राजनीतिक दल और उनके प्रत्याशी तरह-तरह के वादे और दावे कर रहे हैं, लेकिन राजस्थान की फिजां कुछ बदली से है. चंद मिनटों में ही राजनीति की चर्चा जातिगत समीकरणों की चर्चा में बदल जाती है. कम से कम पिछले साल दिसंबर में आये विधानसभा चुनाव परिणाम तो यही बयां करते हैं, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मुंह की खानी पड़ी थी. विशेषज्ञों का मानना है कि इस हार के पीछे सत्ता के प्रति नाराजगी के साथ जातीय फैक्टर की अहम भूमिका थी.

विेषकों की राय है कि गहलोत ने अपने शासनकाल में विभिन्न योजनाएं संचालित करने और उन पर राशि खर्च करने में कोई कोताही नहीं बरती थी, लेकिन इन सबके बावजूद उनकी हार की एक मात्र वजह यह रही कि उन्होंने समाज के अन्य तबकों के मुकाबले मुसलिम, जाट और मीणा तबकों को बिल्कुल किनारे लगा दिया था.

जातिगत राजनीति के इस माहौल में लोकसभा के एक ऐसे उम्मीदवार के बारे में जानना रोचक होगा, जिसने समाज की इस ‘वर्ण’ व्यवस्था से खुद को अलग कर लिया है. बात हो रही है जयपुर लोकसभा संसदीय सीट के असाधारण उम्मीदवार डॉ तन्मय की.

जयपुर सिटी से इंडिया पीपुल्स ग्रीन पार्टी के सह-संस्थापक और उम्मीदवार तन्मय ने पार्टी की स्थापना 2011 में की थी. उनके प्रचार के लिए छपे पैंफलेट की पीछे लिखा है- ‘ तुम जाति देख कर वोट करना चाहते हो, तो प्लीज मुङो वोट मत करना भाई.’

तन्मय कहते हैं, यहां जातीय राजनीति सरकारें बनाती और गिराती है. जयपुर में कांग्रेस के एक नेता का दावा है कि वह शहर के सबसे कुलीन ब्राह्मण हैं. तो आम आदमी का हमदर्द होने का दावा करनेवाली अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने अपने उम्मीदवार को कथित तौर पर सिर्फ इसलिए चुना है क्योंकि वह जाट समुदाय से है.

लेकिन, किसी को तो जाति व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़नी ही होगी. मुङो यकीन है कि सौ साल पहले सती प्रथा और परदा प्रथा के भी खिलाफ आवाज उठाना भी मुश्किल काम माना जाता रहा होगा.

32 साल के ऑर्थोडॉन्टिस्ट तन्मय के शैक्षणिक प्रमाणपत्रों में उनका सरनेम शर्मा बताया गया है. वह समाज के उस शहरी मध्य वर्ग से आते हैं, जो दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी की सफलता पर हर्षित हुआ था, लेकिन इसके साथ ही परिवर्तन की उस बयार का लाभ नहीं मिल पाने से दुखी भी हुआ था.

तन्मय कहते हैं, हमारे देश में लोग ऐसे हैं जो व्यवस्था को बाहर से ही कोसते रहते हैं. बहुत हुआ तो कभी धरना और कभी प्रदर्शन. लेकिन फर्क तब तक नहीं पड़नेवाला, जब तक आप उस व्यवस्था का हिस्सा नहीं बनते, एक पार्टी नहीं बनाते. अन्ना हजारे का जब आंदोलन चल रहा था, कहीं न कहीं यह अंदेशा जरूर था कि यह सब कुछ बेनतीजा निकलेगा. इसलिए हम कुछ अलग करना चाहते थे. इसलिए व्यवस्था को भीतर तक प्रभावित करने के लिए हमने एक पार्टी बनायी.

सितंबर 2011 में समाज के कुछ बुद्धिजीवी लोगों की टीम ने इंडिया पीपुल्स ग्रीन पार्टी की स्थापना की थी, तन्मय उसके सदस्य थे. तब विकेंद्रीकृत सरकारें और पर्यावरण के अनुकूल नीतियां, इस पार्टी के ध्येय थे. इस पार्टी ने पहली बार पिछले विधानसभा चुनाव में हाथ आजमाया, जहां उसे आंशिक सफलता हाथ लगी. इस बार इसका मकसद लोकसभा चुनाव में प्रचार अभियानों के जरिये जनता के बीच इसके प्रति जागरूकता फैलाना है.

तन्मय घर-घर जाकर लोगों से अपने पक्ष में मतदान की अपील करते हैं. वह अपने काम पर साइकिल से जाते हैं और जीत-हार से इतर उनका ध्यान जयपुर में पानी की समस्या को दूर करने पर है. वह गर्व से कहते हैं कि उन्होंने अपनी जाति से बाहर शादी की है. तन्मय वास्तव में अपनी पार्टी के माध्यम से कुछ करने की इच्छा रखते हैं.

वह कहते हैं कि हम आदर्श समाज में विश्वास रखते हैं. आपको लगता होगा कि यह एक सपना है, लेकिन हमारी लड़ाई इसी सपने को हकीकत में बदलने के लिए है. यह सही नहीं है कि जो आइडिया लोकप्रिय है वह हमेशा सही ही हो. पांच महीने पहले तक राजस्थान की जनता कांग्रेस के नजरिये से प्रभावित थी, लेकिन अचानक उसने भाजपा को चुन लिया. आज अगर कोई आइडिया अल्पमत में है, तो कल वह बहुमत में भी हो सकता है.

क्लीन एंड ग्रीन गवर्नेस की बातों के बीच इंडिया पीपुल्स ग्रीन पार्टी सत्ता के विकेंद्रीकरण और उदार अर्थव्यवस्था की नीति की बदौलत अन्य पार्टियों के बीच एक अलग पहचान बनाती है.

यह पूछे जाने पर कि क्या आपकी नीति भाजपा से मिलती-जुलती नहीं है, तन्मय कहते हैं कि नरेंद्र मोदी यह बात आज कह रहे हैं, लेकिन हमने दो साल पहले ही अपनी पार्टी की स्थापना के समय इस बात को आधिकारिक रूप से एक किताब की शक्ल में पेश किया था. वह कहते हैं कि नरेंद्र मोदी हमारे आइडिया को अपना बता रहे हैं, और चूंकि हम छोटे व नये हैं, इसलिए सबको ऐसा लगता है कि यह आइडिया उनका है.

इन सबके बावजूद ऐसा लगता है कि तन्मय अपनी चुनावी हार को स्वीकार कर चुके हैं.कहते हैं, मैं भविष्य के लिए लड़ रहा हूं. मैं इसलिए लड़ रहा हूं ताकि मैं अपने बेटे को यह कह सकूं कि मैंने व्यवस्था से लड़ने के लिए क्या प्रयास किये. मैं उसे बताऊंगा कि लोग मेरे विचारों को समझ नहीं पाये, लेकिन कम से कम मैं उससे यह तो कह सकूंगा कि मैंने उसके लिए लड़ाई लड़ी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें