संतोषी ने चार दिन से कुछ भी नहीं खाया था. घर में मिट्टी चूल्हा था और जंगल से चुन कर लाई गई कुछ लकड़ियां भी. सिर्फ ‘राशन’ नहीं था.
अगर होता, तो संतोषी आज ज़िंदा होती. लेकिन, लगातार भूखे रहने के कारण उनकी मौत हो गई.
मरते-मरते शायद उसे तजुर्बा हो गया हो कि जिंदगी सिर्फ प्यास बुझाने से नही चलती. इसके लिए भूख का मिटना भी जरूरी है. मरते वक्त उनकी उम्र सिर्फ दस साल थी.
संतोषी अपने परिवार के साथ कारीमाटी मे रहती थी. यह सिमडेगा जिले के जलडेगा प्रखंड की पतिअंबा पंचायत का एक गांव है.
करीब 100 घरों वाले इस गांव में इसमें कई जातियों के लोग रहते हैं. संतोषी पिछड़े समुदाय की थीं.
गांव के डीलर ने पिछले आठ महीने से उन्हें राशन देना बंद कर दिया था. क्योंकि, उनका राशन कार्ड आधार से लिंक्ड नहीं था.
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मां-बेटी पर जिम्मेवारी
संतोषी के पिताजी बीमार रहते हैं. कोई काम नही करते. ऐसे में घर चलाने की जिम्मेवारी उसकी मां कोयली देवी और बड़ी बहन पर थी.
वे कभी दातून बेचतीं, तो कभी किसी के घर में काम कर लेतीं. लेकिन, पिछड़े समुदाय से होने के कारण उन्हें आसानी से काम भी नहीं मिल पाता था.
ऐसे में घर के लोगों ने कई रातें भूखे गुजार दीं.
कोयली देवी ने बताया, "28 सितंबर की दोपहर संतोषी ने पेट दर्द होने की शिकायत की. गांव के वैद्य ने कहा कि इसको भूख लगी है. खाना खिला दो, ठीक हो जाएगी. मेरे घर में चावल का एक दाना नहीं था. इधर संतोषी भी भात-भात कहकर रोने लगी थी. उसका हाथ-पैर अकड़ने लगा. शाम हुई तो मैंने घर में रखी चायपत्ती और नमक मिलाकर चाय बनायी. संतोषी को पिलाने की कोशिश की. लेकिन, वह भूख से छटपटा रही थी. देखते ही देखते उसने दम तोड़ दिया. तब रात के दस बज रहे थे."
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डीसी का इनकार
सिमडेगा के उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्रि इससे इनकार करते हैं. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने दावा किया कि संतोषी की मौत मलेरिया से हुई है.
मंजूनाथ का कहना है कि संतोषी की मौत का भूख से कोई लेना-देना नहीं है. अलबत्ता उसका परिवार काफी गरीब है. इसलिए हमने उसे अंत्योदय कार्ड जारी कर दिया है.
मंजूनाथ भजंत्रि ने बीबीसी से कहा, "संतोषी की मौत 28 सितंबर को हुई लेकिन यह खबर छपी 6 अक्टूबर को. मीडिया में आया कि दुर्गा पूजा की छुट्टियों के कारण उसे स्कूल में मिलने वाला मिड डे मिल नहीं मिल पा रहा था. जबकि वह मार्च के बाद कभी स्कूल गई ही नहीं. उसकी मौत की जांच के लिए गठित तीन सदस्यीय कमिटी की रिपोर्ट के मुताबिक संतोषी की मौत की वजह मलेरिया है. इस कमेटी ने उस डाक्टर से बातचीत की, जिसने संतोषी का इलाज किया था."
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राशन कार्ड बहाली की मांग
जलडेगा निवासी सोशल एक्टिविस्ट तारामणि साहू डीसी पर तथ्यों को छिपाने का आरोप लगाती हैं.
उन्होंने बताया कि एएनएम माला देवी ने 27 अक्टूबर को संतोषी को देखा, तब उसे बुखार नहीं था. ऐसे में मलेरिया कैसे हो गया और जिस डाक्टर ने डीसी को यह बात बतायी, उसकी योग्यता क्या है.
तारामणि साहू ने बीबीसी से कहा, "कोयल देवी का राशन कार्ड रद्द होने के बाद मैंने उपायुक्त के जनता दरबार मे 21 अगस्त को इसकी शिकायत की. 25 सितंबर के जनता दरबार में मैंने दोबारा यही शिकायत कर राशन कार्ड बहाल करने की मांग की. तब संतोषी जिंदा थी. लेकिन उसके घऱ की हालत बेहद खराब हो चुकी थी. लेकिन, मेरी बात पर ध्यान नही दिया गया और इसके महज एक महीने के बाद संतोषी की मौत हो गई."
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राइट टू फूड कैंपेन की जांच
इस घटना के बाद राइट टू फूड कैंपेन की पांच सदस्यीय टीम ने कारामाटी जाकर इस मामले की जांच की. उनके साथ राज्य खाद्य आयोग की टीम भी थी.
इस टीम में शामिल धीरज कुमार कहते हैं, "कोयल देवी ने उन्हें बताया है कि संतोषी की मौत सिर्फ और सिर्फ भूख के कारण हुई है."
वहीं जाने-माने सोशल एक्टिविस्ट बलराम कहते हैं, "अगर किसी को कई दिनों से खाना नहीं मिल रहा हो और इस कारण उसकी मौत हो जाए, तो इसे क्या कहेंगे. सरकार को चाहिए कि वह या तो विश्व स्वास्थ्य संगठन की परिभाषा को मान ले या फिर भूख से मौत को खुद परिभाषित कर दे. क्योंकि, हर मौत को यह कहकर टाल देना कि यह भूख से नही हुई है, दरअसल अपनी जिम्मेवारियों से भागना है."
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